
वैद्यनाथ प्राकट्योत्सव वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो झारखंड के देवघर जिले में स्थित है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। वैद्यनाथ प्राकट्योत्सव व्रत उस पावन तिथि को समर्पित है, जब भगवान शिव वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। यह व्रत शिवभक्तों द्वारा विशेष श्रद्धा और भक्ति भाव से किया जाता है।
व्रत की महिमा और महत्व
- भगवान शिव की कृपा प्राप्ति – इस व्रत को करने से भक्तों को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- आरोग्य एवं समृद्धि – वैद्यनाथ नाम स्वयं में ही “वैद्य” शब्द लिए हुए है, जिससे संकेत मिलता है कि यह व्रत आरोग्य और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है।
- पापों से मुक्ति – शिवपुराण में कहा गया है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
- मनोकामना पूर्ति – जो भी भक्त सच्चे मन से यह व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
व्रत विधि
- व्रत का संकल्प – प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान शिव की पूजा – शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, शहद, बेलपत्र, धतूरा और भांग अर्पित करें।
- वैदनाथ ज्योतिर्लिंग का ध्यान – वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का ध्यान करके “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करें।
- विशेष आरती – सायंकाल भगवान शिव की विशेष आरती करें और भोग अर्पण करें।
- रात्रि जागरण एवं कथा श्रवण – इस दिन रात्रि जागरण करना शुभ माना जाता है, जिसमें शिवपुराण या वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा सुनी जाती है।
- दान-पुण्य – अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें और फिर व्रत का पारण करें।
महत्वपूर्ण मंत्र
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
- महामृत्युंजय मंत्र का जप
- ॐ नमः शिवाय का 108 बार जाप करें।
यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जो रोगों से मुक्ति, दीर्घायु, समृद्धि और मोक्ष की कामना रखते हैं।
भौम प्रदोष व्रत 2025 – तिथि, महत्व और पूजन विधि
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