
गुणत्रयविभाग योग)
श्लोक 1-3: ज्ञान और सृष्टि का वर्णन
श्लोक 1
श्री भगवान ने कहा:
“मैं अब तुझे उत्तम ज्ञान बताऊंगा, जिससे ज्ञान को प्राप्त होकर ऋषियों ने इस संसार से मुक्त होकर परमसिद्धि प्राप्त की है।”
श्लोक 2
“यह ज्ञान प्राप्त करने से व्यक्ति मेरी स्थिति को प्राप्त करता है। वह जन्म-मरण के चक्र से ऊपर उठ जाता है और दुखों से मुक्त हो जाता है।”
श्लोक 3
“प्रकृति मेरी महत्तम योनि है। मैं इसमें गर्भ डालता हूं और इससे सभी जीव उत्पन्न होते हैं।”
श्लोक 4-6: सृष्टि और गुणों का उद्भव
श्लोक 4
“हे अर्जुन, जो भी शरीर धारण करते हैं, वे सब मेरी प्रकृति की कोख से उत्पन्न होते हैं, और मैं उनके पिता के रूप में स्थित हूं।”
श्लोक 5
“सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण – ये तीन गुण प्रकृति से उत्पन्न होते हैं और ये जीव को देह में बांधते हैं।”
श्लोक 6
“सत्त्वगुण शुद्धता और प्रकाश का प्रतीक है। यह व्यक्ति को ज्ञान और सुख की ओर प्रेरित करता है लेकिन बांधता भी है।”
श्लोक 7-9: गुणों का वर्णन
श्लोक 7
“रजोगुण वासना और क्रियाशीलता का प्रतीक है। यह इच्छाओं और कर्मों की लालसा के कारण बंधन उत्पन्न करता है।”
श्लोक 8
“तमोगुण अज्ञानता, आलस्य और जड़ता का प्रतीक है। यह व्यक्ति को मोह, निद्रा और प्रमाद में बांधता है।”
श्लोक 9
“सत्त्वगुण सुख से बांधता है, रजोगुण कर्म में और तमोगुण अज्ञान में।”
श्लोक 10-13: गुणों के प्रभाव और लक्षण
श्लोक 10
“तीनों गुण एक-दूसरे पर प्रभुत्व जमाने का प्रयास करते हैं। कभी सत्त्वगुण प्रबल होता है, तो कभी रजोगुण और कभी तमोगुण।”
श्लोक 11
“जब सत्त्वगुण प्रबल होता है, तब ज्ञान, पवित्रता और सुख का प्रकाश फैलता है।”
श्लोक 12
“जब रजोगुण प्रबल होता है, तब लोभ, कर्म की लालसा, अशांति और असंतोष बढ़ता है।”
श्लोक 13
“जब तमोगुण प्रबल होता है, तब अज्ञान, आलस्य, प्रमाद और मोह उत्पन्न होता है।”
श्लोक 14-18: गुणों के आधार पर गति
श्लोक 14
“जो व्यक्ति सत्त्वगुण में मृत्यु को प्राप्त करता है, वह उच्च लोकों (स्वर्ग) को प्राप्त होता है।”
श्लोक 15
“रजोगुण में मृत्यु प्राप्त करने वाला व्यक्ति पुनः मनुष्य योनि में जन्म लेता है।”
श्लोक 16
“तमोगुण में मृत्यु प्राप्त करने वाला व्यक्ति पशु योनि में या अधोगति को प्राप्त करता है।”
श्लोक 17
“सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से वासना और तमोगुण से अज्ञान।”
श्लोक 18
“सत्त्वगुण वाले ऊपर उठते हैं, रजोगुण वाले मध्य में रहते हैं और तमोगुण वाले अधोगति को प्राप्त होते हैं।”
श्लोक 19-20: गुणत्रय से पार जाने का मार्ग
श्लोक 19
“जब मनुष्य समझता है कि इन तीनों गुणों के प्रभाव से परे परमात्मा है, तब वह गुणत्रय को पार कर जाता है।”
श्लोक 20
“गुणत्रय से ऊपर उठने पर जीव जन्म-मरण, दुख-सुख के बंधनों से मुक्त हो जाता है और अमृत का अनुभव करता है।”
श्लोक 21-25: गुणों से मुक्त मनुष्य के लक्षण
श्लोक 21
अर्जुन ने पूछा: “हे प्रभु, गुणत्रय से पार हुए व्यक्ति के क्या लक्षण हैं? वह कैसे व्यवहार करता है?”
श्लोक 22
श्रीकृष्ण बोले: “गुणत्रय से मुक्त व्यक्ति सुख और दुख, सम्मान और अपमान, लाभ और हानि में समभाव रहता है।”
श्लोक 23
“वह व्यक्ति किसी भी चीज़ से आसक्त नहीं होता, और गुणों के प्रभाव से अछूता रहता है।”
श्लोक 24
“वह व्यक्ति मित्र और शत्रु में समान भाव रखता है और मोह-माया से दूर रहता है।”
श्लोक 25
“ऐसा व्यक्ति भगवान की भक्ति में लीन रहता है और संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।”
श्लोक 26-27: परमात्मा की शरण और मोक्ष का मार्ग
श्लोक 26
“जो व्यक्ति अनन्य भक्ति द्वारा मेरी सेवा करता है, वह गुणत्रय से ऊपर उठकर ब्रह्म की स्थिति को प्राप्त करता है।”
श्लोक 27
“मैं ब्रह्म का मूल आधार हूं और अमरता, शांति और अनंत आनंद का स्रोत हूं।”
निष्कर्ष:
14वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने गुणों के प्रभाव को समझाकर अर्जुन को सिखाया कि कैसे अनन्य भक्ति और समभाव से इन गुणों को पार किया जा सकता है। यह अध्याय आत्मज्ञान और मुक्ति का मार्ग दिखाता है।