छठी मईया की पूजा से कैसे मिलती है संतान सुख की प्राप्ति
छठ पूजा का धार्मिक महत्व
छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देने और छठी मईया की आराधना करने से जीवन में न केवल स्वास्थ्य और समृद्धि आती है, बल्कि जो दंपत्ति संतान की इच्छा रखते हैं, उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है।
यह पर्व शुद्धता, संयम और आत्मबल का प्रतीक है। व्रती चार दिनों तक बिना नमक, बिना तेल और बिना लहसुन-प्याज वाला भोजन करते हैं। यह साधना शरीर और मन को शुद्ध करती है, जिससे दिव्य आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
छठी मईया और संतान का संबंध
छठी मईया को संतान की देवी कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने भी कार्तिक मास में छठ व्रत किया था, जिसके बाद उन्हें कार्तिकेय के रूप में संतान सुख प्राप्त हुआ।
इसी कारण कहा जाता है कि जो महिलाएं निसंतान होती हैं या संतान सुख की कामना करती हैं, वे श्रद्धा और पूर्ण निष्ठा से छठी मईया की पूजा करें — मईया अवश्य उनकी झोली संतान सुख से भर देती हैं।
छठ पूजा की विशेष विधि संतान सुख के लिए
- नहाय-खाय (पहला दिन): शुद्धता से दिन की शुरुआत कर सादा भोजन किया जाता है। यह शरीर और मन की पवित्रता का प्रतीक है।
- खरना (दूसरा दिन): व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम को गुड़ और चावल की खीर, रोटी और केले का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देकर परिवार की समृद्धि और संतान की रक्षा की कामना की जाती है।
- उषा अर्घ्य (चौथा दिन): उदय होते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान सुख और आरोग्य की कामना की जाती है। इसी दिन व्रत पूर्ण होता है।
संतान प्राप्ति के लिए विशेष नियम और आस्था
- व्रत के दौरान पूर्ण शुद्धता, सात्विकता और मन की पवित्रता आवश्यक है।
- महिलाएं लाल या पीले वस्त्र धारण करें — यह शुभ माना जाता है।
- सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय संतान की प्राप्ति की मनोकामना मन में रखें।
- छठी मईया को प्रसन्न करने के लिए पाँच फल (केला, सेब, अमरूद, नारियल और सिंघाड़ा) अर्पित करें।
- पूजा के बाद परिवार सहित छठी मईया की आरती करें और संतान सुख की कामना करें।
छठ पूजा के लाभ
- निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- संतान की रक्षा और लंबी आयु के लिए छठी मईया का आशीर्वाद मिलता है।
- परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
- मन, शरीर और आत्मा शुद्ध होकर दिव्य शक्ति से जुड़ते हैं।
निष्कर्ष:
छठ पूजा केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि मातृत्व और आस्था का अद्भुत संगम है। छठी मईया की सच्चे मन से की गई पूजा से हर प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति का आशीर्वाद सहज ही मिल जाता है।
पहला दिन – नहाय-खाय (शुद्धि का दिन)
महत्व:
इस दिन व्रती स्नान करके अपने शरीर और घर की शुद्धि करते हैं। शुद्ध जल से स्नान के बाद घर को साफ किया जाता है और पूजा स्थल तैयार किया जाता है।
विधि:
- प्रातः नदी, तालाब या गंगा जल से स्नान करें।
- स्नान के बाद घर में पवित्र स्थान पर सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- सादा और सात्विक भोजन तैयार करें (लौकी-चावल या कद्दू-चावल) बिना लहसुन, प्याज और नमक के।
- भोजन पहले सूर्य देव को अर्पित करें, फिर स्वयं ग्रहण करें।
- इस दिन से व्रती पूर्ण सात्विक जीवन का पालन करते हैं।
दूसरा दिन – खरना (निर्जला व्रत का आरंभ)
महत्व:
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह व्रती के आत्मबल और संयम की परीक्षा का दिन माना जाता है।
विधि:
- दिनभर जल और भोजन का त्याग करें।
- सूर्यास्त के बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मिट्टी या पीतल के दीपक में घी का दीप जलाएं।
- प्रसाद बनाएं — गुड़ की खीर, गेहूं की रोटी और केला।
- छठी मईया को पहले प्रसाद अर्पित करें और फिर व्रती ग्रहण करें।
- पूजा के बाद घर के सभी सदस्य खरना प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य)
महत्व:
इस दिन व्रती शाम के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह अर्घ्य सूर्यदेव की ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए समर्पित होता है।
विधि:
- प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा की तैयारी करें।
- बाँस की टोकरी या दऊरा में पूजा सामग्री सजाएं – ठेकुआ, केला, नारियल, सिंघाड़ा, नींबू, गन्ना, सुपारी, चावल, दीपक आदि।
- व्रती महिलाएं साड़ी या पारंपरिक वस्त्र पहनकर घाट (नदी या तालाब) की ओर जाती हैं।
- सूर्यास्त के समय अस्त होते सूर्य को जल, दूध और फूल अर्पित करें।
- छठी मईया के गीत गाएं और आरती करें।
- संतान सुख, परिवार की समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य (उदयमान सूर्य को अर्घ्य)
विधि:
- व्रती प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- पूजा की सारी सामग्री लेकर घाट या नदी किनारे जाएं।
- उगते सूर्य को जल, दूध और पुष्प अर्पित करें।
- छठी मईया से परिवार, संतान और स्वास्थ्य की कामना करें।
- अर्घ्य के बाद व्रत का पारण करें — यानी गुड़, चावल और दूध का प्रसाद ग्रहण करें।
विशेष नियम और सावधानियां:
- व्रत के दौरान सात्विकता और पवित्रता का पालन अनिवार्य है।
- व्रती को किसी प्रकार का क्रोध, झूठ या विवाद नहीं करना चाहिए।
- व्रती द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र धुले और शुद्ध होने चाहिए।
- प्रसाद में तेल, नमक या तामसिक पदार्थों का प्रयोग नहीं होता।
- पूजा के दौरान घर या घाट पर शुद्ध जल से मंडप बनाया जाता है।
- छठी मईया के गीत और आरती व्रत के दौरान विशेष रूप से गाए जाते हैं।
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