
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत
संकष्टी गणेश चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण उपवास (व्रत) है, जिसे हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से संकटों को दूर करने और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रखा जाता है। यदि यह चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, जो अत्यधिक शुभ मानी जाती है।
व्रत विधि
- स्नान एवं संकल्प: प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- गणेश पूजन: गणपति की प्रतिमा/चित्र की स्थापना कर विधिवत पूजा करें।
- मंत्र जप: “ॐ गं गणपतये नमः” या गणेश जी के अन्य मंत्रों का जप करें।
- व्रत का पालन: दिनभर उपवास रखें, फलाहार या केवल पानी ग्रहण कर सकते हैं।
- चंद्रदर्शन: रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।
भोग एवं प्रसाद
गणेश जी को मोदक, लड्डू, दूर्वा, तिल और गुड़ अर्पित करें।
महत्व
- संकष्टी का अर्थ है “संकट को हरने वाला”।
- यह व्रत करने से कष्टों से मुक्ति और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
- विद्यार्थी, व्यापारी और भक्तों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।
- संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत से मिलने वाली शिक्षाएँ
- धैर्य और संयम: दिनभर उपवास रखने से आत्मसंयम और धैर्य का विकास होता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक गुण हैं।
- श्रद्धा और भक्ति: भगवान गणेश की पूजा और मंत्र जप से आस्था और ईश्वर पर विश्वास बढ़ता है।
- संकटों से न घबराना: संकष्टी का अर्थ ही है “संकटों का नाश करने वाली”। यह हमें सिखाती है कि धैर्य और भक्ति से हर कठिनाई का समाधान संभव है।
- सद्बुद्धि और ज्ञान: गणपति को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। उनकी उपासना हमें सही निर्णय लेने और जीवन में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा देती है।
- सादगी और संयमित आहार: इस व्रत में सात्विक भोजन का महत्व होता है, जिससे शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।
- कर्म और फल: व्रत का पालन करने से यह सीख मिलती है कि कर्म करना हमारे हाथ में है, और सही कर्मों का फल अवश्य मिलता है।
- यह व्रत हमें मानसिक और आत्मिक रूप से मजबूत बनाता है। 🙏
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