
2025 में चंद्र ग्रहण कब लगेगा? पूरी जानकारी
2025 में होने वाला अंतिम चंद्र ग्रहण (Total Lunar Eclipse या “Blood Moon”) 7–8 सितंबर की रात को भारत में पूरी तरह दिखाई देगा। इसके बारे में संपूर्ण जानकारी नीचे दी जा रही है:
चंद्र ग्रहण – तारीख और समय (भारत समय अनुसार)
- तारीख: 7 सितंबर 2025 (रविवार) रात से 8 सितंबर (सोमवार) की सुबह तक
- सूर्य का चंद्रमा के मध्य आने की प्रकिया:
- पेनुम्ब्रल चरण की शुरुआत: लगभग 8:58 PM IST
- पूर्ण छाया (Totality) की शुरुआत: लगभग 11:00 PM IST
- पूर्ण छाया का समापन: लगभग 12:22 AM IST (8 सितंबर)
- पेनुम्ब्रल चरण का अंत: लगभग 2:25 AM IST
- संसदीय विवरण के अनुसार, पूर्ण छाया (totality) की अवधि लगभग 1 घंटे 23 मिनट (~83 मिनट) है, और पूरे ग्रहण की अवधि लगभग 3 घंटे 30 मिनट है
- पूर्ण ग्रहण की मुख्य अवधि (Maximum Eclipse): करीब 11:42 PM IST
वैज्ञानिक और सांस्कृतिक जानकारी
- इस ग्रहण को अक्सर “Blood Moon” कहा जाता है क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी की छाया में लालाभ रंग में दिखाई देता है, जो पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा नीले प्रकाश के बिखरने और केवल लाल प्रकाश के चंद्रमा तक पहुँचने के कारण होता है
- यह द्वितीय कुल चंद्र ग्रहण होगा, पहले मार्च 13–14, 2025 को हुआ था
भारत में दिखने की दृश्यता
- यह ग्रहण भारत भर में साफ दिखाई देगा—पूरे भारत में ग्रहण के सभी चरण देखे जा सकेंगे प्रमुख शहरों में ऐसे स्थान जहां से देखने का दृश्य उत्कृष्ट रहेगा:
धार्मिक एवं परंपरागत दृष्टिकोण
- यह चंद्र ग्रहण पितृ पक्ष पूर्णिमा के समय हो रहा है, इसलिए हिंदू धर्म में इसकी धार्मिक महत्ता अधिक है
- ग्रहण के दौरान और पूर्व में पालन करने योग्य कुछ प्रमुख ‘डूज़ और डोंट्स’:
- Do’s (क्या करें): ध्यान, भजन, कीर्तन, मंत्र जप, पवित्र स्नान, घर की सफाई—विशेषकर गंगाजल का छिड़काव, महामृत्युंजय मंत्र, हनुमान चालीसा का पाठ, गंगाजल आदी उपयोग करना
- Don’ts (क्या ना करें): ग्रहण के दौरान कोई शुभ काम (विवाह, गृह प्रवेश आदि), खाना पकाना या खाना, शारीरिक संबंध, पवित्र वस्तुओं को छूना, मंदिर जाना, तेज धार वाले बस्तुएँ इस्तेमाल करना आदि नहीं करना चाहिए
- सूतक काल (Sutak Period): कुछ परंपराएं ग्रहण से पहले नौ घंटे का सूतक काल मानती हैं—जिसमें पूजा आदि निषेधित मानी जाती है .
- ग्रहण के बाद पूजा, स्नान और दान आदि करने से शुभ दृष्टिकोण से लाभदायक माना जाता है
- निष्कर्ष
- यदि आप इस चंद्र ग्रहण (Blood Moon) को देखना चाह रहे हैं, तो 7 सितंबर की रात शाम 11 बजे से मध्यरात्रि के आसपास सबसे उज्जवल दृश्य देखने के लिए उपयुक्त समय है।
- रिहर्सल के लिए: एक खुली जगह—जैसे पार्क, छत, या न्यून प्रकाश वाला क्षेत्र—बेहतर दृश्य के लिए चुने।
- धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, ग्रहण के दौरान और बाद में किए गए स्नान, मंत्र जप, दान आदि पारंपरिक रूप से शुभ माने जाते हैं।
🌕 चंद्र ग्रहण के लाभ
- पुण्य अर्जन – ग्रहण काल में जप, ध्यान और दान करने से सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक पुण्य मिलता है।
- पाप नाश – ग्रहण के समय मंत्र जाप, विशेषकर महामृत्युंजय मंत्र या हनुमान चालीसा का पाठ करने से पाप कर्मों का क्षय माना जाता है।
- आध्यात्मिक शक्ति – ध्यान और साधना करने से मन को शांति व दिव्य ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
- सिद्धि प्राप्ति – ग्रहण काल को विशेषकर तंत्र-मंत्र और साधना के लिए अत्यंत शक्तिशाली समय माना जाता है।
- पूर्वजों की कृपा – यह ग्रहण पितृपक्ष पूर्णिमा पर है, अतः पितरों के लिए तर्पण, दान और जप करने से उनकी कृपा मिलती है।
- धन लाभ – ग्रहण काल और उसके बाद दान करने से आर्थिक उन्नति होती है।
- स्वास्थ्य लाभ – ग्रहण के बाद स्नान और दान से शारीरिक और मानसिक शुद्धि मानी जाती है।
- कर्म दोष शांति – ग्रहण काल में पूजा और उपाय करने से ग्रह दोष और पितृ दोष शांत होते हैं।
- संतान सुख – ग्रहण के समय देवी-देवताओं की आराधना करने से संतान संबंधित समस्याएँ दूर होती हैं।
- मनोकामना सिद्धि – ग्रहण काल में सच्चे भाव से की गई प्रार्थना और संकल्प पूरे होते हैं।
- गृह कलह शांति – घर में शांति और सामंजस्य बढ़ाने के लिए ग्रहण के समय विशेष मंत्र जाप लाभकारी है।
- रोग मुक्ति – ग्रहण काल में विशेष पूजा से दीर्घकालिक रोगों से मुक्ति मिल सकती है।
- आर्थिक बाधा निवारण – ग्रहण उपरांत दान और स्नान से आर्थिक संकट दूर माने जाते हैं।
- भय और संकट निवारण – देवी-देवता की उपासना से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
- मोक्ष प्राप्ति का मार्ग – ग्रहण काल में किया गया जप-तप मोक्ष की दिशा में सहायक होता है।
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📖 चंद्र ग्रहण से मिलने वाली शिक्षाएँ
- प्रकृति की अद्भुत लीला – ग्रहण हमें यह सिखाता है कि सूर्य, चंद्र और पृथ्वी के बीच के संबंध कितने गहरे और वैज्ञानिक हैं।
- समय की महत्ता – ग्रहण का प्रत्येक क्षण शुभ-अशुभ प्रभाव डालता है, इसलिए सही समय पर सही कार्य करने का महत्व समझ में आता है।
- आध्यात्मिक साधना – ग्रहण का समय हमें ध्यान, मंत्र-जाप और ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित करता है।
- आत्मचिंतन – यह समय आत्मविश्लेषण और आत्मसुधार के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
- पाप और पुण्य का ज्ञान – ग्रहण से जुड़ी परंपराएँ हमें अच्छे-बुरे कर्मों के महत्व की शिक्षा देती हैं।
- त्याग का महत्व – ग्रहण के दौरान भोजन, विवाह, शुभ कार्यों पर रोक हमें संयम और त्याग का अभ्यास कराती है।
- दान की शक्ति – ग्रहण के बाद दान करना बड़ा पुण्यकारी माना गया है, जो समाजसेवा की शिक्षा देता है।
- पूर्वजों का स्मरण – पितृपक्ष के साथ आने वाला यह ग्रहण हमें अपने पूर्वजों को याद करने और तर्पण का महत्व सिखाता है।
- स्वास्थ्य और शुद्धता – ग्रहण के समय स्नान और स्वच्छता का महत्व हमें स्वास्थ्य संरक्षण की प्रेरणा देता है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण – यह हमें ब्रह्मांडीय घटनाओं को केवल धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक नजरिये से भी समझने की प्रेरणा देता है।
- अंधविश्वास से मुक्ति – ग्रहण के पीछे का वास्तविक कारण जानकर हम अंधविश्वासों से मुक्त हो सकते हैं।
- धैर्य और प्रतीक्षा – जैसे ग्रहण कुछ समय का ही होता है, वैसे ही जीवन के अंधकारमय समय भी अस्थायी होते हैं।
- पर्यावरण संरक्षण – चंद्रमा और सूर्य जैसे खगोलीय पिंड हमें पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी संतुलन का महत्व समझाते हैं।
- मानव-प्रकृति संबंध – ग्रहण से हमें एहसास होता है कि हम प्रकृति से गहराई से जुड़े हुए हैं।
- धार्मिक आस्था – यह हमें सिखाता है कि ईश्वर और ब्रह्मांडीय ऊर्जा पर विश्वास जीवन को सकारात्मक बनाता है।
🌕 चंद्र ग्रहण का महत्व
🔹 धार्मिक महत्व
- पुण्य का समय – ग्रहण के दौरान जप-तप और दान का फल सामान्य दिनों से कई गुना अधिक मिलता है।
- सूतक काल – ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक लगता है, जिसमें पूजा-पाठ व शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
- पितृ कृपा – यह ग्रहण पितृ पक्ष पूर्णिमा पर है, इसलिए पूर्वजों की तृप्ति और मोक्ष के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
- आध्यात्मिक साधना – ध्यान, मंत्र जाप, स्तोत्र पाठ से आत्मिक शांति और शक्ति प्राप्त होती है।
- दान का महत्व – ग्रहण के बाद किया गया स्नान और दान अत्यंत शुभ माना जाता है।
🔹 वैज्ञानिक महत्व
- प्राकृतिक घटना की समझ – चंद्र ग्रहण पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के खगोलीय संरेखण से होता है।
- ब्रह्मांडीय अध्ययन – वैज्ञानिक दृष्टि से यह खगोलशास्त्र और अंतरिक्ष अध्ययन का महत्वपूर्ण अवसर है।
- पर्यावरणीय प्रभाव – ग्रहण के दौरान चंद्रमा का रंग लालिमा लिए दिखाई देता है (Blood Moon), जो पृथ्वी के वायुमंडल की वजह से होता है।
- समय गणना – प्राचीन काल से ग्रहणों का उपयोग पंचांग और खगोलीय गणनाओं की सटीकता के लिए किया जाता रहा है।
🔹 ज्योतिषीय महत्व
- राशियों पर असर – चंद्र ग्रहण का सीधा प्रभाव चंद्रमा की स्थिति और संबंधित राशियों पर पड़ता है।
- मन और भावनाएँ – चंद्रमा मन का कारक है, इसलिए ग्रहण मानसिक स्थिति और विचारों पर असर डाल सकता है।
- ग्रह दोष शांति – ग्रहण के समय विशेष पूजा और उपाय करने से ग्रह दोष शांत होते हैं।
- नए आरंभ का अवसर – ग्रहण के बाद पुरानी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होकर नई सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है।
👉 संक्षेप में, चंद्र ग्रहण सिर्फ खगोलीय घटना नहीं बल्कि धार्मिक साधना, वैज्ञानिक अध्ययन और ज्योतिषीय उपायों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है।
🌕 चंद्र ग्रहण की विधि
1. ग्रहण से पहले (सूतक काल में)
- सूतक काल ग्रहण शुरू होने से लगभग 9 घंटे पहले प्रारंभ होता है।
- इस दौरान मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं।
- भोजन, पूजा, शुभ कार्य, दान आदि वर्जित माने जाते हैं।
- गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी रखने की सलाह दी जाती है।
- बचा हुआ भोजन खराब न हो, इसके लिए उसमें तुलसी पत्ता डालना शुभ माना जाता है।
2. ग्रहण के दौरान
- स्नान करके शुद्ध होकर ईश्वर का ध्यान और मंत्र जाप करें।
- विशेषकर महामृत्युंजय मंत्र, विष्णु सहस्रनाम, हनुमान चालीसा, अथवा गायत्री मंत्र का जाप श्रेष्ठ माना गया है।
- ग्रहण काल में दान का संकल्प करना पुण्यकारी होता है।
- रत्न धारण या किसी विशेष ग्रह दोष शांति के लिए जप-तप करना प्रभावी होता है।
3. ग्रहण के बाद
- ग्रहण समाप्त होते ही सबसे पहले स्नान करें।
- गंगाजल मिलाकर घर में शुद्धिकरण करें।
- देवताओं की प्रतिमा, पूजन स्थल को जल से पवित्र करें।
- दान-पुण्य करें (अन्न, वस्त्र, दक्षिणा आदि)।
- पुनः ईश्वर की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त करें।
🔹 विशेष बातें
- ग्रहण के समय भोजन, नींद, शारीरिक संबंध, नकारात्मक कार्य वर्जित माने जाते हैं।
- ग्रहण का समय आध्यात्मिक उन्नति और साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
👉 संक्षेप में, चंद्र ग्रहण की विधि है:
सूतक में संयम ➝ ग्रहण के दौरान जप-ध्यान ➝ ग्रहण के बाद स्नान-दान और पूजा।
🌕 चंद्र ग्रहण पूजा सामग्री सूची
- गंगाजल – स्नान और शुद्धिकरण के लिए
- तुलसी पत्ते – भोजन में डालने और पूजा में उपयोग हेतु
- दीपक (तेल/घी का) – दीप प्रज्वलन और आरती के लिए
- रुई की बाती – दीपक के लिए
- अगरबत्ती / धूपबत्ती – सुगंध और वातावरण पवित्र करने हेतु
- कपूर – आरती और शुद्धिकरण के लिए
- चंदन – तिलक और पूजन में
- कुंकुम / रोली – तिलक और पूजन हेतु
- अक्षत (चावल) – पूजा में अर्पण के लिए
- फूल (विशेषकर सफेद) – अर्पण और सजावट के लिए
- माला (रुद्राक्ष / तुलसी) – मंत्र जाप के लिए
- ध्यान आसन (कुशासन या आसन चटाई) – ध्यान और जप हेतु
- शुद्ध जल से भरा कलश – पूजा में स्थापना के लिए
- पान, सुपारी, लौंग, इलायची – परंपरागत अर्पण सामग्री
- फल व मिष्ठान्न – ग्रहण उपरांत अर्पण हेतु
- पीत वस्त्र या धूपवस्त्र – पूजन के समय धारण करने हेतु
- शास्त्र / धार्मिक पुस्तकें (गीता, रामचरितमानस, हनुमान चालीसा) – पाठ और मंत्र जाप हेतु
- दान सामग्री – अन्न, वस्त्र, दक्षिणा आदि (ग्रहण उपरांत दान के लिए)
🔹 विशेष संकेत
- ग्रहण के दौरान दीप जलाकर मंत्र जाप करना अत्यंत शुभ है।
- पूजा में तुलसी पत्तों का प्रयोग अवश्य करें।
- ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान, शुद्धिकरण, हवन/आरती और दान ज़रूर करना चाहिए।
🌕 चंद्र ग्रहण के उपाय
🔹 ग्रहण से पहले
- घर में रखे अन्न और पानी में तुलसी पत्ते डाल दें, ताकि वह नकारात्मक प्रभाव से बचा रहे।
- सूतक काल लगते ही पूजा स्थलों को ढक दें और मंदिरों के द्वार बंद कर दें।
- अनावश्यक कार्यों से बचें और साधना की तैयारी करें।
🔹 ग्रहण के दौरान
- मंत्र जाप करें –
- महामृत्युंजय मंत्र
- गायत्री मंत्र
- हनुमान चालीसा
- विष्णु सहस्रनाम
ग्रहण काल में एक-एक मंत्र का जप सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक फलदायी होता है।
- ध्यान और भक्ति – मौन रहकर ध्यान करना अत्यंत शुभ है।
- दान का संकल्प लें – ग्रहण समाप्ति पर वस्त्र, अन्न, दक्षिणा दान करने का निश्चय करें।
- ग्रहण के समय शिव या विष्णु की उपासना करें।
🔹 ग्रहण के बाद
- सबसे पहले स्नान करें (गंगाजल से शुद्धिकरण करना श्रेष्ठ है)।
- घर के सभी स्थानों पर गंगाजल छिड़कें।
- दान करें – अन्न, वस्त्र, तिल, दक्षिणा, और जरूरतमंदों को भोजन कराना विशेष पुण्यकारी है।
- ग्रहण उपरांत आरती और हवन करें।
- भगवान से परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की प्रार्थना करें।
🔹 विशेष ज्योतिषीय उपाय
- जिनकी कुंडली में चंद्र दोष, पितृ दोष या ग्रह बाधा है, वे ग्रहण के दौरान मंत्र जाप और दान करने से लाभ पा सकते हैं।
- विवाह, संतान, धन या स्वास्थ्य संबंधी अड़चनें दूर करने के लिए ग्रहण काल में संकल्प लेकर उपाय करना प्रभावी होता है।
👉 संक्षेप में:
सूतक में संयम ➝ ग्रहण के दौरान जप और संकल्प ➝ ग्रहण बाद स्नान, शुद्धिकरण और दान = शुभ फल प्राप्ति।
शनि दोष से मुक्ति का सरल उपाय: हनुमान आराधना