
हनुमान जी के सुंदरकांड के 1-10 दोहे (भाग 2) हनुमान जी के सुंदरकांड के 1-10 दोहे (भाग 2)
श्री हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) का हिंदी अर्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ। सुंदरकांड श्रीरामचरितमानस का वह भाग है, जिसमें हनुमान जी की लंका यात्रा और उनके अद्भुत पराक्रम का वर्णन है।
दोहा 1-10 का हिंदी अर्थ:
दोहा 1: जासु नाम जपि सुनहि भवानी। भव बिनसे जनि जाइ त्रिव्रानी।।
नाम प्रभाउ जान कपि धीर। गयो उदधि बंधन महँ चीर।।
अर्थ:
जिसका नाम जपने से भवानी भव (जन्म-मरण का चक्र) का नाश हो जाता है, वही भगवान श्रीराम का नाम लेकर हनुमान जी समुद्र को लाँघने के लिए आगे बढ़े।
दोहा 2: ताहि नाम बल बानर लंका। सब के भंजे कठिन अंक।।
लंका में प्रवेश कर तहं, किय अन्वेषण उचित सुहं।।
अर्थ:
श्रीराम के नाम के बल से वानरराज हनुमान ने लंका में प्रवेश किया और वहाँ श्री सीता माता का पता लगाने का उचित कार्य आरंभ किया।
दोहा 3: मंदिर मंदिर पवन तनय, खोजे सकल मही।
रावन महल बिचारि तब, गयो जानकी हथि।।
अर्थ:
हनुमान जी ने लंका के मंदिर-मंदिर और घर-घर जाकर सीता माता को खोजा। अंत में वे रावण के महल में पहुँचे और वहाँ माता जानकी का पता लगाया।
दोहा 4: आसन सीतहि रचि रुचिर, देखत कपि हरष।
नयन मूंदि धीर धरि, धीर बलहि प्रसन्न।।
अर्थ:
हनुमान जी ने माता सीता को अशोक वाटिका में बैठा हुआ देखा। उन्हें देखकर उनके हृदय में हर्ष हुआ। वे अपनी प्रसन्नता को संभालते हुए उन्हें सान्त्वना देने की तैयारी करने लगे।
दोहा 5: दीनहीन प्रभु के दरस, कहत राम गुण गात।
सुनि सीता करुना भरी, भइं प्रीति जलजात।।
अर्थ:
हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम के गुणों का गान करते हुए सीता जी के सामने स्वयं को उनके दूत के रूप में प्रस्तुत किया। यह सुनकर सीता जी के हृदय में करुणा और प्रेम का संचार हुआ।
दोहा 6: कह कपि सुनु मातु अनुग्रह, हरि संदेसु सुनाओ।
धीरज धरो सो मम बलिहारी, कपि सुत संग चलाओ।।
अर्थ:
हनुमान जी ने सीता माता से कहा, “माता, श्रीराम का संदेश सुनें और धैर्य धारण करें। आपके उद्धार के लिए प्रभु जल्द ही आएँगे।”
दोहा 7: लंका में तैं लंकन देखे, सबहि उचित सही।
रावन कर प्रभुत्व तजि, रामहि सेवक सही।।
अर्थ:
हनुमान जी ने लंका के लोगों और वहाँ के वातावरण का निरीक्षण किया। उन्होंने रावण के अहंकार और प्रभु श्रीराम की सेवा के श्रेष्ठ मार्ग का ज्ञान कराया।
दोहा 8: जितेन्द्रिय कपि शील बल, प्रभु करि कृपा विशाल।
अशोक तरु मम रुखहि समुझि, भइ प्रत्यक्ष हाल।।
अर्थ:
हनुमान जी अपने संयम, शील और बल से अशोक वाटिका में स्थित सीता माता के पास पहुँचे और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया।
दोहा 9: नाम सुमिरि पवन तनय, करहु मम काज।
प्रभु पाय चरन देखि करहु तजि मोह आज।।
अर्थ:
हनुमान जी ने श्रीराम का नाम स्मरण करते हुए सीता माता से निवेदन किया कि वे अपना दुःख छोड़कर प्रभु के चरणों में विश्वास रखें।
दोहा 10: धन्य धन्य कपि तोहि कहि, कह ममता बिन मीत।
राम नाम मम प्राण है, जानहु सच्चे हीत।।
अर्थ:
सीता माता ने हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए कहा, “हे कपि, धन्य हो तुम। राम का नाम ही मेरे प्राण हैं और वही मेरे सच्चे हितैषी हैं।”
https://zeenews.india.com/hindi/astro/sundarkand-path-translation-in-hindi/1723223
हनुमान जी के सुंदरकांड के 1-10 दोहे (भाग 2)
हनुमान जी के सुंदरकांड के 1-10 दोहे (भाग 2)