
हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) के (11-20) का हिंदी अर्थ प्रस्तुत हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) के (11-20) का हिंदी अर्थ
श्री हनुमान जी के सुंदरकांड के अगले दोहे (11-20) का हिंदी अर्थ प्रस्तुत करते हैं। यह भावार्थ कथा को और भी अधिक स्पष्ट और प्रेरणादायक बनाएगा।
दोहा 11:
सीतहि सुधि तजि रावन क्रोध, कहत सहज करुना।
कपि हृदय धरि राम पद, जयति बिनय बसुना।।
अर्थ:
हनुमान जी ने सीता माता की दशा देखकर रावण के क्रोध और अहंकार का त्याग करते हुए अपने हृदय में करुणा और श्रीराम के चरणों का ध्यान धारण किया। उनके इस विनम्र स्वभाव ने सभी बाधाओं को जीत लिया।
दोहा 12:
कहु कपि काज करहु मोहि, देखत दीन हीन।
सुनि सुनि रघुनाथ गुन, हरष तनय धीर।।
अर्थ:
हनुमान जी ने सीता माता से कहा, “माँ, मैं आपके उद्धार के लिए आया हूँ। प्रभु श्रीराम के गुणों का स्मरण कर आप धैर्य बनाए रखें।” यह सुनकर सीता जी के मन में हर्ष और संतोष हुआ।
दोहा 13:
कहा कपि करुना सिंधु प्रभु, उर धरहु अति प्रीति।
कृपानिधि सब काज करिही, सोचु रहु न मन भीति।।
अर्थ:
हनुमान जी ने माता सीता को समझाया, “प्रभु श्रीराम करुणा के सागर हैं। उनके प्रति अटूट प्रेम रखें। वे आपकी हर समस्या का समाधान करेंगे, इसलिए मन में किसी भी प्रकार का भय या चिंता न रखें।”
दोहा 14:
कपि पुनि बिनय करि समुझावा, रघुबर शील निधान।
सुनि कपि वचन धीर धरि, हरष भरे श्री राम गुण गान।।
अर्थ:
हनुमान जी ने सीता माता को श्रीराम के गुणों और उनके शील का वर्णन करते हुए समझाया। उनकी बातें सुनकर सीता जी ने धैर्य धारण किया और उनके मन में श्रीराम के प्रति श्रद्धा और प्रेम और अधिक गहरा हो गया।
दोहा 15:
कहा कपि तब दीन मम दु:ख, करहु सकल हित कार।
कृपा करि रघुवीर कहि, कपि तात करहु उद्धार।।
अर्थ:
हनुमान जी ने सीता माता को विश्वास दिलाया, “श्रीराम कृपालु हैं। वे आपका दुख समाप्त करेंगे और आपका उद्धार करेंगे। बस आप विश्वास बनाए रखें।”
दोहा 16:
सुनि कपि मृदु वचन हरष, कहे कृपा निधान।
धन्य कपि तोहि जानत, मम प्रिय रघुकुल नाम।।
अर्थ:
सीता जी ने हनुमान जी के कोमल और मधुर वचनों को सुनकर प्रसन्नता प्रकट की और कहा, “हे कपि, तुम धन्य हो! तुमने मेरे प्रिय रघुकुल के नाम का गुणगान किया।”
दोहा 17:
कपि पुनि सीतहि नमो प्रभु, बोलत गदगद भाव।
धीरज धरहु सुमिरि प्रभु, सब काज करिही रघुनाथ।।
अर्थ:
हनुमान जी ने माता सीता को प्रणाम किया और गदगद भाव से कहा, “माता, धैर्य रखें और श्रीराम का स्मरण करें। वे शीघ्र ही सब कार्य संपन्न करेंगे।”
दोहा 18:
तब कपि राखि राम गुन, चले वचन सिर धार।
सुधि लंकिनी तजि चले, कपि सुत करे उदार।।
अर्थ:
हनुमान जी ने श्रीराम के गुणों को मन में धारण कर सीता माता का संदेश लेकर लंका छोड़ने का निश्चय किया। उन्होंने सभी कार्यों को कुशलता से पूरा करने की प्रतिज्ञा की।
दोहा 19:
लंका जलाय कपि उर धरि, प्रभु करि बल बिसाल।
रावन समेत सकल कपट, हरहु राम कराल।।
अर्थ:
हनुमान जी ने श्रीराम की असीम शक्ति के सहारे लंका जलाने का कार्य किया। उन्होंने रावण और उसके कपट को नष्ट करने का संकल्प लिया।
दोहा 20:
राम सिय नमन करि, कपि चलि, हर्षित भए।
संधान करि रघुनाथ रज, काज सफलता गए।।
अर्थ:
हनुमान जी ने श्रीराम और सीता माता को प्रणाम किया और अत्यंत प्रसन्नचित्त होकर अपने कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए लौट चले।
हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) के (11-20) का हिंदी अर्थ प्रस्तुत
हनुमान जी के सुंदरकांड के दोहे (भाग 2) के (11-20) का हिंदी अर्थ प्रस्तुत
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