
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप:
- ये तपस्या और संयम की देवी मानी जाती हैं।
- इनके एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडलु होता है।
- इनका स्वरूप अत्यंत शांत, तेजस्वी और तपस्विनी का होता है।
पूजन विधि:
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
- पुष्प, अक्षत, चंदन, दूध, दही, शहद आदि अर्पित करें।
- माता को सफेद फूल और चीनी का भोग विशेष रूप से अर्पित करें।
- “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
- ब्रह्मचारिणी माता से संयम, धैर्य और ज्ञान की प्राप्ति की प्रार्थना करें।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से संकल्प शक्ति, आत्मसंयम और साधना की शक्ति प्राप्त होती है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से हमें संयम, तपस्या, धैर्य और ज्ञान की शिक्षा मिलती है।
माँ ब्रह्मचारिणी से मिलने वाली शिक्षाएँ
- धैर्य और सहनशीलता – जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, अगर हम धैर्य और संयम बनाए रखें, तो सफलता अवश्य मिलेगी।
- सद्गुणों का विकास – माँ ब्रह्मचारिणी आत्मसंयम, साधना और ब्रह्मचर्य का प्रतीक हैं, जिससे हमें अपने जीवन में अच्छे गुणों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है।
- सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा – ये हमें सिखाती हैं कि सच्चे मार्ग पर चलते हुए कठिनाइयों का सामना करना चाहिए, लेकिन अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।
- ज्ञान की महत्ता – माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप यह संकेत देता है कि विद्या, ज्ञान और साधना से ही हम आत्मबोध और सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
- संकल्प शक्ति और दृढ़ निश्चय – माँ ब्रह्मचारिणी की कठोर तपस्या हमें यह सिखाती है कि अगर हमारा लक्ष्य स्पष्ट और संकल्प अडिग हो, तो हम जीवन में किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं।
निष्कर्ष
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से हमें सिखने को मिलता है कि हमें अपने लक्ष्य के प्रति अटल रहना चाहिए, कठिनाइयों का सामना धैर्य और संयम से करना चाहिए, और जीवन में सच्चे ज्ञान एवं साधना के मार्ग पर चलना चाहिए। 🚩
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