रंभा एकादशी व्रत करने से मिलता है अखंड सौभाग्य
रंभा एकादशी व्रत करने से मिलता है अखंड सौभाग्य – संपूर्ण जानकारी
हिंदू धर्म में वर्षभर आने वाली 24 एकादशियों का विशेष महत्व बताया गया है। हर एकादशी व्रत व्यक्ति के जीवन से पापों का नाश करती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। रंभा एकादशी उन्हीं पवित्र एकादशियों में से एक है। यह एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को अखंड सौभाग्य, वैवाहिक सुख और जीवन में समृद्धि प्राप्त होती है।
रंभा एकादशी का पौराणिक महत्व
रंभा एकादशी का नाम “रंभा” नामक अप्सरा के नाम पर पड़ा है, जो अपने सौंदर्य और सतीत्व के लिए प्रसिद्ध थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस एकादशी के व्रत का पालन करने से न केवल सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं बल्कि व्यक्ति को जन्म-जन्मांतर के बंधनों से भी मुक्ति मिलती है।
भगवान विष्णु इस दिन रंभा एकादशी व्रत रखने वालों पर विशेष कृपा बरसाते हैं और उनके जीवन से दरिद्रता, दुःख और कलह का अंत होता है।
रंभा एकादशी व्रत करने का लाभ
- अखंड सौभाग्य की प्राप्ति: इस व्रत को करने वाली महिलाएँ अपने पति के दीर्घायु और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
- वैवाहिक जीवन में प्रेम और शांति: दांपत्य जीवन में आपसी प्रेम बढ़ता है और मनमुटाव दूर होता है।
- धन और समृद्धि की वृद्धि: यह व्रत करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और धन की वृद्धि होती है।
- पापों का नाश: व्यक्ति के पूर्वजन्म के पापों का क्षय होता है और आत्मा शुद्ध होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति: रंभा एकादशी व्रत से भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष प्राप्त होता है।
रंभा एकादशी व्रत विधि (विस्तृत रूप में)
1. व्रत की तैयारी (एक दिन पहले – दशमी तिथि)
- रंभा एकादशी से एक दिन पूर्व, अर्थात दशमी तिथि को दोपहर बाद से ही व्रती को संयम रखना चाहिए।
- इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि तामसिक वस्तुओं का सेवन वर्जित है।
- शाम को स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- रात्रि में विष्णु नाम का स्मरण करते हुए शुद्ध भाव से सोएं और अगले दिन व्रत का संकल्प लें।
2. एकादशी के दिन प्रातःकालीन नियम
- एकादशी की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- स्नान के जल में गंगाजल या तुलसीदल अवश्य मिलाएं ताकि शरीर और मन दोनों शुद्ध हों।
- स्वच्छ पीले या सफेद वस्त्र धारण करें, क्योंकि ये भगवान विष्णु के प्रिय रंग हैं।
- पूजा स्थल को साफ करें और वहां पीले कपड़े का आसन बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. संकल्प विधि
- अपने दाएं हाथ में जल, अक्षत, पुष्प और थोड़ी-सी दाल रखकर यह संकल्प लें – “मम सर्वपापक्षयपूर्वक श्रीहरिप्रीत्यर्थं रंभा एकादशीव्रतं करिष्ये।”
(अर्थात्: मैं अपने समस्त पापों के नाश और भगवान विष्णु की प्रसन्नता हेतु रंभा एकादशी व्रत कर रहा/रही हूँ।)
4. पूजा की विधि
- भगवान विष्णु का आवाहन करें – दीपक जलाकर भगवान का ध्यान करें।
- भगवान को गंगाजल, अक्षत, चंदन, फूल, तुलसी पत्र, धूप, दीप, नैवेद्य और फल अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
- एकादशी के दिन अन्न का पूर्ण त्याग करें। यदि आवश्यक हो तो केवल फल, दूध या जल ग्रहण करें।
- दिनभर भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करें और भजन-कीर्तन में समय बिताएं।
- रंभा एकादशी की कथा श्रद्धापूर्वक पढ़ें या सुनें।
5. सायंकालीन पूजा विधि
- सूर्यास्त के बाद पुनः स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
- दीपक जलाकर भगवान विष्णु की आरती करें।
- पूजा के बाद घर के प्रत्येक कोने में दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
- भगवान से अखंड सौभाग्य, वैवाहिक सुख और परिवार की समृद्धि की प्रार्थना करें।
6. रात्रि जागरण
- एकादशी की रात जागरण करना अत्यंत शुभ माना गया है।
- यदि संभव हो तो रात्रि में भजन-कीर्तन या विष्णु नाम का जाप करें।
- भगवान की लीलाओं का स्मरण करते हुए भक्ति भाव में समय बिताएं।
7. द्वादशी तिथि (पारण का दिन)
- अगले दिन द्वादशी तिथि को प्रातःकाल स्नान करें और भगवान विष्णु की पुनः पूजा करें।
- भगवान को तुलसी पत्र और फल अर्पित करें।
- फिर ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन कराएं, वस्त्र या दान दें।
- इसके बाद स्वयं पारण करें — अर्थात फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- ध्यान रहे कि पारण का समय द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले होना चाहिए।
8. विशेष नियम और सावधानियां
- व्रत के दौरान किसी का अपमान न करें, असत्य न बोलें, और क्रोध से दूर रहें।
- व्रत में मन, वाणी और कर्म की पवित्रता आवश्यक है।
- तामसिक भोजन, झूठ, और हिंसा से दूर रहना चाहिए।
- पति-पत्नी दोनों यदि इस व्रत को साथ करें तो दांपत्य जीवन में सौहार्द और सुख बढ़ता है।
🌷 9. व्रत का फल
महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से फलदायी माना गया है — इससे पति की आयु लंबी होती है और वैवाहिक जीवन सुखी रहता है।
रंभा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अखंड सौभाग्य, वैवाहिक सुख, और समृद्ध जीवन प्राप्त होता है।
इस व्रत से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, और भगवान विष्णु की कृपा से घर में शांति और सुख का वास होता है।
रंभा एकादशी व्रत कथा (संक्षेप में)
पौराणिक कथा के अनुसार, मंधाता नामक राजा ने अपने राज्य में प्रजा के दुखों से व्याकुल होकर तपस्या आरंभ की। उन्हें नारद जी ने रंभा एकादशी व्रत का विधान बताया। राजा ने विधिवत व्रत किया, जिससे उसके राज्य में शांति, वर्षा और समृद्धि लौटी। इस व्रत के प्रभाव से राजा को अखंड यश और सौभाग्य प्राप्त हुआ।
विशेष बातें
- रंभा एकादशी का व्रत महिलाओं के लिए अत्यंत शुभ माना गया है, विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों के लिए।
- इस दिन दान-पुण्य, गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।
- व्रत के दौरान मन, वाणी और कर्म से शुद्ध रहना आवश्यक है।
निष्कर्ष
रंभा एकादशी व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अखंड सौभाग्य, सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक भी है। जो भी भक्त श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को करता है, उसके जीवन में वैवाहिक सुख, पारिवारिक सौहार्द और आर्थिक स्थिरता बनी रहती है।
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