सुन्दरकाण्ड” तुलसीदास कृत रामचरितमानस का एक अति महत्वपूर्ण और प्रभावशाली अध्याय है। यह अध्याय भगवान श्रीराम के प्रति हनुमान जी की अनन्य भक्ति, सेवा, साहस और समर्पण का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस काण्ड का नाम ‘सुन्दरकाण्ड’ रखा गया है क्योंकि इसमें रामायण की कथा का सबसे सुन्दर, प्रेरणादायक, और हर्षवर्धक प्रसंग प्रस्तुत किया गया है।
सुन्दरकाण्ड का आरम्भ उस समय होता है जब भगवान श्रीराम, सीता जी के वियोग में अत्यंत दुखी और व्याकुल होते हैं। वे रावण द्वारा सीता जी के अपहरण की सूचना पाते हैं, किन्तु उन्हें यह ज्ञात नहीं होता कि सीता जी कहां हैं। इसी समय सुग्रीव, वानर सेना के साथ मिलकर सीता जी की खोज के लिए विभिन्न दिशाओं में वानर सेना भेजते हैं। हनुमान जी को दक्षिण दिशा में भेजा जाता है, क्योंकि उन्हें आशा होती है कि लंका में जाकर सीता जी के बारे में कुछ पता चलेगा।
हनुमान जी अपनी भक्ति, साहस, और सेवा भावना के साथ सीता जी की खोज में लंका की ओर अग्रसर होते हैं। उनके लिए समस्त बाधाएँ तुच्छ हो जाती हैं क्योंकि उनका लक्ष्य भगवान श्रीराम की सेवा करना है। हनुमान जी समुद्र को पार करते हैं और इस यात्रा में उनकी अनेकानेक कठिनाइयाँ आती हैं, किन्तु वे हर संकट का धैर्य और साहस से सामना करते हैं। मार्ग में सुरसा, सिंहिका, और लंकिनी जैसी शक्तिशाली राक्षसियाँ उन्हें रोकने का प्रयास करती हैं, किन्तु हनुमान जी अपने अद्वितीय पराक्रम और बुद्धि से उन सबको पराजित करते हुए लंका पहुँचते हैं।
लंका में पहुँचकर, हनुमान जी अत्यंत चतुराई से सीता जी का पता लगाते हैं। वे विभीषण के घर से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं और अंततः अशोक वाटिका में सीता जी को ढूँढ़ लेते हैं। इस प्रसंग में तुलसीदास जी ने हनुमान जी की बुद्धिमानी, उनकी भक्ति, और उनका सीता माता के प्रति अनन्य प्रेम बहुत सुन्दर ढंग से वर्णित किया है। हनुमान जी सीता माता को श्रीराम का संदेश देते हैं, उन्हें आश्वासन देते हैं कि श्रीराम शीघ्र ही उन्हें बचाने आएंगे।
हनुमान जी का सीता जी से मिलन और उनके बीच का संवाद अत्यंत मार्मिक है। वे सीता जी को श्रीराम का अंगूठी देकर उनके प्रति श्रीराम के प्रेम और विश्वास का प्रतीक प्रस्तुत करते हैं। इस प्रसंग में हनुमान जी की विनम्रता, श्रद्धा और समर्पण की गहराई को तुलसीदास जी ने बखूबी चित्रित किया है। सीता जी को श्रीराम का संदेश प्राप्त कर थोड़ी शांति मिलती है, और वे श्रीराम के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त करती हैं।
हनुमान जी इसके बाद लंका में रावण की शक्ति और अहंकार को चुनौती देते हैं। वे अशोक वाटिका में जाकर राक्षसों को पराजित करते हैं और वहाँ की सुंदरता का आनंद भी लेते हैं। हनुमान जी की शक्ति का परिचय तब मिलता है जब वे रावण के पुत्र अक्षयकुमार को पराजित कर देते हैं। रावण जब हनुमान जी की शक्ति से भयभीत होता है, तब वह हनुमान जी को बंदी बनाने का आदेश देता है और हनुमान जी को दरबार में प्रस्तुत किया जाता है। वहाँ हनुमान जी अपने धर्म का पालन करते हुए, अपनी विनम्रता और साहस के साथ रावण को समझाते हैं कि वह श्रीराम का शरणागत होकर अपने प्राणों की रक्षा करे। परंतु रावण अपनी मूर्खता और अहंकार के कारण हनुमान जी की बातों का मखौल उड़ाता है और उनके पुच्छ में आग लगाने का आदेश देता है।
हनुमान जी रावण के आदेश के अनुसार, अपने पूँछ में आग लगाने की बात सुनकर हंस पड़ते हैं और रावण को उसकी गलती का अहसास कराते हैं। फिर हनुमान जी अपने पूँछ से लंका को जलाकर एक प्रकार से यह संदेश देते हैं कि अधर्म का अंत निश्चित है। हनुमान जी का यह कार्य रावण के अहंकार को तोड़ता है और उसे यह संकेत देता है कि श्रीराम की शक्ति अपराजेय है।
अन्त में, हनुमान जी श्रीराम के पास लौटते हैं और उन्हें सीता जी का संदेश और कुशल समाचार सुनाते हैं। वे श्रीराम को लंका की स्थिति, रावण की शक्ति, और वहाँ की सैन्य स्थिति की जानकारी देते हैं। हनुमान जी के लौटने पर श्रीराम अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और उनकी सेवा की सराहना करते हैं।
सुन्दरकाण्ड का आध्यात्मिक और नैतिक संदेश अत्यंत गहरा और प्रेरणादायक है। इस काण्ड में हनुमान जी की भक्ति और साहस का उदाहरण हम सभी को अपने कर्तव्यों के प्रति अडिग और समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। हनुमान जी अपने गुरु के प्रति जो निष्ठा, समर्पण और सेवा भावना दिखाते हैं, वह हमें अपने जीवन में आदर्श रूप में अपनाने योग्य है। सुन्दरकाण्ड का पाठ मनुष्य के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और उसे सभी प्रकार की बाधाओं का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
इसके अतिरिक्त, सुन्दरकाण्ड का एक अन्य प्रमुख पहलू यह भी है कि यह भगवान की कृपा और शरणागत वत्सलता का उदाहरण प्रस्तुत करता है। हनुमान जी की श्रीराम के प्रति निष्काम भक्ति दर्शाती है कि सच्चे हृदय से भगवान के प्रति समर्पण करने वाला व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता। श्रीरामचरितमानस का यह भाग हमें विश्वास और साहस की शक्ति का महत्व सिखाता है।
इस प्रकार, सुन्दरकाण्ड का अध्ययन और पाठ करने से मनुष्य को आत्मिक शांति, साहस, और भक्ति का अनुभव होता है। हनुमान जी का आदर्श जीवन, उनकी बुद्धिमत्ता, साहस और उनके श्रीराम के प्रति प्रेम का गहरा प्रतीक है। तुलसीदास जी ने सुन्दरकाण्ड को इस प्रकार लिखा है कि यह पाठक के हृदय को भक्ति, साहस और ज्ञान से पूर्ण कर देता है।