कार्तिक मास प्रदोष व्रत: भगवान शिव की कृपा पाने का पावन अवसर
प्रदोष व्रत का महत्व
‘प्रदोष’ शब्द का अर्थ होता है — संध्या काल, जब दिन और रात का संगम होता है। यह समय भगवान शिव की उपासना का सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा और भक्ति से इस दिन व्रत रखकर शिव-पार्वती की पूजा करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
शिवपुराण में कहा गया है —
“प्रदोषे तु महादेवः पूजितः सर्वकामदः।”
अर्थात् — प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
व्रत व पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर के व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन व्रत रखें — फलाहार या निर्जल रह सकते हैं अपनी क्षमता अनुसार।
- संध्या काल में शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, अक्षत और पुष्प अर्पित करें।
- दीप जलाकर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
- शिव-पार्वती की आरती करें और परिवार की सुख-शांति की प्रार्थना करें।
कार्तिक मास में प्रदोष व्रत का विशेष फल
कार्तिक मास स्वयं में ही अत्यंत पुण्यदायक होता है, और जब इसमें प्रदोष व्रत किया जाए तो उसका फल कई गुना बढ़ जाता है।
यह व्रत पापों से मुक्ति, वैवाहिक सुख, संतान की प्राप्ति, और मानसिक शांति प्रदान करता है।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन शिव-पार्वती की कृपा से भक्त को वही फल मिलता है, जो कठिन तप से प्राप्त होता है।
आध्यात्मिक संदेश
कार्तिक मास का प्रदोष व्रत केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और भक्ति का अवसर है।
इस दिन शिवजी के चरणों में श्रद्धा अर्पित कर हम अपने भीतर की नकारात्मकता को मिटाकर आत्मबल और सकारात्मकता प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष
कार्तिक मास प्रदोष व्रत हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और नियमित साधना से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
जो भक्त इस दिन श्रद्धा से व्रत करता है, भगवान शिव उस पर सदैव कृपालु रहते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं।
“हर प्रदोष शिव आराधना का पर्व है, और कार्तिक प्रदोष उसका सबसे उज्ज्वल रूप।”
🕉️ हर हर महादेव!
