
श्रीमद्भगवद्गीता का चतुर्थ अध्याय (कर्म योग का ज्ञान), जिसे ज्ञान-कर्म-संन्यास योग भी कहा जाता है, ज्ञान, कर्म, और त्याग के बीच संतुलन को समझाने पर केंद्रित है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म योग के माध्यम से आत्मज्ञान की प्राप्ति का मार्ग बताते हैं। इसका सारांश निम्नलिखित है:
1. ईश्वर का अवतार और धर्म की स्थापना
भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब वे अवतार लेकर धर्म की स्थापना और साधुजनों की रक्षा करते हैं।
- श्लोक 7-8:“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥”
2. कर्म और ज्ञान का महत्व
भगवान कहते हैं कि सही ज्ञान के बिना किया गया कर्म बांधन का कारण बनता है। लेकिन जब कर्म ज्ञान के साथ किया जाता है, तो वह आत्मा की मुक्ति का साधन बनता है।
- कर्म योग वह पथ है जिसमें व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, लेकिन फल की आकांक्षा छोड़ देता है।
3. कर्म की विधि और त्याग का महत्व
- निष्काम कर्म (फल की इच्छा से मुक्त कर्म) का अभ्यास व्यक्ति को बंधनों से मुक्त करता है।
- भगवान कहते हैं कि ज्ञानी व्यक्ति कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म को देखता है। इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति जो संसार के लिए कर्म करता है, लेकिन आत्मिक दृष्टि से अकर्म रहता है, वह सच्चा योगी है।
4. यज्ञ की महिमा
भगवान कई प्रकार के यज्ञों का वर्णन करते हैं, जैसे:
- ज्ञान यज्ञ: ज्ञान का अर्जन और उसका उपयोग।
- तप यज्ञ: इंद्रियों और मन का संयम।
- द्रव्य यज्ञ: धन-संपत्ति या वस्त्र आदि का दान।
- इनमें सबसे श्रेष्ठ यज्ञ ज्ञान यज्ञ है क्योंकि यह व्यक्ति को सत्य का साक्षात्कार कराता है।
5. ज्ञान की शक्ति
- ज्ञान सभी पापों और बंधनों को नष्ट कर देता है।
- सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए श्रद्धा, विनम्रता, और गुरु की सेवा आवश्यक है।
- श्लोक 39:“श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥”
6. कर्म से कर्म रहित होने का मार्ग
भगवान अर्जुन को समझाते हैं कि कर्म करते हुए भी, यदि उसे ईश्वर अर्पित कर दिया जाए और फल की आसक्ति छोड़ दी जाए, तो वह व्यक्ति कर्मों से बंधा नहीं रहता।
- ज्ञान प्राप्त करने के बाद व्यक्ति को यह समझ में आता है कि आत्मा अविनाशी है और कर्म का उद्देश्य आत्मा के विकास के लिए है।
मुख्य शिक्षा
- निष्काम कर्म (फल की आसक्ति छोड़कर कर्म करना) ही सही मार्ग है।
- ज्ञान, कर्म और त्याग का समन्वय ही मोक्ष का साधन है।
- ईश्वर का ध्यान और उनकी सेवा से व्यक्ति अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभा सकता है।
- यज्ञ, ज्ञान, और कर्म योग को आत्मा की उन्नति के लिए अपनाना चाहिए।
इस अध्याय का संदेश है कि ज्ञान और कर्म का सही उपयोग आत्मा को बंधनों से मुक्त कर सकता है, और व्यक्ति ईश्वर की शरण में जाकर शांति प्राप्त कर सकता है।