
रथ सप्तमी व्रत और पूजा विधि
रथ सप्तमी व्रत और पूजा सूर्य देव की आराधना के लिए किया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है और इसे सूर्य देव के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। रथ सप्तमी को “सूर्य जयंती” भी कहा जाता है। इस दिन सूर्य भगवान रथ पर सवार होकर उत्तरायण में प्रवेश करते हैं।
रथ सप्तमी व्रत और पूजा विधि
- स्नान:
प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें। विशेष रूप से, गंगाजल मिलाकर स्नान करना शुभ माना जाता है। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें। - सूर्य देव का ध्यान:
स्नान के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाएं। तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल चंदन, रोली और लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। यह प्रक्रिया सुबह सूर्योदय के समय करनी चाहिए। - व्रत का संकल्प:
साफ आसन पर बैठकर व्रत का संकल्प लें। व्रत का उद्देश्य सूर्य देव की कृपा प्राप्त करना और स्वास्थ्य, सुख, और समृद्धि की कामना करना होता है। - पूजा सामग्री:
- लाल फूल
- लाल वस्त्र
- चंदन
- दीपक
- गुड़ और गेहूं का प्रसाद
- सूर्य देव की प्रतिमा या चित्र
- पूजा विधि:
- सूर्य देव की प्रतिमा को साफ कपड़े से पोंछकर उनकी पूजा करें।
- दीप प्रज्वलित करें और सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें।
- सूर्य देव के लिए विशेष भोग लगाएं, जैसे खीर, गुड़ और गेहूं से बने पकवान।
- सूर्य देव की आरती करें।
- मंत्र जाप:
रथ सप्तमी के दिन सूर्य मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।- “ॐ सूर्याय नमः”
- “ॐ घृणि सूर्याय नमः”
- “ॐ आदित्याय च विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।”
- व्रत कथा:
पूजा के दौरान या बाद में रथ सप्तमी की कथा का पाठ करें। यह कथा सुनने से व्रत का पुण्य फल मिलता है। - दान-पुण्य:
इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करना शुभ माना जाता है। गाय, तिल और गुड़ का दान विशेष फलदायक होता है।
रथ सप्तमी का महत्व
- यह पर्व स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
- सूर्य देव की पूजा से जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य देव की कृपा से जीवन में मान-सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है।
रथ सप्तमी व्रत और पूजा विधि