स्कंद षष्ठी व्रत रखने के विशेष नियम और सावधानियाँ
1. व्रत का संकल्प और मानसिक शुद्धि
- व्रत शुरू करने से पहले सुबह स्नान कर शुद्ध मन से संकल्प करें।
- संकल्प में भगवान स्कंद का ध्यान करें और 6 दिनों तक नियमपूर्वक व्रत पालन का प्रण लें।
- यदि संभव हो, तो व्रत के दिनों में क्रोध, झूठ, दुर्भाव, अपशब्द से दूर रहें।
- मन को शांत और स्थिर रखने के लिए प्रतिदिन कुछ समय ध्यान में बिताएँ।
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2. आहार संबंधी नियम
✔ व्रत में क्या खाएँ:
- फलाहार या केवल एक समय भोजन
- खीर, दूध, दही
- फल, सूखे मेवे
- निर्गी खाद्य पदार्थ
- यदि दक्षिण भारतीय परंपरा मानते हैं:
- पोंगल, उपमा, इडली, नारियल जल
- हल्का और सात्त्विक भोजन ही ग्रहण करें।
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✘ क्या न खाएँ:
- तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस, शराब)
- तला हुआ भारी भोजन
- तीखे-गरिष्ठ भोजन
- धूम्रपान और नशा पूरी तरह वर्जित
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3. व्रत के दौरान शारीरिक नियम
- प्रतिदिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठें।
- स्नान करने के बाद भगवान स्कंद के समक्ष दीपक जलाएँ।
- संभव हो तो छह दिनों तक नियमित रूप से मंदिर जाएँ या घर में कार्तिकेय का पूजन करें।
- शरीर को शुद्ध रखने के लिए साफ कपड़े पहनें।
- व्रत के दौरान अत्यधिक आलस्य, दिन में लंबी नींद, अत्यधिक मनोरंजन से दूर रहें।
4. पूजा संबंधी नियम
✔ आवश्यक सामग्री:
- लाल या केसरिया पुष्प
- चावल, नैवेद्य
- फल, धूप, दीपक
- पंचामृत
- स्कंद/मुरुगन का चित्र या प्रतिमा
- कुमकुम और हल्दी
✔ पूजा-विधि:
- भगवान स्कंद का ध्यान करें।
- गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
- दीप और धूप जलाएँ।
- पुष्प अर्पित करें।
- कार्तिकेय के मंत्र, कवच, स्तोत्र का पाठ करें।
- प्रतिदिन शाम को दीप-आरती करें।
- षष्ठी के दिन विशेष पूजा और अर्चना करें।
5. मंत्र और स्तोत्र का पाठ
व्रत के दौरान निम्न मंत्र अत्यंत शुभ माने जाते हैं:
✔ “ॐ स्कन्दाय नमः”
✔ “ॐ कार्तिकेयाय नमः”
✔ “सुब्रह्मण्य स्वामी हारो हरा”
✔ कंद शष्ठी कवचम् (दक्षिण भारत में अत्यंत प्रसिद्ध)
मंत्रों का पाठ श्रद्धा और शुद्ध मन से करें।
6. व्रत की अवधि में आचरण
- व्रत के दौरान अहिंसा का पालन करें।
- किसी का दिल न दुखाएँ, मीठा और संयमित व्यवहार रखें।
- अपवित्र स्थानों पर जाने से बचें।
- व्रत के समय संयम सबसे महत्वपूर्ण है।
7. व्रत के अंतिम दिन की विशेष सावधानियाँ
- षष्ठी के दिन सुबह और शाम विशेष पूजा करें।
- दान-पुण्य करें जैसे —
- भोजन दान
- कपड़े दान
- फल या प्रसाद का वितरण
- भगवान स्कंद को चने, गुड़, फल और नारियल चढ़ाना शुभ रहता है।
- पूजा के बाद ही व्रत का पारण करें।
- पारण में केवल सात्त्विक भोजन ही ग्रहण करें।
8. मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक सावधानियाँ
- व्रत को बोझ न समझें, इसे भक्ति और साधना मानें।
- मोबाइल, टीवी, मनोरंजन में समय कम लगाएँ।
- मन में नकारात्मक विचार आने पर मंत्र जप करें।
- यदि आप अस्वस्थ हों तो कठोर उपवास न रखें — केवल फलाहार रखें।
9. व्रत का फल पाने की शर्तें
व्रत का फल तभी मिलता है जब:
- मन, वाणी और आचरण शुद्ध हों।
- दिखावटी नहीं, सच्ची भक्ति हो।
- नियम का पालन मन से किया जाए।
- दूसरों का भला सोचा जाए।
10. विशेष सावधानियाँ
- व्रत आधा छोड़ने से बचें; यदि छोड़ना पड़े तो भगवान से क्षमा माँगें।
- गर्भवती महिलाओं को कठोर उपवास न करना चाहिए।
- लंबी दूरी की यात्रा व मनोरंजन से यथासंभव बचें।
- पूजा की थाली व स्थान शुद्ध रखें।
- मानसिक रूप से प्रसन्न और सकारात्मक रहें।
स्कंद षष्ठी व्रत के लाभ और महत्व
स्कंद षष्ठी व्रत भगवान स्कंद/कार्तिकेय/मुरुगन की उपासना का महान पर्व है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है, बल्कि यह साधक को मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और पारिवारिक रूप से अत्यंत लाभ प्रदान करता है।
1. आध्यात्मिक शुद्धि और ऊर्जा-संतुलन
- व्रत के दौरान मन, शरीर और आत्मा एक विशेष धारा में प्रवाहित होते हैं।
- निरंतर पूजा, मंत्र-जप और संयम साधक की आंतरिक ऊर्जा (प्राण शक्ति) को सक्रिय करते हैं।
- भगवान स्कंद को योद्धा देवता माना जाता है—उनकी उपासना से साधक के भीतर साहस, स्थिरता, जुझारूपन और तेज उत्पन्न होता है।
- व्रत के 6 दिन साधक को आध्यात्मिक रूप से ऊँचा उठाते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।
2. मनोबल, आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि
- भगवान स्कंद को युद्ध देवता कहा गया है, जिन्होंने असुर सुरपदमन का संहार कर धर्म की रक्षा की।
- उनकी उपासना से साधक के भीतर
✔ साहस
✔ आत्मविश्वास
✔ मानसिक शक्ति
✔ निर्णय लेने की क्षमता
मजबूत होती है। - डर, संकोच, चिंता, मानसिक तनाव में कमी आती है।
- “आंतरिक योद्धा” जाग्रत होता है।
3. बाधा निवारण और शत्रु-रक्षा
- हिंदू धर्म में माना जाता है कि स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से
✔ जीवन की बाधाएँ कम होती हैं
✔ शत्रुओं से रक्षा होती है
✔ दुष्ट शक्तियाँ दूर रहती हैं
✔ कार्यों में रुकावटें हटती हैं - दक्षिण भारत में इसे “कवच व्रत” माना जाता है—जो साधक पर रक्षा-कवच की तरह काम करता है।
- व्यवसाय, करियर, कानूनी मामले, नौकरी, प्रतियोगिता—हर क्षेत्र में सफलता की संभावनाएँ बढ़ती हैं।
4. संतान-सुख, सुरक्षा और उन्नति
- भगवान स्कंद को बच्चों के रक्षक देवता माना गया है।
- व्रत रखने से
✔ संतान प्राप्ति
✔ बच्चों की सेहत
✔ बच्चों के भविष्य
के लिए शुभ फल प्राप्त होते हैं। - माता-पिता अपने बच्चों की रक्षा और प्रगति हेतु यह व्रत रखते हैं।
5. स्वास्थ्य और रोगों से सुरक्षा
- संयमित आहार, फलाहार और मानसिक शांति शरीर को डिटॉक्स करती है।
- मन शांत होने से
✔ तनाव
✔ उच्च रक्तचाप
✔ चिंता
✔ अनिद्रा
में सुधार होता है। - धार्मिक ग्रंथों में भगवान स्कंद को रोगनाशक देवता भी कहा गया है।
- उनकी कृपा से रोग, दर्द, भय, नकारात्मक विचारों से राहत मिलती है।
6. विवाह, प्रेम और दांपत्य संबंधों में सुधार
- भगवान स्कंद को दिव्य सौंदर्य और प्रेम के देवता भी माना गया है।
- उनकी उपासना से
✔ दांपत्य जीवन मधुर होता है
✔ मतभेद कम होते हैं
✔ प्रेम सम्बन्धों में स्थिरता आती है - दक्षिण भारत में महिलाएँ यह व्रत पति की आयु और दांपत्य सुख के लिए भी रखती हैं।
7. करियर और जीवन में प्रगति
- व्रत के दौरान आत्मअनुशासन, स्पष्टता और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
- इससे व्यक्ति अपने लक्ष्य पर केंद्रित होता है।
- भगवान स्कंद की कृपा से
✔ शिक्षा
✔ नौकरी
✔ व्यापार
✔ प्रतियोगी परीक्षा
में प्रगति और सफलता प्राप्त होती है।
8. नकारात्मक विचारों, भय और मानसिक उलझन का अंत
स्कंद षष्ठी व्रत मन के तमोगुण को कम करता है:
- नकारात्मक सोच
- डर
- अज्ञात भय
- ईर्ष्या
- अवसादजनक विचार
- आत्महीनता
इन सबका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता है।
मन में प्रकाश, उम्मीद और शक्ति का संचार होता है।
9. पितृदोष, ग्रहदोष और कुंडली के दोषों में शांति
- भगवान कार्तिकेय की उपासना से
✔ पितृदोष
✔ कुज दोष (मंगल दोष)
✔ ग्रह बाधा
✔ नकारात्मक ग्रह प्रभाव
में कमी आती है। - मंगल का शोधन होने से विवाह और करियर संबंधी समस्याएँ हल होने लगती हैं।
10. तप, भक्तिभाव और संयम की शक्ति बढ़ती है
व्रत का मुख्य उद्देश्य केवल भूखे रहना नहीं है, बल्कि—
- मन को सँभालना
- इंद्रियों को नियंत्रित करना
- क्रोध को घटाना
- प्रेम और करुणा बढ़ाना
इनके अभ्यास से साधक के पूरे व्यक्तित्व को निखार मिलता है।
11. पूजा और ध्यान से घर में सकारात्मक ऊर्जा
- भगवान स्कंद की पूजा से घर में दिव्य स्पंदन बढ़ते हैं।
- वातावरण शांत, पवित्र और ऊर्जावान बनता है।
- घर में कलह, वाद-विवाद, तनाव कम होते हैं।
- पारिवारिक सामंजस्य बढ़ता है।
12. भगवान स्कंद की विशेष कृपा और दिव्य संरक्षण
- व्रत रखने से साधक पर दिव्य कवच बनता है।
- जीवन के कठिन दौर में भी भगवान स्कंद मार्गदर्शन और शक्ति देते हैं।
- भक्तों को अनेक बार अचानक संकट से बचने के अनुभव भी मिलते हैं।
सूर्य देव को जल अर्पण करने का शुभ समय
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