
हनुमान जी ने सूर्यदेव को गुरु बनाकर शिक्षा क्यों लीए?
बाल्यकाल से ही हनुमान जी अत्यंत जिज्ञासु और ज्ञान-पिपासु थे। उन्हें यह समझ था कि केवल बल ही पर्याप्त नहीं है, ज्ञान और विवेक के बिना शक्ति अधूरी है। इसलिए वे श्रेष्ठ गुरु की तलाश में थे।
सूर्यदेव से शिक्षा की आरंभ
हनुमान जी ने निश्चय किया कि संपूर्ण सृष्टि को आलोकित करने वाले सूर्यदेव ही उनके योग्य गुरु हो सकते हैं।
वे विनम्र भाव से सूर्यदेव के पास पहुँचे और निवेदन किया –
“हे सूर्यदेव! कृपया मुझे अपना शिष्य बना लीजिए और समस्त वेद, शास्त्र और विद्या का ज्ञान दीजिए।”
सूर्यदेव की परीक्षा
सूर्यदेव ने कहा –
“वत्स! मैं कभी रुकता नहीं हूँ, सदा आकाश में गतिशील रहता हूँ। चलते-चलते शिक्षा देना संभव नहीं।”
इस पर हनुमान जी ने उत्तर दिया –
“गुरुदेव, आप जहाँ भी चलेंगे, मैं आपके साथ-साथ चलता रहूँगा। कभी पीछे नहीं रहूँगा।”
यह सुनकर सूर्यदेव प्रसन्न हो गए और उन्होंने हनुमान जी को शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया।
अद्भुत अध्ययन
हनुमान जी ने सूर्यदेव के रथ के सम्मुख उड़ते हुए ज्ञान अर्जन करना आरंभ किया।
- उन्होंने वेद, उपनिषद, वेदांग, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष और सभी शास्त्रों का गहन अध्ययन किया।
- बाल्यकाल में ही उन्होंने अद्वितीय ज्ञान, विवेक और नीति को आत्मसात कर लिया।
गुरु दक्षिणा
शिक्षा पूर्ण होने पर हनुमान जी ने सूर्यदेव से गुरु दक्षिणा माँगी।
सूर्यदेव ने कहा –
“वत्स! मुझे दक्षिणा की आवश्यकता नहीं, लेकिन यदि देना ही चाहते हो, तो मेरे पुत्र शनि की सेवा करो।”
तब हनुमान जी ने शनि देव को अपने कंधे पर बैठाकर उनका अहंकार तोड़ा और लोगों को शनि पीड़ा से मुक्ति दिलाई।
🌺 सार
हनुमान जी ने यह दिखाया कि
- शक्ति के साथ ज्ञान का संतुलन आवश्यक है।
- सच्चा शिष्य वह है, जो गुरु की हर कठिन शर्त को भी विनम्रता से स्वीकार कर ले।
असीम धैर्य और लगन
हनुमान जी निरंतर सूर्यदेव के रथ के सामने उड़ते रहते। तेज गर्मी और प्रचंड प्रकाश के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। यह उनकी असीम तपस्या और लगन को दर्शाता है।
2. अल्प समय में सम्पूर्ण विद्या
हनुमान जी की स्मरण शक्ति इतनी प्रखर थी कि उन्होंने कुछ ही दिनों में वेद, उपनिषद, शास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष और व्याकरण का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया। वे “नवव्याकरण पंडित” कहलाए।
3. ज्ञान और विनम्रता का संगम
शिक्षा पूर्ण करने के बाद भी हनुमान जी ने कभी घमंड नहीं किया। बल्कि वे और भी विनम्र और सेवाभावी बन गए।
4. शनि देव से जुड़ी कथा
गुरु दक्षिणा के रूप में हनुमान जी ने सूर्यदेव के पुत्र शनि देव की सेवा का व्रत लिया। जब शनि देव को अभिमान हुआ, तब हनुमान जी ने उन्हें अपने पूँछ में लपेट लिया और तब तक छोड़ा नहीं जब तक उन्होंने वचन न दिया –
“जो भी भक्त तुम्हारा स्मरण करेगा, मैं उसकी पीड़ा कम कर दूँगा।”
5. शिक्षा का संदेश
हनुमान जी की यह कथा हमें सिखाती है:
- सच्चा शिष्य कठिन परिस्थितियों में भी अध्ययन और साधना नहीं छोड़ता।
- ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी अहंकार नहीं करना चाहिए।
- बल, बुद्धि और भक्ति का समन्वय ही जीवन को महान बनाता है।
🌸 इसीलिए हनुमान जी को न केवल “बलवान” बल्कि “विद्वान और महान गुरु-भक्त” भी माना जाता है।
हरितालिका तीज व्रत की पूजा विधि एवं लाभ
https://www.youtube.com/@bhaktikibhavnaofficial
हनुमान जी ने सूर्यदेव को गुरु बनाकर शिक्षा क्यों लीए?
हनुमान जी ने सूर्यदेव को गुरु बनाकर शिक्षा क्यों लीए?