
श्री हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) का हिंदी अर्थ (25-35 तक)
दोहा 25:
कपि तनय करि प्रभु पद सेवा।
राम कृपा सुख संदेह भेवा।।
लंक कपटि सुनाई सब बाता।
सुनि हरषे रघुपति मन भ्राता।।
अर्थ:
हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम के चरणों की सेवा की और उन्हें सीता माता की स्थिति और लंका के बारे में बताया। श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण ने यह सुनकर प्रसन्नता प्रकट की।
दोहा 26:
लंका काजु बिनु मोहि न सोहा।
रामकाज करिबे को लोभा।।
संकट हरन मंगल मूरति।
करुना सील उर धरुति।।
अर्थ:
हनुमान जी कहते हैं कि श्रीराम के कार्य के बिना मेरा जीवन निरर्थक है। वे संकट हरने वाले, मंगलमूर्ति और करुणा के सागर हैं। उनका कार्य करना ही मेरे जीवन का ध्येय है।
दोहा 27:
कपि करी करुनामय बिनती।
अतुल बल तनय दया दिति।।
हरष राम हरि धन जन पावन।
मन संदेह हरन मन भावन।।
अर्थ:
हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम के प्रति अत्यंत विनम्रता से प्रार्थना की। उनकी विनम्रता और समर्पण ने श्रीराम को प्रसन्न कर दिया। उनका कार्य संपन्न होते देख श्रीराम और उनके सभी अनुयायी हर्षित हो गए।
दोहा 28:
सुनि प्रभु बचन चरन सिय धाया।
कृपा सिंधु कपि गति मन भाया।।
हरि सिया राम गुन गन गावे।
दुख हरन कृपा करि सुख पावे।।
अर्थ:
श्रीराम के वचन सुनकर हनुमान जी ने उनके चरणों में सिर नवाया। उनके समर्पण ने प्रभु की कृपा को और भी अधिक बढ़ा दिया। प्रभु श्रीराम और सीता जी के गुणों को गाकर हनुमान जी ने अपने सभी दुखों को भुला दिया और आनंद प्राप्त किया।
दोहा 29:
राम नाम बल तिन्ह लंकिन।
सिय सुख सेतु करुना बिन।।
सुनि रघुनाथ कपि करि उर धारा।
लंका सोक हरन सिय कारा।।
अर्थ:
श्रीराम के नाम के बल से हनुमान जी ने लंका में अपना कार्य संपन्न किया। प्रभु की करुणा से सीता माता को सांत्वना मिली। श्रीराम ने हनुमान जी की भक्ति को अपने हृदय में स्थान दिया।
दोहा 30:
प्रभु प्रेरित हनुमत बल संचा।
लंका उज्जवल मंगल रचा।।
हरष कपि मन सिया सुधि पाई।
कृपा प्रभु सिय राम सुनाई।।
अर्थ:
हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम की प्रेरणा से अपने अद्भुत बल और बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया। लंका को जलाने और सीता माता की खबर लाने के बाद वे श्रीराम की कृपा से अत्यंत प्रसन्न हुए।
दोहा 31:
कपि पुनि बिनय करि प्रभु सेवा।
संकट हरन कृपा के देवा।।
सुनि हरषित सब मिलि रघुवर।
कृपा प्रसन्न कपि चित्त सुहावन।।
अर्थ:
हनुमान जी ने फिर से श्रीराम के चरणों की सेवा की और उनकी कृपा का गुणगान किया। श्रीराम और उनके सभी अनुयायियों ने प्रसन्न होकर हनुमान जी की भक्ति को सराहा।
दोहा 32:
लंका करुना सिंधु कहि गाई।
सिया सुख हेतु कृपा बरसाई।।
हरष राम चित कपि गति जानी।
मन संदेह हरि लीला बखानी।।
अर्थ:
लंका में श्रीराम की करुणा और कृपा का विस्तार हुआ। सीता जी की खुशी के लिए हनुमान जी ने प्रभु का संदेश पहुँचाया। उनकी सेवा देखकर श्रीराम के मन में हर्ष हुआ।
दोहा 33:
प्रभु कृपा करि कपि गति भोरी।
राम काजु भजि सिय निहोरी।।
सुनि हरषित मन बस रघुनाथा।
कपि बिनय हरि चित उपराथा।।
अर्थ:
श्रीराम ने हनुमान जी की भक्ति और सेवा को देखकर उन्हें और अधिक कृपा दी। हनुमान जी के प्रयासों से प्रभु का हृदय भर आया और वे उनकी विनम्रता से अत्यंत प्रसन्न हुए।
दोहा 34:
सुनि हरष मन बस रघुवर।
लंका रचि गुनगान अधर।।
सीतहि सुभग करुणा बखानी।
राम सुमिरन मन हरि बखानी।।
अर्थ:
हनुमान जी के लंका में किए गए कार्यों की चर्चा हर ओर होने लगी। सीता माता के प्रति करुणा और प्रेम से प्रेरित होकर श्रीराम ने उनके उद्धार का संकल्प लिया।
दोहा 35:
रामकाज करिबे मन होई।
हरि कृपा मनु बिनय संतोषि।।
हरष कपि मन राम सुधि पाई।
लंका सीता सुधि प्रभु सुनाई।।
अर्थ:
हनुमान जी ने मन से श्रीराम के कार्य को पूरा करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी कृपा और भक्ति के बल पर प्रभु का हृदय जीत लिया। लंका की पूरी जानकारी और सीता माता की स्थिति श्रीराम को सुनाकर वे अत्यंत हर्षित हुए।
श्री हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) का हिंदी अर्थ (25-35 तक)
श्री हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) का हिंदी अर्थ (25-35 तक)
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