बृहस्पतिवर के दिन केले के वृक्ष की पूजा कैसे करें
1. तर्पण से पहले का शुद्धि-चरण
(क) प्रातःकाल जागरण
- सूर्योदय से पहले उठें—यह पवित्र कर्म के लिए श्रेष्ठ समय है।
(ख) स्नान और शुद्धि
- स्वच्छ जल से स्नान करें।
- यदि संभव हो तो थोड़ी गंगा जल की बूंदें स्नान के बाद सिर पर डालें।
- पुरुष सामान्यतः धोती-कुर्ता, महिलाएँ साफ़ साड़ी/सलवार-कमीज़ पहनें।
- सफेद या हल्के रंग के वस्त्र अधिक शुभ माने जाते हैं।
(ग) व्रत का संकल्प
साफ़ मन और शांत भाव से हाथ जोड़कर कहें—
“आज मोक्षदा एकादशी के पावन दिन मैं भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए अपने पितरों के लिए तर्पण करूँगा/करूँगी। वे शांति और मोक्ष प्राप्त करें।”
2. तर्पण के लिए आवश्यक सामग्री (पूर्ण सूची)
| सामग्री | कारण / महत्व |
|---|---|
| ताँबे या पीतल का लोटा | सूर्य, अग्नि और पितृ-तत्त्व का प्रतीक |
| साफ़ जल | तर्पण का मुख्य माध्यम |
| काला तिल | पितरों के पवित्रीकरण और तृप्ति का साधन |
| सफेद/पीले फूल | शांति का संकेत |
| चावल (अक्षत) | अक्षय पुण्य का प्रतीक |
| कुशा | पितृ कर्मों में अनिवार्य (यदि उपलब्ध न हो तो छोड़ सकते हैं) |
| आसान या कुशासन | स्थिरता के लिए |
| दक्षिण दिशा | पितरों की दिशा |
3. तर्पण के लिए आसन और दिशा
दिशा — दक्षिण की ओर मुख
- पितर दक्षिण दिशा में माने जाते हैं।
- इसलिए तर्पण सदा दक्षिणाभिमुख होकर किया जाता है।
आसन
- कुशासन या साफ़ कपड़े पर बैठें।
- मन में कोई विकार न हो, शरीर स्थिर और सीधा हो।
4. तर्पण की तैयारी
- ताँबे के लोटे में साफ़ जल भरें।
- उसमें काला तिल, सफेद फूल और अक्षत (चावल) डालें।
- लोटे को दाहिने हाथ में पकड़े।
- यदि कुशा उपलब्ध हो तो दाहिने हाथ की अनामिका में कुशा की अंगूठी पहनें—यह पवित्रता का चिह्न है।
5. जल तर्पण की मुख्य विधि (सबसे महत्वपूर्ण चरण)
(क) हाथ की स्थिति
- दाहिने हाथ की अंजलि बनाकर (अंगूठे और तर्जनी के बीच से) जल छोड़ना चाहिए।
- इसे “कर्णवेधी तर्पण” कहा जाता है।
(ख) पितरों का स्मरण
- जिन पितरों के लिए तर्पण कर रहे हैं, उन्हें मन में याद करें—
जैसे दादा-दादी, नाना-नानी, पिता-माता, परिवार के दिवंगत सदस्य।
(ग) पहला तर्पण — सभी ज्ञात पितरों के लिए
जल छोड़ते हुए कहें—
“ॐ पितृदेवताभ्यो नमः, तिलोदकं समर्पयामि।”
(घ) दूसरा तर्पण — सभी अज्ञात पितरों के लिए
“ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः, इदं तिलोदकं।”
(ङ) तीसरा तर्पण — कुल में जन्म लेने वाले भविष्य पितरों के लिए
“ॐ सर्वपितृभ्यो नमः, तिलोदकं समर्पयामि।”
प्रत्येक तर्पण धीमे-धीमे जल बहाकर किया जाता है।
6. पितरों के मोक्ष हेतु विशेष प्रार्थना (सरल भाषा में)
यदि मंत्र याद न हों तो सरल प्रार्थना भी कर सकते हैं—
“हे मेरे पितरों, आप जहाँ कहीं भी हों, यह जल, तिल और श्रद्धा आपकी शांति व मोक्ष का कारण बने। कृपा करके अपने आशीर्वाद से हमें धर्म, आयु, समृद्धि और सद्बुद्धि दें।”
7. भगवान विष्णु की उपासना (एकादशी की विशेषता)
मोक्षदा एकादशी विष्णु प्रीय तिथि है।
तर्पण के बाद —
- विष्णु भगवान के सामने दीप जलाएँ।
- तुलसीदल अर्पित करें।
- यह मंत्र जपें:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
या
“ॐ नारायणाय नमः”
यह पितर शांति को और अधिक फलदायी बनाता है।
8. तर्पण के बाद का भाग — दान और सत्कर्म
तर्पण पूर्ण माना जाता है जब उसके बाद कोई पवित्र दान किया जाए।
आप यह दे सकते हैं—
- फल
- तिल
- गुड़
- भोजन
- वस्त्र
- या जरूरतमंद को कोई भी सहायता
दान करने से पितरों को पूर्ण तृप्ति प्राप्त होती है।
9. तर्पण करते समय क्या न करें (बहुत महत्वपूर्ण)
- एकादशी के दिन अनाज का सेवन न करें।
- लहसुन/प्याज़ से परहेज़।
- मांस, शराब, तंबाकू बिल्कुल न लें।
- झूठ, क्रोध, अपशब्द, विवाद से बचें।
- तर्पण खेल-तमाशे की तरह न करें—पूरी गंभीरता से करें।
10. तर्पण का गूढ़ आध्यात्मिक फल
मोक्षदा एकादशी पर तर्पण करने से—
- पितरों की अशांति दूर होती है
- पितृ-दोष में कमी आती है
- परिवार में सौभाग्य, आयु और संतति-प्राप्ति के योग बढ़ते हैं
- घर में शांति और रोगों में कमी देखी जाती है
- पितरों को मोक्ष और उत्तम लोक की प्राप्ति होती है
यह तिथि वर्ष की सबसे फलदायी एकादशी मानी जाती है।
11. तर्पण के लिए आवश्यक सामग्री
- ताँबे/पीतल का लोटा
- काला तिल
- जल
- कुशा (यदि उपलब्ध)
- सफेद फूल
- अक्षित (चावल)
- पितरों का स्मरण
12. तर्पण करने की दिशा
- तर्पण हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके किया जाता है।
- यह पितरों की दिशा मानी जाती है।
13. तर्पण विधि (जल तर्पण)
- लोटे में जल भरें।
- उसमें काला तिल, फूल, और चावल मिलाएँ।
- दायाँ हाथ आगे बढ़ाएँ (कुशा की अंगूठी हो तो पहनें)।
- पितरों का नाम लेते हुए जल धीरे-धीरे धरती पर छोड़ें।
उदाहरण मंत्र (सरल):
“ॐ पितृदेवताताभ्यो नमः, तिलोदकं समर्पयामि।”
या साधारण भाषा में भी कह सकते हैं:
“हे पितरों, यह तर्पण आपको समर्पित है, कृपा करें और आशीर्वाद दें।”
14. तीन बार जल अर्पण
तर्पण सामान्यतः तीन बार किया जाता है—
- पितृगणों के लिए
- कुलदेवों के लिए
- सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों के लिए
15. विष्णु पूजन
मोक्षदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है।
- श्रीहरि की पूजा करें
- तुलसी दल अर्पित करें
- “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र जप करें
यह पितरों को मोक्ष व शांति दिलाने में विशेष फलदायी माना जाता है।
16. ब्राह्मण/जरूरतमंद को दान
तर्पण के बाद
- भोजन, कपड़े, फल, तिल
या - कोई भी सत्कर्म का दान करें
यह पितृ तर्पण को पूर्णता देता है।
17. क्या न करें (महत्वपूर्ण)
- एकादशी पर अनाज नहीं खाएँ
- मद्य, मांसाहार, लहसुन-प्याज़ से परहेज़
- किसी का अपमान न करें
- क्रोध, असत्य, हिंसा से दूर रहें
मोक्षदा एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
