परिवर्तिनी एकादशी व्रत के बाद द्वादशी के दिन गाय को भोजन कराने की परंपरा
द्वादशी के दिन गाय को भोजन कराने की परंपरा
हिंदू धर्म में गाय को “माता” का दर्जा प्राप्त है। शास्त्रों में कहा गया है कि गाय में समस्त देवताओं का वास माना जाता है। यही कारण है कि व्रत, पर्व और विशेष तिथियों पर गाय की पूजा और सेवा का महत्व बताया गया है।
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखने के बाद जब द्वादशी तिथि आती है, तो इस दिन व्रत पारण (उपवास खोलना) करने से पहले गाय को भोजन कराना शुभ माना गया है। मान्यता है कि द्वादशी पर गाय को हरा चारा, गुड़, आटा या खिचड़ी खिलाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।
👉 धार्मिक महत्व
- गाय को भोजन कराने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य में वृद्धि होती है।
- यह कर्म गोसेवा और गोसंरक्षण की भावना को बढ़ाता है।
- द्वादशी पर गोभोजन कराने से व्रती को मोक्ष और विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- शास्त्रों के अनुसार, गोभोजन कराने से पितरों की भी तृप्ति होती है।
👉 प्रथा और विधि
- व्रतधारी द्वादशी की सुबह स्नान करके पूजा करते हैं।
- भगवान विष्णु को अर्पित प्रसाद का एक भाग गाय को अर्पित किया जाता है।
- सामान्यत: गाय को हरा चारा, फल, गुड़-आटा मिश्रण, या खिचड़ी खिलाई जाती है।
- गोमाता को प्रणाम कर आशीर्वाद लिया जाता है, फिर स्वयं पारण किया जाता है।
यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण और समाज में गोसंरक्षण की भावना को भी मजबूत करती है।
लाभ (Benefits)
- आध्यात्मिक लाभ – भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।
- पापों का नाश – गोभोजन कराने से पिछले जन्मों और वर्तमान जीवन के दोष कम होते हैं।
- पितृ तृप्ति – शास्त्रों में वर्णित है कि द्वादशी पर गाय को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
- धन-समृद्धि की वृद्धि – घर में सुख-समृद्धि, अन्न-धन की वृद्धि और लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
- स्वास्थ्य लाभ – गोसेवा और गौमाता से जुड़ाव मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा देता है।
- सामाजिक लाभ – इससे समाज में गोसंरक्षण और करुणा की भावना बढ़ती है।
📖 शिक्षा (Lessons)
- गाय का सम्मान करें – गौमाता केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि जीवनोपयोगी दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- प्रकृति संरक्षण का संदेश – गोभोजन कराने से हमें पशु-पक्षियों और प्रकृति की रक्षा करने की प्रेरणा मिलती है।
- दान और सेवा की भावना – यह परंपरा सिखाती है कि व्रत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि जीवों की सेवा के लिए भी होना चाहिए।
- विनम्रता और कृतज्ञता – जब हम गौमाता को अन्न अर्पित करते हैं, तो यह हमें विनम्र और आभारी बनाता है।
- संतुलित जीवन का संदेश – व्रत, पूजा, सेवा और दान—इन सबका संतुलन ही वास्तविक धर्म है।
👉 संक्षेप में, द्वादशी पर गाय को भोजन कराने से केवल धार्मिक पुण्य ही नहीं मिलता, बल्कि यह हमें दया, सेवा, करुणा और संरक्षण की शिक्षा भी देता है।
