
पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण कब करें
1. पितृ पक्ष का समय
- पितृ पक्ष अष्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता है।
- 2025 में पितृ पक्ष: 7 सितंबर से 2 सितंबर 2025 तक।
- इस दौरान पितरों को तर्पण (जल अर्पण) और श्राद्ध करना शुभ माना जाता है।
2. तर्पण का शुभ समय
तर्पण मुख्यतः सूर्योदय या सूर्यास्त के समय किया जाता है।
- सूर्योदय तर्पण: सूर्योदय से 1–2 घंटे के भीतर।
- सूर्यास्त तर्पण: सूर्यास्त से पहले 1–2 घंटे का समय उत्तम।
- यह भी ध्यान रखें कि सोमवार, मंगलवार, गुरुवार और शनिवार के दिन तर्पण विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
3. तर्पण की विधि (संक्षेप में)
- स्थान: किसी नदी, तालाब या जलाशय के पास। यदि जल स्रोत नहीं है तो घर में पात्र में जल रखकर भी कर सकते हैं।
- सामग्री: जल, तिल, फूल, धतूरा या पवित्र धूप।
- मंत्र:
- पितरों के लिए सामान्य मंत्र:
“ॐ पितृभ्यः शान्तिः” - जल में तिल डालते हुए और उनका स्मरण करते हुए तर्पण करें।
- पितरों के लिए सामान्य मंत्र:
- ध्यान रखें: पितरों का नाम लेकर या उन्हें याद करते हुए जल अर्पण करें।
4. अच्छा समय
- सूर्योदय तर्पण: सबसे शुभ।
- सूर्यास्त तर्पण: अगर सुबह संभव न हो तो।
- विशेष तिथि: अमावस्या (कृष्ण पक्ष की अमावस्या) को तर्पण करना सबसे फलदायी माना गया है।
1. पितृ दोष से मुक्ति
- जो व्यक्ति पितृ दोष (पूर्वजों की शांति न होने से उत्पन्न कष्ट) से पीड़ित होता है, उसके जीवन में अशांति, आर्थिक समस्याएँ और स्वास्थ्य संबंधी बाधाएँ आती हैं।
- पितरों को तर्पण करने से पितृ दोष का निवारण होता है।
2. संतान सुख और परिवार में शांति
- पितृ तर्पण करने से संतान की वृद्धि, शिक्षा और करियर में सफलता आती है।
- परिवार में सौहार्द और शांति बनी रहती है।
3. आर्थिक समृद्धि
- पितरों की तृप्ति से घर में धन, नौकरी और व्यवसाय में वृद्धि होती है।
- कर्ज और आर्थिक परेशानियाँ कम होती हैं।
4. आध्यात्मिक लाभ
- व्यक्ति का मन शांत और सकारात्मक बनता है।
- पितृ पक्ष में तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है, जिससे व्यक्ति धार्मिक और मानसिक संतोष अनुभव करता है।
5. स्वास्थ्य लाभ
- पितरों को तर्पण करने से मानसिक तनाव कम होता है और स्वास्थ्य में सुधार आता है।
6. पुण्य और पूर्वजों की कृपा
- पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध और तर्पण से व्यक्ति पुण्य अर्जित करता है।
- पूर्वजों की कृपा से जीवन में कठिनाइयाँ आसान होती हैं।
1. पूर्वजों का स्मरण और सम्मान
- पितृ तर्पण यह सिखाता है कि हमारे पूर्वजों का सम्मान करना चाहिए।
- उनके बलिदान और मार्गदर्शन को याद करके हम अपने जीवन में कृतज्ञता और विनम्रता सीखते हैं।
2. कृतकर्म और जिम्मेदारी
- पितरों के लिए तर्पण करना यह शिक्षा देता है कि हम अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते।
- परिवार और समाज में अपने धर्म और जिम्मेदारी निभाना जरूरी है।
3. संतुलित जीवन
- तर्पण करने से हम यह सीखते हैं कि जीवन में आध्यात्मिकता और भौतिकता का संतुलन बनाए रखना चाहिए।
- केवल धन या सुख ही नहीं, बल्कि धर्म और पुण्य कार्य भी जरूरी हैं।
4. धैर्य और अनुशासन
- पितृ पक्ष में तर्पण करना नियमित रूप से करना धैर्य, अनुशासन और समय पालन की शिक्षा देता है।
- यह हमारी मानसिक स्थिरता और नैतिकता को मजबूत करता है।
5. मानव संबंध और सहयोग
- परिवार और समुदाय के साथ मिलकर तर्पण करने से यह शिक्षा मिलती है कि संबंध और सहयोग जीवन में महत्वपूर्ण हैं।
- दूसरों के साथ मिलकर पुण्य कार्य करने से समाज में सौहार्द और प्रेम बढ़ता है।
1. पितरों की तृप्ति और शांति
- पितृ पक्ष में तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
- ऐसा करने से उनके प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त होता है।
2. पितृ दोष निवारण
- जो व्यक्ति पितृ दोष के कारण परेशानियों का सामना कर रहा है, उसे तर्पण करने से आर्थिक, स्वास्थ्य और पारिवारिक बाधाएँ दूर होती हैं।
3. धन-समृद्धि और सुख-शांति
- पितरों की कृपा से घर में धन, संपत्ति और सुख-शांति आती है।
- परिवार के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद जीवन में सफलता और स्थिरता लाता है।
4. संतान सुख और परिवार का कल्याण
- पितृ पक्ष में तर्पण करने से संतान का कल्याण, शिक्षा और जीवन में सफलता सुनिश्चित होती है।
- परिवार में आपसी प्रेम और समझ बढ़ती है।
5. आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य
- पितरों को तर्पण करने से व्यक्ति धार्मिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य अपनाता है।
- यह हमें सिखाता है कि पूर्वजों की स्मृति और परंपरा का पालन जीवन में आवश्यक है।
6. पुण्य और कल्याण
- तर्पण करने से व्यक्ति को पुण्य मिलता है और जीवन में कष्ट कम होकर सुख अधिक होता है।
- यह कार्य कर्मों का फल और पूर्वजों की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है।
1. जल
- साफ और पवित्र जल (नदी, तालाब या घर में पात्र में रखा जल)
- जल में तिल डालकर तर्पण किया जाता है।
2. तिल (सफेद और काले)
- तिल पितरों को अर्पित करने का मुख्य साधन है।
- तिल का तर्पण पूर्वजों की तृप्ति और पुण्य के लिए किया जाता है।
3. अक्षत (चावल)
- बिना टूटे हुए चावल (अक्षत) का प्रयोग तर्पण और पूजा में किया जाता है।
- यह संपूर्णता और समृद्धि का प्रतीक है।
4. फूल
- तर्पण और पूजा में सफेद या पीले फूल अर्पित करें।
- यह स्नेह और श्रद्धा दर्शाता है।
5. धूप और दीप
- धूप/अगरबत्ती और दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
- इससे वातावरण पवित्र बनता है और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है।
6. खिचड़ी या पकवान
- अगर श्राद्ध कर रहे हैं, तो खिचड़ी, फल और विशेष पकवान अर्पित किए जाते हैं।
- यह पितरों के भोजन के रूप में माना जाता है।
7. पवित्र वस्त्र या कर्पूर
- तर्पण करते समय कर्पूर या हल्के वस्त्र का उपयोग किया जा सकता है।
- यह पूजा को पवित्र और शुभ बनाता है।
8. अन्य सामग्री (वैकल्पिक)
- गाय का घी (दीपक में)
- गुड़ (तिल के साथ)
- पानी के लिए पात्र, कलश या ताट
1. स्थान का चयन
- तर्पण या श्राद्ध करने के लिए साफ और पवित्र स्थान चुनें।
- यदि संभव हो तो नदी, तालाब या जलाशय के किनारे करना सर्वोत्तम है।
- घर में भी पवित्र पात्र में जल रखकर तर्पण किया जा सकता है।
2. समय
- सूर्योदय से 1–2 घंटे के भीतर या
- सूर्यास्त से 1–2 घंटे पहले तर्पण करना शुभ है।
- विशेष दिन: अमावस्या और सोम, गुरु, शनि के दिन अधिक फलदायी हैं।
3. सामग्री
- जल, तिल, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीपक, खिचड़ी या पकवान, गुड़ और कलश।
4. तर्पण विधि
- जल के पात्र को सामने रखें।
- तिल और अक्षत लेकर हाथ में लें।
- पितरों का स्मरण करते हुए जल में डालें।
- मंत्र का उच्चारण करें, जैसे:
- “ॐ पितृभ्यः शान्तिः”
- यदि श्राद्ध कर रहे हैं, तो खिचड़ी या पकवान अर्पित करें।
- फूल और दीपक अर्पित करें।
- ध्यान रखें कि श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ करें।
5. विशेष ध्यान
- तर्पण करते समय सकारात्मक और शांति पूर्ण मानसिकता रखें।
- किसी भी प्रकार का जल्दबाजी या अव्यवस्था न हो।
- जल और भोजन अर्पण के बाद हाथ धोकर पूजा समाप्त करें।
1. तिल और जल से तर्पण
- सफेद या काले तिल और पवित्र जल से तर्पण करें।
- इसे सुबह सूर्य के समय करने से विशेष लाभ मिलता है।
2. पितृ दोष निवारक उपाय
- यदि परिवार में संतान की समस्या, आर्थिक संकट या स्वास्थ्य संबंधी परेशानी है, तो पितरों के नाम पर तर्पण जरूर करें।
- गाय के दूध, दही और गुड़ का तर्पण विशेष रूप से लाभकारी है।
3. श्राद्ध और भोजन अर्पण
- खिचड़ी, गुड़, फल और अन्य शुद्ध पकवान अर्पित करें।
- यह पितरों को प्रसन्न करता है और कर्मों का फल बढ़ाता है।
4. दान और सेवा
- पितृ पक्ष में भिक्षा, भोजन और वस्त्र दान करने से पितरों की शांति और पुण्य बढ़ता है।
- यह उपाय गरीब, जरूरतमंद और ब्राह्मणों को करने से विशेष फलदायी है।
5. तुलसी और हवन
- घर में तुलसी का पौधा रखें और उससे पानी चढ़ाएँ।
- हवन या यज्ञ के माध्यम से पवित्रता और पुण्य बढ़ता है।
6. मानसिक और आध्यात्मिक उपाय
- तर्पण करते समय पितरों का स्मरण और भक्ति भाव बनाए रखें।
- नकारात्मक विचार न लाएँ, और सकारात्मक ऊर्जा और शांति का ध्यान रखें।
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