
ऋषि पंचमी पर सात ऋषियों के नाम और मिलने वाले लाभ
ऋषि पंचमी पर जिन सप्तऋषियों की पूजा की जाती है, उनके नाम इस प्रकार हैं –
- अत्रि ऋषि
- कश्यप ऋषि
- भारद्वाज ऋषि
- विश्वामित्र ऋषि
- गौतम ऋषि
- जमदग्नि ऋषि
- वशिष्ठ ऋषि
👉 इन्हीं सप्तऋषियों की स्मरण और पूजा भादो मास की ऋषि पंचमी पर करने का विधान है।
🌿 ऋषि पंचमी व्रत से मिलने वाले लाभ
- पापों से मुक्ति – विशेषकर मासिक धर्म के समय भूलवश हुई अशुद्धियों से स्त्रियों को शुद्धि मिलती है।
- सप्तऋषियों का आशीर्वाद – सप्तऋषियों की कृपा से जीवन में ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- आरोग्य की प्राप्ति – इस व्रत से शरीर में रोग-व्याधियों का नाश होता है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
- संतान सुख की प्राप्ति – जिन स्त्रियों को संतान की इच्छा हो, उन्हें इस व्रत से लाभ मिलता है।
- गृहकलह से मुक्ति – दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है और घर में सद्भाव बना रहता है।
- पूर्वजों की तृप्ति – इस व्रत से पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त होती है।
- पुण्य की प्राप्ति – व्रत करने से अनेक यज्ञों और दानों के समान पुण्य प्राप्त होता है।
- भव बंधनों से मुक्ति – इस व्रत से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
- आत्मिक शुद्धि – मन, वाणी और कर्म की पवित्रता बढ़ती है।
- धन-समृद्धि – घर-परिवार में लक्ष्मी का वास होता है और दरिद्रता दूर होती है।
✨ इसलिए, ऋषि पंचमी व्रत को आध्यात्मिक शुद्धि और पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
🌿 ऋषि पंचमी व्रत कथा 🌿
बहुत समय पहले एक ब्राह्मण दंपति रहते थे। उनके घर में एक कन्या थी। वह कन्या विवाह के योग्य होने पर एक योग्य ब्राह्मण से विवाह कर दी गई। विवाह के कुछ समय बाद वह कन्या अचानक कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गई।
उसकी इस स्थिति से दुखी होकर उसके माता-पिता एक ऋषि के पास गए और समाधान पूछा।
ऋषि ने ध्यान करके बताया –
“यह कन्या अपने पूर्व जन्म में स्त्री थी। मासिक धर्म के दिनों में शुद्धाचार का पालन न करने और गलती से रसोई का काम करने के कारण यह पाप लगा है। इसी कारण इसे इस जन्म में यह दुःख भोगना पड़ रहा है।”
तब ऋषि ने उपाय बताते हुए कहा –
“भाद्रपद मास की शुक्ल पंचमी के दिन स्त्रियाँ ऋषि पंचमी व्रत करें, सप्तऋषियों की पूजा करें और नियमपूर्वक उपवास करके कथा सुनें। ऐसा करने से पापों का क्षय होता है और रोगमुक्ति मिलती है।”
ऋषि की आज्ञा से उस कन्या और उसकी माता ने ऋषि पंचमी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से कन्या कुष्ठ रोग से मुक्त हो गई और पुनः सुंदर व स्वस्थ हो गई।
✨ तभी से यह व्रत प्रचलित हुआ और कहा जाता है कि इसे करने से स्त्रियों के पाप नष्ट होते हैं, सात पीढ़ियाँ तृप्त होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
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