
यहाँ पर सुंदरकांड के दोहे और चौपाइयों के भाग 2 (20-25 तक) का हिंदी अर्थ प्रस्तुत है।
दोहे (20-25):
- सुनि सठ तोहि समान उपकारी। नहिं जग मीत हमारे नारी॥
तब हनुमंत कही मति भारी। सुनु कपि तोहि समान हितकारी॥अर्थ:
रावण ने सीता जी से कहा, “हे नारी, हमारे इस संसार में तुमसे बढ़कर उपकार करने वाला कोई नहीं।”
हनुमान जी ने तब कहा, “हे रावण, तेरे समान हितकारी तो कोई और नहीं। तेरा व्यवहार ही तेरा विनाश करेगा।”
- जैसे बहोरि करत तव लीला। प्रभु कृपा जब होइ सुबीला॥
नहिं तव त्रास रूप मन रंक। तव भय बिनु न जपे हरि अंक॥अर्थ:
हनुमान जी कहते हैं, “भगवान राम की कृपा से सब कुछ संभव है। उनके बिना संसार के पापी व्यक्ति भयमुक्त नहीं हो सकते। केवल भय से ही मनुष्य ईश्वर का स्मरण करता है।”
- राखो नाथ मम काज विचारा। आपहि मति करि करहु सुधारा॥
सुनु कपि करत बचन जिय भारी। हरिजन मेटहु काज तुम्हारी॥अर्थ:
सीता जी ने हनुमान जी से कहा, “हे हनुमान, प्रभु श्रीराम मेरे इस संकट का विचार करेंगे और मुझे इस विपत्ति से निकालेंगे। आपसे प्रार्थना है कि मेरी यह बात प्रभु को पहुँचा देना।”
- नाथ सकल सुखदायक दाता। राम कृपा होहि बिनु संता॥
नहिं दुख तव प्रभु करुनाकर। राम भजन बिनु नष्ट अहंकार॥अर्थ:
“श्रीराम सबको सुख देने वाले हैं। उनकी कृपा के बिना यह कष्ट समाप्त नहीं हो सकते। उनके भजन से ही अहंकार समाप्त होता है और मनुष्य का उद्धार होता है।”
- करत विनय कपि मन अनुमाना। सदा रहहु रघुनाथ समाना॥
सुनि कपि चरित सुनहु मन मोह। प्रभु काज करन सिय जो मन जोह॥अर्थ:
हनुमान जी ने श्रीराम के गुणों की महिमा सुनाई और प्रार्थना की कि सीता जी प्रभु पर भरोसा बनाए रखें। उन्होंने श्रीराम का कार्य पूर्ण करने का आश्वासन दिया।
सारांश:
इन दोहों और चौपाइयों का मुख्य भाव यह है कि हनुमान जी सीता माता को श्रीराम का संदेश देते हैं और उन्हें आश्वस्त करते हैं कि भगवान राम उन्हें शीघ्र ही इस संकट से मुक्त करेंगे। साथ ही, हनुमान जी भगवान राम की कृपा और उनके गुणों की महिमा का वर्णन करते हैं।
चौपाइयाँ (20-25):
1.
मोर कहा सब साचा लागी। सखी सहित मन भा अभागी॥
तजि धीरज मन अनत न आवा। हृदयँ बिचार करउँ बलि जावा॥
अर्थ:
सीता जी कहती हैं, “हनुमान! तुम्हारी बातों से मुझे सच्चाई का अनुभव हो रहा है। फिर भी मेरे दुर्भाग्य के कारण मन स्थिर नहीं हो रहा। मैं अपने हृदय में विचार करती हूँ कि प्रभु राम मुझे शीघ्र ही उद्धार करने आएंगे।”
2.
सुनि सीता दुःख प्रभु सनेहू। कहत अति अमित भगति बिशेषू॥
जिन्ह कें श्रवन गावहिं हरि लीला। तिन्ह कर सकल मनोरथ सीला॥
अर्थ:
हनुमान जी सीता जी के दुख और श्रीराम के प्रेम को सुनकर कहते हैं, “भगवान श्रीराम की भक्ति असीम है। जिनके कानों में श्रीहरि की लीलाएं गूँजती हैं, उनके सभी मनोरथ (इच्छाएँ) स्वतः पूर्ण हो जाते हैं।”
3.
कह हनुमान कथा प्रभु कारी। स्रमुनि सप्रेम सुनत सुकुमारी॥
मुदित सीत हृदयँ अनुमाना। प्रभु कारज लगि कपि अवतारा॥
अर्थ:
हनुमान जी श्रीराम की कथा सुनाते हैं, जिसे सीता जी बड़े प्रेम और श्रद्धा से सुनती हैं। उनके मन को यह विश्वास हो जाता है कि श्रीराम का कार्य करने के लिए हनुमान जी ने अवतार लिया है।
4.
सुनु माता साची प्रभु बानी। सीता तें कछु नाहिं परानी॥
नाथ चरन तव गहिअ उदारा। कपि मन बचन काज निस्तारा॥
अर्थ:
हनुमान जी कहते हैं, “हे माता! यह सब प्रभु श्रीराम की सत्य वाणी है। उनके समान कोई और महान नहीं। आप धैर्य रखें। प्रभु श्रीराम आपके उद्धार के लिए शीघ्र ही यहाँ आएंगे।”
5.
कहु कपि सब सुबचन तुम्हारा। सुनि हरषि जननी तन सारा॥
अतिसय प्रेम मगन मन जानी। हरषि चलीं मुख बचन न आनी॥
अर्थ:
सीता जी हनुमान जी के शुभ वचनों को सुनकर अत्यंत प्रसन्न होती हैं। उनके तन-मन में आनंद भर जाता है। अपार प्रेम के कारण उनका मन इतना भाव-विभोर हो जाता है कि उनके मुख से कुछ बोल ही नहीं निकलता।
सारांश:
इन चौपाइयों में श्रीहनुमान जी सीता माता को श्रीराम की कथा सुनाकर उन्हें धैर्य बँधाते हैं। सीता जी को यह विश्वास हो जाता है कि हनुमान जी राम के प्रिय सेवक हैं और उनके उद्धार का समय निकट है। यह प्रसंग भगवान की भक्ति, प्रेम, और विश्वास का प्रतीक है।
श्री हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) का हिंदी अर्थ (25-35 तक)
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हनुमान जी के सुंदरकांड के 1-10 दोहे (भाग 2)
सुंदरकांड के दोहे और चौपाइयों के भाग 2 (20-25 तक) का हिंदी अर्थ