हनुमान चालीसा पाठ एवं विस्तृत पूजा विधि
हनुमान जी, जिन्हें बजरंगबली, अंजनेय, पवनपुत्र और संकटमोचक के नाम से जाना जाता है, शक्ति, भक्ति, साहस और विनम्रता के प्रतीक हैं। उनका स्मरण करने मात्र से ही भय, बाधाएँ, नकारात्मकता और मानसिक तनाव दूर होने लगते हैं।
1. पूजा का समय व स्थान
- सर्वश्रेष्ठ समय:
- सुबह ब्रह्ममुहूर्त (4–6 बजे) या
- शाम सूर्यास्त के बाद
- मंगलवार और शनिवार विशेष फलदायी माने जाते हैं।
- स्थान स्वच्छ, शांत और हवा-दार हो।
2. आवश्यक सामग्री
- हनुमान जी की स्वच्छ/अक्षत मूर्ति या चित्र
- लाल आसन
- लाल पुष्प या गेंदा
- दीपक (घी या तिल का तेल)
- धूप/अगरबत्ती
- रोली, चावल
- सिंदूर
- जनेऊ
- तुलसी दल (यदि उपलब्ध हों)
- चालीसा पुस्तक/पाठ
- नैवेद्य (गुड़, चने का प्रसाद, केला आदि)
3. पूजा विधि (विस्तृत)
(१) शुद्धि और संकल्प
- नहाकर आएं और साफ कपड़े पहनें।
- पूजा स्थान पर बैठकर हाथ जोड़ें और मन में संकल्प लें:
“मैं भगवान श्री हनुमान की पूजा शांत मन और श्रद्धापूर्वक करने जा रहा/रही हूँ।”
(२) आसन लगाकर ध्यान
- लाल आसन पर बैठें।
- 1–2 मिनट गहरी साँस लेकर मन को शांत करें।
- हनुमान जी का ध्यान करें—गदा धारी, तेजस्वी, भक्तों के दुःख दूर करने वाले।
(३) दीपक एवं धूप प्रज्ज्वलन
- दीप जलाकर कहें:
“ॐ दीपज्योतिः परं ब्रह्म।” - धूप दिखाते समय:
“ॐ हनुमते नमः।”
(४) आचमन एवं शुद्धिकरण मंत्र
(यदि करना चाहें)
ॐ केशवाय स्वाहा।
ॐ नरायणाय स्वाहा।
ॐ माधवाय स्वाहा।
(५) आवाहन मंत्र
“ॐ हनुमते नमः, आयाहि आयाहि, उपस्थितो भव।”
(६) रोली-चावल, सिंदूर अर्पण
- हनुमान जी को सिंदूर विशेष प्रिय है।
- सिंदूर अर्पण करते समय:
“लाल देह लाली सदा, अरु धरि लाली धाम।
तामरस तिलक तरुनी, रुचि केसर की कान।”
(७) फूल अर्पण
“ॐ पवनसुताय पुष्पं समर्पयामि।”
(८) प्रसाद/Naiyvedya
- गुड़, चना, केला या बूंदी का प्रसाद अर्पित करें।
- हनुमान जी को तुलसी दल प्रिय माना जाता है (यदि घर में उपलब्ध हो)।
📜 4. हनुमान चालीसा पाठ (पूरा पाठ)
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केशा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कँठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र विभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माँही।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भूत-पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तै हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥
अंतकाल रघुवर पुर जाई।
जहाँ जनम हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
5. पाठ के बाद की क्रियाएँ
- शांत भाव से श्री राम-हनुमान का स्मरण करें।
- आरती करें—
“आरती कीजै हनुमान लला की…” - प्रसाद ग्रहण करें और सबमें बाँटें।
6. नियम एवं सावधानियाँ
- पाठ श्रद्धा और स्वच्छता से करें।
- मांस, मदिरा, तामसिक भोजन, अत्यधिक क्रोध आदि से परहेज़ रखें, विशेषकर मंगलवार/शनिवार।
- हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं—इसलिए पाठ में मन पवित्र और संयमित रखें।
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