
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि:
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित एक विशेष व्रत है, जो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से संकटों को दूर करने और सुख-समृद्धि प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसे “संकट हरण चतुर्थी” भी कहा जाता है।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि:
- प्रातःकाल स्नान और संकल्प:
- प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
- भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने व्रत का संकल्प लें।
- पूजा सामग्री:
पूजा के लिए धूप, दीप, मोदक (गणेश जी का प्रिय प्रसाद), लड्डू, फूल, दुर्वा घास, पान, सुपारी, नारियल और चंदन आदि का उपयोग करें। - पूजा विधि: संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि:
- भगवान गणेश की प्रतिमा को साफ करें और पीले या लाल वस्त्र पहनाएं।
- गणेश जी को दुर्वा, फूल, अक्षत (चावल), और चंदन अर्पित करें।
- धूप और दीप जलाएं।
- गणेश जी के मंत्रों का जाप करें, जैसे:
“ॐ गं गणपतये नमः”
“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।”
- व्रत का पालन:
- इस दिन व्रती निर्जला या फलाहार व्रत रख सकते हैं।
- शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
- चंद्रमा को अर्घ्य:
- रात्रि के समय चंद्रमा को जल, दूध, और कुमकुम मिश्रित अर्घ्य अर्पित करें।
- चंद्रमा की पूजा के साथ भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त करें।
- व्रत कथा:
पूजा के दौरान या बाद में संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा सुनना या पढ़ना शुभ माना जाता है।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा:
व्रत कथा में भगवान गणेश की लीलाओं का वर्णन किया जाता है। यह कथा बताती है कि कैसे भगवान गणेश ने भक्तों के कष्टों को हर लिया और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान की।
महत्व:
- इस व्रत को करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
- भगवान गणेश की कृपा से कार्यों में सफलता, बुद्धि और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है।
नोट: इस व्रत का पालन श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि: