
होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक (आठ दिनों तक) चलता है। इस दौरान शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि वर्जित माने जाते हैं। यह समय होली की तैयारियों और भक्ति के लिए समर्पित होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इन आठ दिनों में प्रकृति में विशेष ऊर्जा होती है, जिससे मानसिक और भावनात्मक अस्थिरता बढ़ सकती है। इसलिए शांत मन से भगवान की आराधना करनी चाहिए।
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होलाष्टक का महत्व और नियम
होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन (फाल्गुन पूर्णिमा) तक के आठ दिनों की अवधि को कहते हैं। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, सगाई आदि को वर्जित माना जाता है।
क्यों माना जाता है अशुभ?
होलाष्टक को अशुभ इसलिए माना जाता है क्योंकि इन आठ दिनों में प्रकृति में उथल-पुथल रहती है, जिससे मानसिक और शारीरिक तनाव बढ़ सकता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इन दिनों में प्रह्लाद पर अत्याचार किए गए थे, जिससे वातावरण नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित हुआ था।
क्या करें और क्या न करें?
✅ क्या करें:
- भगवान विष्णु, शिव, और नरसिंह भगवान की पूजा करें।
- जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दान दें।
- भजन-कीर्तन और हवन करें।
❌ क्या न करें:
- शादी, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय शुरू न करें।
- नकारात्मक विचारों से बचें।
- किसी का अपमान या दुर्व्यवहार न करें।
होलाष्टक के बाद होलिका दहन और फिर रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है, जो नकारात्मकता को जलाकर जीवन में नई ऊर्जा लाने का प्रतीक है। 🌸🔥
पीले फूल, चने की दाल, गुड़, और हल्दी अर्पित करें।
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होलाष्टक का आरंभ
होलाष्टक का आरंभ