
श्रीमद्भगवद्गीता: अध्याय 14 (गुणत्रयविभाग योग)
हनुमान जी की पूजा विधि में भक्ति, सरलता और श्रद्धा का विशेष महत्व होता है। यहाँ पर हनुमान जी की संपूर्ण पूजा विधि दी जा रही है, जिसे आप किसी मंगलवार या शनिवार को कर सकते हैं।
पूजा की तैयारी
- साफ-सफाई: पूजा स्थान को साफ करें और गंगाजल का छिड़काव करें।
- आवश्यक सामग्री:
- हनुमान जी की मूर्ति या चित्र
- लाल कपड़ा, रोली, अक्षत (चावल), सिंदूर
- चंदन, पुष्प (गेंदे और लाल फूल), तुलसी दल
- घी का दीपक, अगरबत्ती, नारियल, केला या मिठाई (लड्डू विशेष रूप से)
- हनुमान चालीसा, सुंदरकांड पुस्तक, या रामचरितमानस
पूजा विधि
- स्नान और ध्यान:
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
- पूजा स्थान पर बैठकर ध्यान करें और हनुमान जी का स्मरण करें।
- मूर्ति या चित्र स्थापना:
- पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर हनुमान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- आवाहन और संकल्प:
- हाथ में जल लेकर, हनुमान जी का आवाहन करें:
ॐ हनुमते नमः।
- पूजा का संकल्प लें: “मैं (अपना नाम) अपने समस्त कष्टों के निवारण और जीवन में शुभता के लिए हनुमान जी की पूजा कर रहा/रही हूं।”
- हाथ में जल लेकर, हनुमान जी का आवाहन करें:
- पूजा आरंभ:
- रोली और अक्षत से तिलक करें।
- हनुमान जी को सिंदूर और चंदन अर्पित करें।
- पुष्प, तुलसी दल और माला चढ़ाएं।
- अगरबत्ती और दीपक जलाएं।
- हनुमान चालीसा और मंत्र जाप:
- हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- हनुमान जी के मंत्र का जाप करें:
ॐ हनुमते नमः
याॐ रामदूताय नमः।
- प्रसाद अर्पण:
- लड्डू, गुड़-चने, या केले का प्रसाद चढ़ाएं।
- आरती:
- घी का दीपक लेकर हनुमान जी की आरती करें। आरती के दौरान घंटी बजाएं।
- “जय हनुमान ज्ञान गुन सागर” आरती गाएं।
- प्रार्थना और समर्पण:
- अपनी मनोकामना हनुमान जी के सामने प्रकट करें।
- हनुमान जी से शक्ति, साहस और कृपा की प्रार्थना करें।
- प्रसाद वितरण:
- पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद सभी को बांटें।
विशेष ध्यान देने योग्य बातें
- पूजा करते समय हनुमान जी के चरणों में राम नाम का जप या स्मरण करें।
- पूजा के दिन सात्विक आहार ग्रहण करें और क्रोध एवं नकारात्मक विचारों से बचें।
- अगर समय हो तो सुंदरकांड का पाठ अवश्य करें। यह अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
हनुमान जी की पूजा की एक सरल विधि
यदि आप समय और साधनों की सीमाओं के कारण विस्तृत पूजा नहीं कर सकते, तो नीचे दी गई सरल पूजा विधि का पालन कर सकते हैं। यह विधि भी प्रभावी और फलदायी मानी जाती है।
पूजा की तैयारी
- स्नान और स्वच्छता:
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। - आवश्यक सामग्री:
- हनुमान जी का चित्र या मूर्ति
- सिंदूर, चावल, पुष्प (लाल या गेंदे के फूल)
- गुड़-चने या केले का प्रसाद
- दीपक, अगरबत्ती
सरल पूजा विधि
- ध्यान और आवाहन:
पूजा स्थान पर हनुमान जी का चित्र या मूर्ति रखें।
हाथ जोड़कर ध्यान करें और हनुमान जी का स्मरण करें:ॐ हनुमते नमः।
- सिंदूर और पुष्प अर्पित करें:
- सिंदूर लेकर हनुमान जी के चरणों या मूर्ति पर लगाएं।
- लाल या गेंदे के फूल अर्पित करें।
- दीपक और अगरबत्ती:
- घी का दीपक जलाएं।
- अगरबत्ती जलाकर हनुमान जी के सामने रखें।
- हनुमान चालीसा का पाठ:
- पूरी श्रद्धा से हनुमान चालीसा का पाठ करें।
यदि समय कम हो तो यह मंत्र 11 बार जपें:
ॐ हनुमते नमः।
- पूरी श्रद्धा से हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- प्रसाद अर्पित करें:
- हनुमान जी को गुड़-चने या केले का भोग लगाएं।
- प्रार्थना:
- अपनी समस्या या मनोकामना उनके सामने रखें।
- उनके चरणों में झुककर आशीर्वाद प्राप्त करें।
- आरती करें:
- दीपक लेकर हनुमान जी की आरती करें।
आरती के दौरान “जय हनुमान ज्ञान गुन सागर” गाएं।
- दीपक लेकर हनुमान जी की आरती करें।
- प्रसाद वितरण:
- पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार के सदस्यों में बांटें।
महत्वपूर्ण बातें:
- पूजा के दिन लाल रंग का महत्व है। संभव हो तो लाल वस्त्र पहनें।
- पूजा के दिन मांसाहार, शराब, और नकारात्मक भावों से बचें।
- हनुमान जी की पूजा में पवित्रता और मन की एकाग्रता विशेष रूप से आवश्यक है।
- यदि आप नियमित पूजा करना चाहते हैं, तो मंगलवार और शनिवार का दिन सबसे शुभ माना जाता है।
हनुमान जी की कथा
हनुमान जी का जीवन प्रेरणादायक, चमत्कारिक और भक्तों के लिए मार्गदर्शक है। उनकी कथा उनके जन्म, पराक्रम और भक्ति से भरी हुई है। यहाँ हनुमान जी की प्रमुख कथा प्रस्तुत की जा रही है:
हनुमान जी का जन्म
हनुमान जी को पवनपुत्र कहा जाता है। उनका जन्म अंजनी और केसरी के पुत्र के रूप में हुआ। यह माना जाता है कि अंजनी ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे शिव ने उन्हें वरदान दिया।
जब राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ के दौरान अग्नि देव को खीर अर्पित की, तब पवन देवता ने उस खीर का एक भाग अंजनी के पास पहुंचा दिया। उसे ग्रहण करने के बाद अंजनी ने हनुमान जी को जन्म दिया। उनके जन्म के समय उनका नाम अंजनिपुत्र और मारुति रखा गया।
हनुमान जी की बाललीला
हनुमान जी के बालपन की लीलाएँ अत्यंत चमत्कारी थीं।
- सूर्य को निगलना:
एक बार बालक हनुमान को भूख लगी, तो उन्होंने आकाश में चमकते हुए सूर्य को देखकर सोचा कि यह कोई बड़ा फल है। वे सूर्य को खाने के लिए छलांग लगा दी। इंद्रदेव ने वज्र से प्रहार किया, जिससे हनुमान जी की ठुड्डी (हनु) में चोट लगी। तभी से उनका नाम हनुमान पड़ा।
पवनदेव को यह देखकर क्रोध आया और उन्होंने वायु को रोक दिया, जिससे संसार में त्राहि-त्राहि मच गई। तब सभी देवताओं ने हनुमान जी को अमोघ शक्तियों का वरदान दिया। - अज्ञात बल का श्राप:
हनुमान जी बाल्यकाल में इतने शक्तिशाली थे कि देवताओं ने उनके बल का दुरुपयोग न हो, इसलिए उन्हें उनकी शक्ति का ज्ञान तब तक न होने का श्राप दिया, जब तक कोई उन्हें इसकी याद न दिलाए।
रामभक्ति की शुरुआत
हनुमान जी ने श्रीराम से पहली बार उस समय भेंट की, जब वे माता सीता की खोज में सुग्रीव से मिलने आए। हनुमान जी ने राम के चरणों में नमन किया और उनकी सेवा में समर्पित हो गए।
- सीता की खोज:
जब श्रीराम को पता चला कि माता सीता को रावण ने हरण कर लिया है, तब हनुमान जी ने उनकी खोज का बीड़ा उठाया। वे विशाल समुद्र लांघकर लंका पहुंचे। वहाँ उन्होंने अशोक वाटिका में माता सीता से भेंट की और उन्हें श्रीराम का संदेश और अंगूठी दी। - लंका दहन:
रावण के दरबार में हनुमान जी को बंदी बना लिया गया और उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। अपनी शक्ति का प्रयोग करके हनुमान जी ने पूरी लंका को जला दिया, जिससे रावण के अहंकार को झटका लगा।
राम-रावण युद्ध में योगदान
- संजीवनी लाना:
युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तब वैद्य ने संजीवनी बूटी लाने का निर्देश दिया। हनुमान जी संजीवनी लाने के लिए हिमालय गए। समय कम होने के कारण उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और समय पर लक्ष्मण की जान बचाई। - भक्ति और समर्पण:
हनुमान जी ने श्रीराम की सेवा में अपना सबकुछ समर्पित कर दिया। उनकी भक्ति का यह आलम था कि उन्होंने श्रीराम के नाम को अपने शरीर पर अंकित कर लिया।
हनुमान जी का आशीर्वाद और अमरता
श्रीराम ने हनुमान जी को यह आशीर्वाद दिया कि वे अमर रहेंगे और कलियुग में अपने भक्तों की रक्षा करेंगे। यह भी कहा गया कि जहाँ-जहाँ श्रीराम का नाम लिया जाएगा, वहाँ हनुमान जी उपस्थित रहेंगे।
हनुमान जी की शिक्षाएँ
हनुमान जी की कथा हमें सिखाती है:
- सच्ची भक्ति में समर्पण और सेवा का भाव होना चाहिए।
- हर कार्य में साहस और निष्ठा का होना अनिवार्य है।
- अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करें।
- अहंकार को त्यागकर विनम्रता और धर्म का पालन करें।