
संतोषी माता व्रत में गुड़ और चने का महत्व
संतोषी माता का व्रत विशेष रूप से शुक्रवार को किया जाता है और इसमें गुड़ (jaggery) और चना (gram) का विशेष महत्व होता है। यह दोनों पदार्थ व्रत की पूजा, भोग और व्रत-समापन में अनिवार्य माने जाते हैं। इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक कारण होते हैं:
🌼 गुड़ और चने का महत्व क्यों है?
1. सादगी और संतोष का प्रतीक
गुड़ और चना आम और सुलभ चीजें हैं। संतोषी माता का नाम ही “संतोष” से बना है — यानी संतुष्ट रहने वाली माता। उनका व्रत करने वाला व्यक्ति भी सादगी और संतोष का जीवन अपनाए, इसलिए भोग भी सादा और सरल रखा जाता है।
2. माता को प्रिय भोग
गुड़ और चने को संतोषी माता का प्रिय भोग माना जाता है। मान्यता है कि इससे माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं और व्रती की मनोकामना पूरी करती हैं।
3. धार्मिक नियम: खट्टा निषेध
व्रत के दिन खट्टा (जैसे नींबू, दही, इमली आदि) खाना या परोसना वर्जित होता है। इसकी जगह मीठे और सात्विक पदार्थ जैसे गुड़-चना को प्रसाद में शामिल किया जाता है।
4. आर्थिक रूप से हर किसी के लिए संभव
गुड़ और चना आमतौर पर सभी वर्ग के लोगों की पहुँच में होता है। इसीलिए संतोषी माता का व्रत गरीब-अमीर सभी के लिए समान रूप से सहज और फलदायक है।
5. स्वास्थ्य लाभ भी छिपे हैं
गुड़ और चना दोनों ही स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। व्रत के दौरान ऊर्जा देने और शरीर को शक्ति प्रदान करने में यह सहायक होते हैं।
🌺 व्रत में उपयोग की विधि
- पूजा के बाद माता को गुड़ और भुने हुए चने का भोग अर्पित किया जाता है।
- व्रती स्वयं भी गुड़-चना का सेवन करता है और इसे प्रसाद रूप में अन्य लोगों को भी वितरित करता है।
- व्रत में कहीं भी खट्टा न परोसा जाए, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है।
🌸 मान्यता
यह भी कहा जाता है कि यदि किसी ने व्रत में खट्टा खा लिया, या भोग में खट्टा परोस दिया, तो माता रुष्ट हो जाती हैं और व्रत का फल नहीं मिलता।
2025 सावन (श्रावण माह)का पहला सोमवार कब है
https://www.youtube.com/@bhaktikibhavnaofficial/videos
संतोषी माता व्रत
संतोषी माता व्रत