
जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि और समय 2025
2025 में जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया व्रत) की प्रमुख तिथियाँ और समय
1. नहाय-खाय (व्रत से एक दिन पहले स्नान एवं भोजन):
- तिथि: 13 सितंबर 2025 (शनिवार)
2. निर्जला उपवास (व्रत का “ओठगन”) की तिथि:
- तिथि: 14 सितंबर 2025 (रविवार)
- अष्टमी तिथि का प्रारंभ: 14 सितंबर सुबह 5:04 बजे
- अष्टमी तिथि का समापन: 15 सितंबर 2025 तड़के 3:06 बजे
3. पारण (उपवास तोड़ने का समय):
- तिथि: 15 सितंबर 2025 (सोमवार)
- समय: सुबह लगभग 6:10 बजे से 8:32 बजे तक
सारांश तालिका
चरण | तिथि और समय |
---|---|
नहाय-खाय | 13 सितंबर 2025 (शनिवार) |
व्रत (उपवास) प्रारंभ | 14 सितंबर 2025 (रविवार), 05:04 AM से |
उपवास समाप्त | 15 सितंबर 2025 (सोमवार), 03:06 AM तक |
पारण (उपवास तोड़ना) | 15 सितंबर 2025 (सोमवार), सुबह 6:10–8:32 AM |
व्रत का महत्व और पद्धति संक्षेप में
- यह व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। 2025 में यह दिन 14 सितंबर (रविवार) है।
- व्रती महिलाएं पूर्ण निर्जला (जल-रहित) उपवास रखती हैं और जिमूतवाहन देवता, पक्षीराज गरुड़ तथा सियारिन की पूजा करती हैं।
- पारण के समय स्नान के बाद विधिवत पूजा-अर्चना के साथ अन्न ग्रहण किया जाता है।
निष्कर्ष
यदि आप 2025 में जीवित्पुत्रिका व्रत का पालन करना चाहती/चाहते हैं:
- 13 सितंबर को नहाय-खाय का आयोजन सुनिश्चित करें।
- 14 सितंबर सुबह 5:04 बजे के बाद से निर्जला व्रत करें।
- 15 सितंबर की सुबह (6:10–8:32 AM) के बीच पारण करें।
🌺 जीवित्पुत्रिका व्रत के लाभ (Benefits) और महत्व (Significance) 🌺
✅ जीवित्पुत्रिका व्रत के लाभ
- संतान की दीर्घायु – यह व्रत संतान के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए किया जाता है।
- संतान की रक्षा – संतान पर आने वाले संकट, रोग और दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।
- सुख-समृद्धि की प्राप्ति – घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- कठिनाइयों से मुक्ति – संतान के जीवन में आने वाली बाधाओं और कठिनाइयों का निवारण होता है।
- पारिवारिक सुख – माता-पिता और संतान के रिश्ते में प्रेम और मजबूती आती है।
- आध्यात्मिक शांति – व्रत से मन में अनुशासन, संयम और भक्ति की भावना आती है।
- पुत्र-पुत्री दोनों के लिए शुभ – यह व्रत केवल पुत्र ही नहीं बल्कि पुत्रियों की भी रक्षा करता है।
- लोककल्याणकारी प्रभाव – व्रत से केवल परिवार ही नहीं, बल्कि पूरे समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।
- पितरों की कृपा – इस व्रत के पालन से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
- संकल्प शक्ति की वृद्धि – निर्जला व्रत करने से मानसिक बल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
🌿 जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
- यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है।
- इसे ‘जितिया व्रत’ भी कहते हैं।
- यह व्रत मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में विशेष श्रद्धा से किया जाता है।
- माताएं संतान के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह कठिन व्रत रखती हैं।
- इसमें निर्जला उपवास रखा जाता है, यानी व्रती न तो अन्न ग्रहण करती हैं और न ही जल।
- व्रत में जिमूतवाहन नागराज की कथा का विशेष महत्व होता है।
- यह व्रत मातृत्व के निःस्वार्थ प्रेम और त्याग का प्रतीक है।
- धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से संतान पर आने वाले संकट स्वतः ही टल जाते हैं।
- इसे करने से माता दुर्गा और भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है।
- जीवित्पुत्रिका व्रत भारतीय संस्कृति में मातृत्व शक्ति और संतान के प्रति समर्पण का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है।
🌺 जीवित्पुत्रिका व्रत में पूजा करने के उपाय 🌺
जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया) में संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए माताएँ यह कठिन निर्जला व्रत करती हैं। यहाँ इसके पूजा के उपाय और विधि बताए जा रहे हैं:
🪔 पूजा के उपाय और विधि
- नहाय-खाय (पहला दिन)
- सप्तमी तिथि को व्रती महिलाएँ स्नान कर शुद्ध आहार (सात्विक भोजन) करती हैं।
- इस दिन कद्दू-भात या अन्य शुद्ध भोजन किया जाता है।
- निर्जला उपवास (दूसरा दिन)
- अष्टमी तिथि को सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन अन्न, जल, फल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना है।
- स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को सजाएँ।
- पूजा की तैयारी
- पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
- मिट्टी या लकड़ी का चौकी रखकर उस पर जिमूतवाहन (नागराज) और गरुड़ का चित्र या मूर्ति रखें।
- फूल, दीपक, धूपबत्ती, चंदन, रोली, सिंदूर और नैवेद्य अर्पित करें।
- पूजन क्रम
- भगवान विष्णु, माता दुर्गा और जिमूतवाहन देवता का ध्यान करें।
- धूप-दीप जलाएँ और आरती करें।
- व्रत कथा (जिमूतवाहन और सियारिन की कथा) श्रद्धापूर्वक सुनें।
- संतान की रक्षा, दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
- व्रत कथा सुनना
- कथा सुनना इस व्रत का मुख्य अंग है।
- कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है।
- पारण (तीसरा दिन)
- नवमी तिथि को प्रातः स्नान के बाद पूजा करें।
- भगवान को भोग अर्पित करने के बाद व्रती फलाहार या भोजन ग्रहण कर सकती हैं।
- पारण का समय पंचांग के अनुसार ही करना चाहिए।
🌿 विशेष उपाय
- पूजा में लाल फूल, सिंदूर और दीप अवश्य अर्पित करें।
- अगर संभव हो तो नदी या तालाब के किनारे पूजा करना शुभ माना जाता है।
- संतान को मिठाई या फल खिलाकर आशीर्वाद दें।
- व्रत कथा सुनते समय संपूर्ण ध्यान और श्रद्धा बनाए रखें।
🌺 जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया व्रत) की पूजा सामग्री 🌺
जीवित्पुत्रिका व्रत में संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। इस व्रत में कुछ विशेष सामग्रियों का उपयोग किया जाता है।
🪔 पूजा सामग्री सूची
- गंगाजल – स्थान शुद्ध करने के लिए
- मिट्टी या लकड़ी की चौकी – पूजन स्थल के लिए
- कलश (जल से भरा हुआ) – पूजा में स्थापित करने हेतु
- जिमूतवाहन नागराज और गरुड़ की तस्वीर/प्रतिमा
- दीपक (घी या तेल का)
- धूप/अगरबत्ती
- रोली, कुमकुम, चंदन
- अक्षत (चावल)
- सिंदूर
- लाल एवं पीले पुष्प
- मौली (धागा)
- पान, सुपारी
- फल (केला, नारियल, मौसमी आदि)
- पुष्पमाला
- सात प्रकार के अनाज (सप्तधान्य)
- पका हुआ अन्न (नैवेद्य के लिए)
- मिठाई (लड्डू, खीर, मालपुआ आदि)
- कच्चा दूध और दही
- सुपेली या पत्तल – भोग अर्पण के लिए
- आरती की थाली – दीप, कपूर और घंटी सहित
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