
अहोई अष्टमी व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत क्यों किया जाता है?
अहोई अष्टमी व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की कामना के लिए माताएं रखती हैं।
जैसे करवा चौथ व्रत पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है, वैसे ही अहोई अष्टमी व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है।
इस दिन माताएं निर्जला उपवास रखती हैं और शाम को अहोई माता (अहोई भगवती) की पूजा करती हैं। संध्या के समय तारों के दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत की कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha)
बहुत समय पहले एक साहूकार था जिसकी सात बेटे और एक बहू थी। एक दिन बहू अपने घर की मरम्मत के लिए मिट्टी लाने जंगल में गई। वहां उसने मिट्टी खोदते समय गलती से एक सिहोरा (साही) के बच्चों को घायल कर दिया, जिससे एक साही मर गई।
इस पाप के कारण उस बहू के सातों पुत्र धीरे-धीरे मर गए।
बहू अत्यंत दुखी होकर दिन-रात रोने लगी और भगवान से अपने पाप का प्रायश्चित मांगने लगी।
एक दिन जब वह नदी किनारे बैठी थी, तब अहोई माता ने प्रकट होकर कहा —
“तू मेरे स्वरूप की पूजा कर, और कार्तिक कृष्ण अष्टमी को व्रत रख। तेरे सभी पाप नष्ट होंगे और तुझे संतान सुख की प्राप्ति होगी।”
बहू ने माता अहोई की आज्ञा का पालन किया, श्रद्धापूर्वक अहोई अष्टमी का व्रत रखा, और अगले वर्ष उसके घर में एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ।
तब से यह व्रत हर वर्ष महिलाएं श्रद्धा और विश्वास के साथ करती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
- यह व्रत संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
- व्रत करने वाली महिला के सभी पापों का नाश होता है।
- अहोई माता की कृपा से घर में समृद्धि और खुशहाली आती है।
- यह व्रत मातृत्व की शक्ति और करुणा का प्रतीक है।
- इस दिन माता अहोई के साथ सप्त ऋषियों और स्याही (साही) की भी पूजा की जाती है।
पूजा विधि (संक्षेप में)
- सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- अहोई माता की चित्र या दीवार पर बनाई हुई छवि स्थापित करें।
- जल से भरा कलश रखें और उस पर नारियल रखें।
- चांदी या मिट्टी की अहोई माता की मूर्ति बनाकर पूजा करें।
- कथा सुनें और शाम को तारों (विशेषकर सप्तर्षि) के दर्शन करें।
- तारा दर्शन के बाद ही व्रत खोलें।
निष्कर्ष
अहोई अष्टमी व्रत मां और संतान के बीच प्रेम, आशीर्वाद और विश्वास का पर्व है।
जो महिला पूरे श्रद्धा और नियम से यह व्रत करती है, उसके घर में सुख-शांति और संतान सुख स्थायी रहता है।
“सोमवार का उपवास और शिवभक्ति की शक्ति”