स्कंद षष्ठी: दैत्य सुरपदमन पर भगवान स्कंद की विजय
1. पृष्ठभूमि : देवताओं की व्यथा और महिषासुरों का अत्याचार
दैत्यराज सुरपति कश्यप की वंश परम्परा से उत्पन्न असुर सुरपदमन और उसके दो भाई, सिंहमुखन तथा तरकाशुर, अपने तप और वरदानों के बल पर अत्यन्त शक्तिशाली हो गए।
सुरपदमन विशेष रूप से
- अजेय,
- मायावी,
- और हर रूप में रूपान्तरित होने की शक्ति से संपन्न
था।
इन दैत्यों ने देवताओं के लोक – स्वर्ग, गंधर्वलोक, भुवन – सब पर आधिपत्य जमा लिया।
देवताओं को यज्ञ, धर्म, तथा स्वधर्म का पालन करना कठिन हो गया।
इन्द्र, अग्नि, वरुण, वायु सभी पराजित होकर ब्रह्मा और विष्णु की शरण गए।
तब ब्रह्मा ने कहा कि सुरपदमन का वध केवल शिव पुत्र द्वारा ही संभव है, क्योंकि उसके वरदान के अनुसार देव–दानव–गंधर्व सब उसे नहीं मार सकते; केवल एक दिव्य “शक्तिशाली कुमार” ही उसका अंत करेगा।
2. शिव के तप का फल : दिव्य कुमार का जन्म
देवताओं की विनती पर कामदेव ने शिव का तप भंग करने का प्रयास किया, क्योंकि शिव की कृपा से ही वह परम योद्धा जन्म ले सकता था। लेकिन शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया।
इसके बाद पार्वती ने शिव को फिर से तप से उबारने के लिए
- सेवा,
- समर्पण
- और कठोर साधना
की।
अन्ततः शिव और शक्तिरूपा पार्वती के तेज से छह दिव्य स्पन्दन (बीज) उत्पन्न हुए, जिन्हें
- गंगा,
- कार्तिकेयियों (ऋषि-पत्नी)
ने पालन करके छः शिशुओं के रूप में पोषित किया।
इन छह शिशुओं का दिव्य तेज एक होकर बन गया—
षडानन – छह मुखों वाले भगवान स्कंद
जिन्हें
- मुरुगन
- कार्तिकेय
- गुह
- शरवणभव
- कुमारस्वामी
के नाम से भी जाना जाता है।
3. देवसेना का सेनापति : देवताओं की आशा जागी
शिव ने स्कंद को देवसेना का सेनापति नियुक्त किया।
इन्द्र, वरुण, अग्नि, वायु, सूर्य सभी ने उन्हें अपने-अपने दिव्य आयुध अर्पित किए—
- इन्द्र का वज्र,
- विष्णु का चक्र,
- अग्नि का शक्तिशास्त्र,
परंतु उनमें सर्वश्रेष्ठ था—
शक्ति भाला (वेल)
जो स्वयं पार्वती का तेज था। यह भाला दैत्यों के अभेद्य कवच को भेदने की सामर्थ्य रखता था।
4. स्कंद षष्ठी का युद्ध : छह दिनों का महासंग्राम
पहला दिन : तरकाशुर का विनाश
स्कंद ने देवसेना के साथ दानवों पर आक्रमण किया।
पहले दिन तरकाशुर अपनी विशाल सेना के साथ आया।
स्कंद ने अपने वेल से उसका कवच चीरकर उसका अंत कर दिया।
दूसरा दिन : सिंहमुखन का अभ्युत्थान
सुरपदमन ने अपने भाई सिंहमुखन को भेजा।
वह उग्र सिंह रूप धारण कर लड़ने लगा।
स्कंद ने उसे वज्र और शक्ति से पराजित किया।
तीसरा–पाँचवाँ दिन : मायावी युद्ध
सुरपदमन ने आकाश में और पृथ्वी पर असंख्य मायाएँ रचीं—
- असुरगणों की अनंत छाया,
- पर्वताकार रूप,
- नाग, व्याघ्र, अग्नि ज्वालाएँ,
- भयंकर भ्रमित कर देने वाले मंत्र।
स्कंद ने अपने छह मुखों से
- समान रूप से छह दिशाओं में युद्ध किया,
- अपनी दिव्य ज्योति से दैत्यों की माया नष्ट की,
- और असुर दल को लगभग समाप्त कर दिया।
छठा दिन : निर्णायक युद्ध—सुरपदमन से आमना-सामना
स्कंद षष्ठी का छठा दिन विजय दिवस माना जाता है।
सुरपदमन ने कई रूप बदले—
- पर्वत के समान विशाल रूप
- अग्नि के गोले
- बादल और बिजली
- सर्प
- दैत्यपक्षी
परंतु हर बार स्कंद ने उसे पराजित किया।
अन्त में उसने विशाल आमलक (आँवले) के वृक्ष का रूप धारण करके छिपने की कोशिश की।
स्कंद ने यह पहचान लिया और अपने वेल (शक्ति भाले) से वार किया।
भाला उसे चीर गया, परन्तु वह पुनः एक विशाल राक्षस बनकर निकला।
तब स्कंद ने कहा—
“सुरपदमन! धर्म से विमुख होकर तुमने तीन लोकों को कष्ट दिया है। अब तुम्हारा विनाश निश्चित है।”
वेल का अंतिम प्रहार हुआ।
सुरपदमन दो भागों में विभाजित हुआ—
- एक भाग मोर में परिवर्तित हुआ,
- दूसरा मुर्गा (कुक्कुट) बन गया।
स्कंद ने इसे शरणागति मानकर कहा—
“तुम्हारे ये रूप सदा मेरे वाहन और ध्वज पर रहेंगे।”
इस प्रकार वह मोर उनका वाहन और मुर्गा उनके ध्वज का चिह्न बना।
5. विजय की घोषणा : देवताओं को मुक्ति
छह दिनों का युद्ध समाप्त हुआ।
देवताओं ने उत्सव मनाया।
ऋषि, गंधर्व, अप्सराएँ आनंद से विह्वल हो उठीं।
इस दिन को ही स्कंद षष्ठी, (सूरसम्हारम्) कहा जाता है, जब स्कंद ने संहार करके धर्म की स्थापना की।
6. आध्यात्मिक प्रतीक
- मोर : अहंकार पर विजय
- मुर्गा : अज्ञान और भय का नाश
- वेल : दिव्य ज्ञान और शक्ति
- षडानन : साहस, करुणा, ज्ञान, महाशक्ति, धैर्य और प्रकाश—छः दिव्य गुण
7. आज के समय में स्कंद षष्ठी का महत्व
- तमिलनाडु और दक्षिण भारत में विशेष उत्सव
- उपवास, पूजा, व्रत
- सूरसम्हारम् के नाट्य रूपांतरण
- संकटों की समाप्ति, साहस की प्राप्ति और विजयों का आशीर्वाद
स्कंद षष्ठी व्रत और पूजा विधि
1. समय और मुहूर्त
- स्कंद षष्ठी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाई जाती है।
- यह दिन आमतौर पर अक्टूबर–नवंबर के बीच आता है।
- व्रत के लिए सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करना उत्तम माना जाता है।
- यदि संभव हो तो षष्ठी तिथि का संपूर्ण दिन व्रत रखना चाहिए।
2. व्रत का महत्व और नियम
- उपवास (व्रत)
- व्रती सूर्योदय से सूर्यास्त तक अनाहार रह सकते हैं।
- कठिन व्रती फल, दूध, हलवा या खिचड़ी का सेवन कर सकते हैं।
- व्रत करने से शरीर और मन शुद्ध होता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
- स्वच्छता
- घर और पूजा स्थल को साफ करना जरूरी है।
- स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनना शुभ होता है।
- पूजा स्थान
- घर में ऊँचे स्थान पर स्कंद की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- पूजा स्थल पर मोर पंख, लाल पुष्प और दीपक रखें।
3. स्कंद षष्ठी पूजा की विस्तृत विधि
(A) प्रारंभिक क्रियाएँ)
- पूजा की शुरुआत गायत्री मंत्र या गणेश वंदना से करें।
- शुद्ध जल से भगवान स्कंद की मूर्ति या चित्र को स्नान कराएँ।
- लाल वस्त्र चढ़ाएँ और अक्षत (चावल), पुष्प और धूप अर्पित करें।
(B) मुख्य मंत्र और प्रार्थना
- स्कंद षष्ठी के लिए मुख्य मंत्र:
"ओं स्कंदाय नमः
(C) भोग अर्पण
- भगवान स्कंद को फल, दूर्वा, हलवा, मोदक, दूध या शुद्ध शहद अर्पित करें।
- यदि व्रती निर्जला व्रत रखते हैं तो कम से कम जल या दूध अर्पित करें।
(D) दीप और आरती
- लाल रंग के दीपक और अगरबत्ती जलाएँ।
- आरती के समय मंत्र बोलते हुए भगवान के बल, साहस और विजय की अनुभूति करें।
- आरती के बाद भक्तिमय गीत या स्कंद कथा सुनना मंगलमय माना जाता है।
4. कथा का पाठ
- स्कंद षष्ठी की कथा पढ़ना व सुनना शुभ है।
- कथा में वर्णित हैं:
- दैत्य सुरपदमन का अत्याचार
- भगवान स्कंद का जन्म
- छह मुख वाले स्कंद द्वारा दैत्य का संहार
- कथा सुनने या पढ़ने से संकटों का नाश और साहस में वृद्धि होती है।
5. व्रत खोलने का तरीका
- सूर्यास्त के बाद व्रती हल्का भोजन ग्रहण करें।
- भोजन के पहले भगवान को धन्यवाद दें।
- भोजन में हमेशा शुद्ध और सात्विक आहार लें।
6. लाभ और महत्व
(A) आध्यात्मिक लाभ)
- भय, अहंकार और अज्ञान का नाश।
- मानसिक शक्ति, साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि।
- व्रत करने से मन और बुद्धि का शुद्धिकरण होता है।
(B) सांसारिक लाभ)
- घर और कार्यक्षेत्र में शांति और समृद्धि आती है।
- कष्ट और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- करियर और अध्ययन में सफलता।
- धन, स्वास्थ्य और परिवार में सुख-शांति।
(C) विशेष लाभ)
- युद्ध, प्रतियोगिता, परीक्षा या किसी चुनौतीपूर्ण कार्य में सफलता।
- किसी भी प्रकार के दुष्ट व्यक्ति या नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा।
- विशेषकर युवा या बच्चों के साहस, शक्ति और बुद्धि विकास के लिए अति लाभकारी।
7. अन्य महत्वपूर्ण बातें
- स्कंद षष्ठी के दिन मोर और लाल रंग का प्रयोग शुभ माना जाता है।
- कथा सुनते समय मौन और ध्यान करना विशेष फलदायक होता है।
- यदि संभव हो, मंदिर में जाकर भगवान स्कंद की पूजा करना उत्तम माना जाता है।
- पूजा और व्रत करने वाले व्यक्ति को सत्कर्म और परोपकार की ओर अग्रसर होना चाहिए।
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