
हनुमान जी की बाल कथा बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है। आइए इसे विस्तार से जानते हैं।
हनुमान जी का जन्म
हनुमान जी का जन्म वानरराज केसरी और माता अंजना के पुत्र के रूप में हुआ था। वे भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं। उनकी माता अंजना ने शिव जी की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें पुत्ररत्न का वरदान दिया।
एक दिन जब राजा दशरथ अपने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे, तब अग्निदेव ने उन्हें दिव्य खीर दी। उसी समय, पवन देव (वायु देवता) के आशीर्वाद से उस खीर का एक अंश माता अंजना को भी प्राप्त हुआ, जिससे हनुमान जी का जन्म हुआ। इस कारण उन्हें पवनपुत्र भी कहा जाता है।
बाल हनुमान और सूर्य को फल समझना
हनुमान जी बचपन से ही अत्यंत बलशाली और चंचल थे। एक बार जब वे बहुत छोटे थे, तब उन्हें भूख लगी और उन्होंने आकाश में चमकते हुए सूर्य को देखकर उसे एक लाल फल समझ लिया। वे उछलकर आकाश में उड़ने लगे और सूर्य को पकड़ने के लिए तेजी से आगे बढ़े।
इस घटना से इंद्रदेव चिंतित हो गए और उन्होंने अपने वज्र से हनुमान जी पर प्रहार कर दिया, जिससे वे अचेत होकर धरती पर गिर पड़े। यह देखकर पवन देव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने वायु प्रवाह को रोक दिया। इससे पूरे संसार में हाहाकार मच गया—पेड़-पौधे सूखने लगे, प्राणी तड़पने लगे।
देवताओं ने मिलकर पवन देव को शांत किया और हनुमान जी को होश में लाने के लिए ब्रह्मा जी, विष्णु जी और अन्य देवताओं ने उन्हें अनेक वरदान दिए।
हनुमान जी को मिले वरदान
- ब्रह्मा जी – अजेय और अमरता का वरदान दिया।
- विष्णु जी – अनंत बल और बुद्धि प्रदान की।
- इंद्रदेव – वज्र से चोट के बदले उनका शरीर वज्र से भी कठोर बना दिया।
- अग्निदेव – उन्हें अग्नि से अजर-अमर कर दिया।
- वरुणदेव – जल में अजेय रहने का वरदान दिया।
- यमराज – उन्हें मृत्यु से मुक्ति दी।
- सूर्यदेव – उन्हें अपार ज्ञान प्रदान किया।
बाल हनुमान की शरारतें और ऋषियों का श्राप
हनुमान जी अत्यंत चंचल थे और अपने अलौकिक बल से ऋषियों की तपस्या भंग कर दिया करते थे। उनकी शरारतों से परेशान होकर ऋषियों ने उन्हें यह श्राप दे दिया कि वे अपने बल और शक्ति को तब तक भूल जाएंगे जब तक कोई उन्हें उनकी शक्ति का स्मरण न कराए। यही कारण था कि जब रामायण के युद्ध में उन्हें समुद्र लांघना था, तब जामवंत जी ने उन्हें उनकी शक्ति का स्मरण कराया था।
बाल हनुमान की शिक्षा
हनुमान जी को सूर्यदेव ने गुरु बनकर शिक्षा दी। वे बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे और उन्होंने वेद, शास्त्र, व्याकरण और नीति शास्त्र में अपार ज्ञान प्राप्त किया।
निष्कर्ष
हनुमान जी का बाल्यकाल हमें यह सिखाता है कि अपार शक्ति और बुद्धि होने के बावजूद, विनम्रता और धैर्य आवश्यक हैं। उनकी कथा प्रेरणा देती है कि यदि हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानें, तो असंभव भी संभव हो सकता है।
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हनुमान जी की बाल कथा
हनुमान जी की बाल कथा