
जीवित्पुत्रिका व्रत से संतान पर आने वाले संकटों का निवारण
जीवित्पुत्रिका व्रत से संतान पर आने वाले संकटों का निवारण
जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जीवत्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान को आने वाले जीवन संकटों और काल-अकाल मृत्यु से बचाने हेतु माना जाता है।
महत्व
- इस व्रत का मूल उद्देश्य संतान की रक्षा करना है।
- मान्यता है कि जो माँ सच्चे मन से यह व्रत करती है, उसके पुत्र-पुत्रियों पर आने वाले संकट दूर हो जाते हैं।
- यह व्रत बच्चों को अकाल मृत्यु, रोग, दुर्घटनाओं और कठिनाइयों से बचाता है।
- व्रती माँ अपने बच्चों के लिए देवी जीवित्पुत्रिका माता का आशीर्वाद प्राप्त करती है।
व्रत की विधि
- माताएँ यह व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को करती हैं।
- पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाता है।
- संध्या के समय जीवित्पुत्रिका माता की पूजा कर बच्चों की कुशलता और दीर्घायु की कामना की जाती है।
- कथा श्रवण के बाद बच्चों का माथा माता के चरणों से छुआकर आशीर्वाद लिया जाता है।
शिक्षा
- यह व्रत मातृत्व की गहन भावना और संतान के प्रति त्याग का प्रतीक है।
- सिखाता है कि माँ का तप और प्रार्थना संतान के जीवन को सुरक्षित कर सकती है।
लाभ
- संतान पर आने वाले संकटों का निवारण होता है।
- बच्चों की सेहत, दीर्घायु और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- परिवार में शांति और संतोष का वातावरण रहता है।
👉 इसे “संतान-सुरक्षा व्रत” भी कहा जाता है क्योंकि इसका सीधा संबंध बच्चों के जीवन-कल्याण और रक्षा से है।
प्राचीन काल में वीरबाहु नामक राजा का राज्य था। उसकी पत्नी मालिनी के कोई संतान नहीं थी। वर्षों तक संतान सुख न मिलने पर वह अत्यंत दुखी रहती थी।
एक दिन राजा ने महर्षियों से उपाय पूछा तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ के प्रभाव से रानी गर्भवती हुई और समय आने पर उसने पुत्र को जन्म दिया।
लेकिन संयोग से वह पुत्र मृत पैदा हुआ। यह देख रानी विलाप करने लगी। उसी समय वहाँ से एक ब्राह्मणी स्त्री गुजरी। वह दरअसल जीवित्पुत्रिका माता का स्वरूप थी। उसने रानी से कहा –
“यदि तुम मेरी पूजा कर व्रत रखो तो तुम्हारे पुत्र को जीवन मिल जाएगा।”
रानी ने श्रद्धापूर्वक जीवित्पुत्रिका व्रत किया। माता की कृपा से उसका पुत्र जीवित हो उठा। तभी से यह व्रत माताओं द्वारा संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए किया जाने लगा।
कथा का संदेश
- माँ की सच्ची भक्ति और तप से असंभव भी संभव हो जाता है।
- संतान चाहे कितने भी संकट में क्यों न हो, यह व्रत उसकी रक्षा करता है।
- यह व्रत मातृत्व के त्याग और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है।
👉 इस तरह जीवित्पुत्रिका व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि संतान-सुरक्षा का आस्था पर्व है।
🌸 जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा सामग्री
- मुख्य सामग्री
- माता जीवित्पुत्रिका का चित्र या प्रतिमा
- मिट्टी/गोबर से बनी वेदी या चौकी
- कलश (जल से भरा हुआ)
- नारियल
- आम के पत्ते
- लाल या पीला वस्त्र (कलश पर चढ़ाने हेतु)
- पूजन के लिए
- दीपक (घी/तेल का)
- धूपबत्ती
- अक्षत (चावल)
- रोली / सिंदूर
- हल्दी
- कुंकुम
- मौली (लाल धागा)
- पान के पत्ते
- सुपारी
- लौंग, इलायची
- नैवेद्य व भोग
- मौसमी फल
- मिठाई (खीर, लड्डू आदि)
- दूध
- पंचमेवा (किशमिश, बादाम, काजू, मखाना, छुहारा)
- जल का कलश
- सजावट व अन्य
- फूल (गेंदे/लाल फूल अधिक शुभ)
- फूलों की माला
- आचमन के लिए शुद्ध जल
- तांबे/पीतल की थाली व लोटा
- आसन (व्रती माता के लिए)
- कथा पुस्तक (जीवित्पुत्रिका व्रत कथा)
✅ इस सामग्री से पूजा पूरी विधि से की जा सकती है और संतान की दीर्घायु व सुरक्षा के लिए माता जीवित्पुत्रिका का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
🌸 पूजा करने के उपाय
- स्नान और शुद्धि
- व्रती प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को साफ कर पवित्र जल छिड़कें।
- देवी की स्थापना
- मिट्टी, गोबर या लकड़ी की वेदी पर जीवित्पुत्रिका माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- कलश स्थापित कर उस पर नारियल, आम के पत्ते और लाल वस्त्र रखें।
- संकल्प
- संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए व्रत का संकल्प लें।
- हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर संकल्प बोला जाता है।
- पूजन सामग्री
- धूप, दीपक, फूल, रोली, अक्षत, फल, नैवेद्य, मिठाई, सुपारी, पान आदि चढ़ाएँ।
- लाल या पीले फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।
- कथा श्रवण
- जीवित्पुत्रिका माता की व्रत कथा सुनें या सुनाएँ।
- कथा के अंत में आरती करें।
- संतान का आशीर्वाद
- बच्चों के सिर पर माता का हाथ रखकर रक्षा का संकल्प लें।
- माता देवी से संतान के दीर्घायु जीवन की प्रार्थना करें।
- उपवास नियम
- इस दिन निर्जला उपवास का विधान है।
- अगले दिन व्रत का पारण जल या प्रसाद से किया जाता है।
🙏 विशेष उपाय
- संतान को देवी के चरणों से स्पर्श कराना शुभ होता है।
- संतान पर आने वाले संकट दूर करने हेतु माता “जीवित्पुत्रिका माता की जय” का जप करें।
- व्रत के दिन परोपकार और दान करने से पुण्य बढ़ता है।
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