
अमावस्या का मतलब क्या होता है?
हिंदी में “अमावस” उस रात को कहते हैं जब चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता। इसे “अमावस्या” भी कहा जाता है। यह हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की 15वीं तिथि होती है, जब चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य के साथ संरेखित होता है और उसकी रोशनी पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाती।
अमावस्या को शुभ और अशुभ दोनों रूपों में देखा जाता है। यह दिन पितरों की पूजा और श्राद्ध करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन कुछ लोग इसे नए काम शुरू करने के लिए अशुभ मानते हैं।
धार्मिक महत्व
- पितरों की पूजा और श्राद्ध:
अमावस्या को पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति के लिए पूजा-अर्चना और तर्पण करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितर धरती पर आते हैं और उनकी संतुष्टि से परिवार पर आशीर्वाद बना रहता है। - स्नान और दान:
पवित्र नदियों या तीर्थ स्थानों पर स्नान और दान करने का भी महत्व है। यह पुण्य अर्जित करने और जीवन के कष्टों से मुक्ति पाने का मार्ग माना जाता है। - अन्नदान और गरीबों की मदद:
इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन दान करने से विशेष फल मिलता है।
ज्योतिषीय महत्व
अमावस्या को चंद्रमा और सूर्य एक ही राशि में होते हैं, जिससे यह समय ग्रहों की स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। इस दिन ग्रहों की ऊर्जा का उपयोग विशेष साधनाओं और अनुष्ठानों के लिए किया जाता है।
सामाजिक और पारंपरिक महत्व
अमावस्या को नई योजनाओं और बड़े कार्यों के लिए शुभ नहीं माना जाता है, लेकिन जीवन में शांति और संतुलन लाने के लिए इसे उपयुक्त समय माना जाता है।
- मौनी अमावस्या
- महालया अमावस्या
- शनि अमावस्या