
सीताष्ठमी व्रत सीताष्ठमी व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है, जो माता सीता को समर्पित है। यह व्रत विशेष रूप से माघ मास की
सीताष्ठमी व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है, जो माता सीता को समर्पित है। यह व्रत विशेष रूप से माघ मास की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इसे जानकी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा संतान सुख, दांपत्य जीवन की सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखा जाता है।
व्रत की विधि
- स्नान और संकल्प:
- प्रातःकाल उठकर पवित्र स्नान करें।
- माता सीता की पूजा और व्रत का संकल्प लें।
- पूजन सामग्री:
- पीले वस्त्र
- फल, फूल, चावल, रोली, चंदन
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल)
- तुलसी के पत्ते और हल्दी
- पूजा-विधि:
- माता सीता और भगवान श्रीराम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- गंगाजल से शुद्धिकरण करें और पंचामृत से अभिषेक करें।
- अक्षत, रोली, चंदन, फूल, और तुलसी पत्र अर्पित करें।
- माता सीता के भजन और रामायण के कुछ अंशों का पाठ करें।
- कथा श्रवण करें और अंत में आरती करें।
- भोजन एवं पारण:
- व्रत के दौरान फलाहार करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान करें।
- अगले दिन व्रत का पारण करें।
व्रत की महत्ता
- इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
- संतान प्राप्ति और संतान की उन्नति के लिए यह व्रत शुभ होता है।
- इस व्रत से परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
माता सीता का जीवन आदर्श और संयम का प्रतीक है। इस व्रत को करने से महिलाओं में सहनशीलता, धैर्य और प्रेम की भावना बढ़ती है।
“सीताष्ठमी व्रत की सभी को शुभकामनाएं!” 🙏✨
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