
श्री हनुमानजी के सुंदरकांड का भाग 1
श्री हनुमानजी के सुंदरकांड का भाग 1 में श्रीरामचरितमानस से सुंदरकांड के प्रारंभिक श्लोक और कथा आती है। इसमें हनुमानजी द्वारा श्रीराम के कार्य सिद्ध करने के लिए समुद्र पार कर सीता माता की खोज करने का वर्णन है।
सुंदरकांड का प्रारंभिक दोहा:
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
कथा का आरंभ:
- वानर सेना के बीच यह चिंता थी कि माता सीता कहाँ हैं।
- श्रीराम के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करने हेतु, श्री हनुमानजी ने अपने भीतर छिपे बल और आत्मविश्वास को पहचाना।
- सुग्रीव ने हनुमानजी को यह कार्य सौंपा कि वे लंका जाकर सीता माता का पता लगाएं।
- हनुमानजी ने भगवान सूर्य, पर्वत, और अन्य देवताओं से आशीर्वाद लिया।
फिर, हनुमानजी समुद्र के किनारे पहुंचे। वहाँ से उन्होंने समुद्र को पार करने का निश्चय किया और विशाल पर्वत समान रूप धारण किया।
हनुमानजी का समुद्र पर कूदना:
हनुमानजी ने “जय श्रीराम” का उद्घोष करते हुए छलांग लगाई। समुद्र के जीव, जैसे सुरसा और सिंहिका, ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, लेकिन अपनी चतुराई और पराक्रम से हनुमानजी ने उन सबको परास्त कर दिया।
सुंदरकांड के इस प्रारंभिक भाग में हनुमानजी की निष्ठा, बल और श्रीराम के प्रति उनकी भक्ति का वर्णन होता है।
क्या आप इस पर विस्तृत विवरण या कुछ और श्लोक चाहते हैं?
सुंदरकांड में श्रीरामचरितमानस के मुख्य श्लोक इस प्रकार से आते हैं। सुंदरकांड की शुरुआत भगवान श्री हनुमानजी की स्तुति और उनकी लीलाओं का वर्णन करते हुए होती है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण श्लोक दिए गए हैं:
सुंदरकांड का आरंभिक दोहा:
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
हनुमानजी का समुद्र पार करना:
हनुमानजी जब समुद्र को लांघने लगे, तो उनकी शक्ति और श्रीराम के प्रति भक्ति का वर्णन इस चौपाई में मिलता है:
बदनु उघारि त्रासु जसु दीन्हा। राम काजु सुनि हृदय अलीन्हा॥
समुद्र तीर हनुमत ठहरा। चितव नभु कुसुमित गगन गहरा॥
हनुमानजी का प्रस्थान:
जब हनुमानजी ने समुद्र पर छलांग लगाई, तो उनका मनोबल और श्रीराम के प्रति उनका समर्पण इस तरह प्रकट होता है:
राम दूत अतुलित बलधामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
हनुमानजी की उड़ान:
समुद्र पर उड़ते समय उन्होंने कहा:
जिनके रामु बसहु हियँ जाकें। कपि मन बच क्रम रघुपति जाकें॥
राम काजु किन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम। हरषि चलेउ हनुमत बल देखै सुर ग्राम॥
क्या आप किसी विशेष श्लोक, चौपाई, या घटना का वर्णन चाहते हैं?
कृपया बताइए, आप सुंदरकांड के किसी विशेष भाग (जैसे हनुमानजी की लंका यात्रा, सीता माता से भेंट, या लंका दहन) का श्लोक, चौपाई, या उसका विस्तृत अर्थ चाहते हैं? मैं उसे आपके लिए प्रस्तुत कर दूंगा।
जैसे हनुमानजी की लंका यात्रा, सीता माता से भेंट, या लंका दहन) का श्लोक, चौपाई, या उसका विस्तृत अर्थ चाहते हैं
सुंदरकांड में हनुमानजी की लंका यात्रा, माता सीता से भेंट, और लंका दहन के कई महत्वपूर्ण श्लोक और चौपाइयां हैं। मैं इन्हें क्रमवार प्रस्तुत करता हूँ:
1. हनुमानजी की लंका यात्रा (समुद्र पार करना)
हनुमानजी ने श्रीराम का कार्य पूरा करने के लिए समुद्र पार किया। उनकी शक्ति और भक्ति का वर्णन इस चौपाई में है:
चौपाई:
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम।
हरषि चलेउ हनुमत बल देखै सुर ग्राम॥
अर्थ:
हनुमानजी कहते हैं, “जब तक श्रीराम का कार्य पूरा नहीं होता, मुझे विश्राम नहीं मिलेगा।” यह कहते हुए वे उत्साहपूर्वक समुद्र पार करने के लिए आगे बढ़े। देवता उनके बल को देखकर आनंदित हुए।
2. लंका में प्रवेश
हनुमानजी ने लंका में प्रवेश करते हुए रात्रि के समय सीता माता की खोज शुरू की।
चौपाई:
लंका सो कोटि समुद्र-सी खाई।
जात पवनसुत बारि न लाई॥
अर्थ:
लंका किले के समान थी और उसके चारों ओर गहरी खाई थी। परंतु हनुमानजी, पवनपुत्र होने के कारण, बिना किसी बाधा के वहाँ पहुँच गए।
3. सीता माता से भेंट
हनुमानजी को अशोक वाटिका में माता सीता मिलीं। उन्होंने श्रीराम की अंगूठी देकर अपना परिचय दिया और श्रीराम का संदेश सुनाया।
चौपाई:
कह हनुमान सुनहु माता, सोइ दशरथ के बालक।
तिन्ह के काज कृपा करि, तुम्ह पर रघुकुल नायक॥
अर्थ:
हनुमानजी माता सीता से कहते हैं, “हे माता! मैं दशरथजी के पुत्र श्रीराम का दूत हूँ। रघुकुल नायक श्रीराम ने आपको अपना संदेश दिया है और आपको शीघ्र मुक्त करने का वचन दिया है।”
4. लंका दहन
लंका दहन से पहले, रावण के सैनिकों ने हनुमानजी को बाँध लिया। लेकिन अपनी शक्ति से उन्होंने लंका में आग लगा दी।
चौपाई:
निज पद नख मनहुँ विद्रुम समाना।
जलनिधि रघुपति दूत बखाना॥
अर्थ:
हनुमानजी ने अपनी पूंछ में आग लगने के बाद लंका को जला दिया। उनकी पूंछ मानो लाल मणियों के समान चमक रही थी। उन्होंने लंका जलाकर रावण के अहंकार को समाप्त किया।
5. अंत में श्रीराम की जय:
लंका से लौटकर हनुमानजी श्रीराम के पास पहुँचते हैं और पूरी कथा सुनाते हैं।
चौपाई:
नाथ पवित्र कीन्हेउँ पावन।
राम कथा जग मंगल दावन॥
अर्थ:
हनुमानजी श्रीराम से कहते हैं, “हे प्रभु! आपके कार्य को करके मैंने अपने जीवन को पवित्र कर लिया। आपकी कथा से जगत का कल्याण होता है।”