
शनि दोष निवारण के लिए हनुमान जी की कृपा कैसे प्राप्त करें
१. शनि दोष क्या है?
शनि दोष तब बनता है जब जन्म कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में होता है — जैसे:
- शनि की साढ़े साती (जब शनि जन्म चंद्र से 12वीं, 1वीं या 2वीं राशि में रहता है)
- ढैय्या (ढाई साल की अवधि)
- शनि का अशुभ दृष्टि प्रभाव (जैसे सूर्य, चंद्र, लग्न या चतुर्थ भाव पर)
- या शनि की दशा/अंतर्दशा में कठिनाइयाँ आना
लक्षण होते हैं — अड़चनें, देरी, मानसिक तनाव, आर्थिक रुकावटें, झूठे आरोप, दुर्घटनाएँ आदि।
परंतु याद रखिए — शनि सज़ा नहीं, सुधार देता है। वह कर्म का न्यायाधीश है।
२. क्यों हनुमान जी शनि दोष से रक्षा करते हैं?
शास्त्रों में कथा आती है —
जब शनि देव स्वयं हनुमान जी से मिलने आए, तब उन्होंने हनुमान जी की भक्ति और पराक्रम से प्रसन्न होकर कहा —
“जो भी व्यक्ति तुम्हारी उपासना करेगा, उसे मैं कभी कष्ट नहीं दूँगा।”
इसलिए कहा गया —
“शनिदेव से बचना है तो हनुमान जी की शरण लो।”
हनुमान जी वह शक्ति हैं जो शनि के क्रूर प्रभाव को अनुकूल फल में बदल देती है।
उनकी भक्ति से आत्मबल, साहस, और कर्मशक्ति बढ़ती है — जो शनि के प्रभाव को शांत कर देती है।
३. हनुमान जी की कृपा पाने के उपाय (विस्तार से)
(१) हनुमान चालीसा का नियमित पाठ
- रोज़ सुबह या संध्या काल में हनुमान चालीसा पढ़ें।
- यदि शनि दोष अधिक हो तो कम से कम 11 बार पाठ करें।
- श्रद्धा से, स्वच्छ मन से, बिना जल्दबाज़ी के करें।
फल: मानसिक शांति, भय का नाश, आत्मविश्वास की वृद्धि।
(२) मंगलवार और शनिवार का विशेष व्रत
- इन दिनों प्रातः स्नान के बाद हनुमान मंदिर जाएँ।
- सिंदूर, चमेली का तेल, और तुलसी पत्र चढ़ाएँ।
- “ॐ हनुमते नमः” या “ॐ श्री रामदूताय नमः” का जप करें।
- शाम को सरसों के तेल का दीपक जलाएँ।
फल: शनि का प्रभाव क्षीण होता है और ग्रह अनुकूल होने लगते हैं।
(३) हनुमान बाहुक या सुंदरकांड का पाठ
- जब शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या में अत्यधिक कष्ट हो, तो सुंदरकांड का पाठ करें।
- हनुमान बाहुक (गोस्वामी तुलसीदासजी रचित) विशेष रूप से रोग, भय और बाधा से मुक्ति देता है।
फल: मानसिक-शारीरिक बल और रोगों से रक्षा।
(४) शनि और हनुमान संयुक्त पूजा
- शनिवार को शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएँ।
- वहीं हनुमान जी का नाम स्मरण करें —
“जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।” - एक काला तिल, सरसों का तेल, और गुड़ का भोग लगाएँ।
फल: शनि का प्रकोप शांत, और कर्मों में स्थिरता आती है।
(५) सेवा, संयम और सत्य का पालन
हनुमान जी केवल पूजा से नहीं, आचरण से प्रसन्न होते हैं।
- माता-पिता, गुरु और जरूरतमंद की सेवा करें।
- असत्य, नशा, क्रोध, और काम-विकारों से दूर रहें।
- विनम्र और कर्मशील बनें — यही हनुमान भक्ति का वास्तविक रूप है।
फल: जब आपका जीवन “सेवा और निस्वार्थ कर्म” बनता है, तो शनि भी आपके साथी बन जाते हैं।
४. विशेष मंत्र (शनिदोष शांति हेतु हनुमान मंत्र)
“ॐ हनुमते नमः” — साधारण और सर्वशक्तिशाली
“ॐ श्री हनुमते नमो नमः। ॐ श्री हनुमते नमो नमः।”
“ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय विष्णुप्रिया नमो नमः।”
जप संख्या:
- रोज़ 108 बार (माला से)
- शनिवार को विशेष रूप से 11 माला तक।
🌺 ५. आचरणिक साधना
कार्य | महत्व |
---|---|
ब्रह्ममुहूर्त में उठना | शुभ ग्रह बल देता है |
मंगलवार-शनिवार ब्रह्मचर्य व्रत | हनुमान प्रसन्न होते हैं |
गरीबों को काले तिल, उड़द, तेल दान | शनि प्रसन्न होते हैं |
श्रीराम नाम का जप | हनुमान भक्ति का मूल है |
गुरु सेवा या मंदिर सेवा | कर्मफल शुद्ध करता है |
६. निष्कर्ष
हनुमान जी शनि के प्रभाव को नहीं मिटाते — वे उसे मार्गदर्शक शक्ति में बदल देते हैं।
जब मनुष्य हनुमान की शरण लेकर अपने कर्म, आचरण और संकल्प को शुद्ध करता है,
तो शनि का हर दंड कर्म सुधार का अवसर बन जाता है।
करवा चौथ पर भूल से भी ना करें यह गलतियां