
सूर्य देव को जल अर्पित करते समय यह मंत्र बोले
सूर्य देव को जल अर्पण करना एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली हिन्दू धार्मिक क्रिया है। इसे “सूर्य को अर्घ्य देना” कहा जाता है। यह न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि विज्ञान और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बहुत लाभकारी माना गया है। यहाँ पर सूर्य देव को जल अर्पित करने की पूरी प्रक्रिया, महत्व, नियम और विस्तृत मंत्र दिए गए हैं:
🌞 सूर्य देव को जल अर्पित करने का महत्व:
- आध्यात्मिक लाभ:
- सूर्य देव को अर्घ्य देने से व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा जागृत होती है।
- यह आत्मविश्वास और तेजस्विता बढ़ाता है।
- सूर्य ग्रह (जन्मकुंडली में) के दोष शांत होते हैं।
- स्वास्थ्य लाभ:
- सूर्योदय की किरणें त्वचा को विटामिन D देती हैं।
- नियमित सूर्य अर्घ्य से मानसिक शांति मिलती है और एकाग्रता बढ़ती है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
- जल धारा के माध्यम से सूर्य के प्रकाश को देखने से आँखों की रोशनी पर सकारात्मक असर पड़ता है।
- शरीर में ऊर्जा और प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ती है।
🛕 सूर्य को जल अर्पित करने की विधि (Step-by-Step Process):
1. समय:
- सुबह सूर्योदय के समय, जब सूर्य की पहली किरणें निकलती हैं।
- रविवार को विशेष रूप से अर्पण करना शुभ माना जाता है।
2. सामग्री:
- तांबे या पीतल का लोटा
- स्वच्छ जल (गंगाजल मिला सकते हैं)
- लाल फूल, लाल चंदन, अक्षत (चावल), रोली
- यदि संभव हो तो लाल वस्त्र धारण करें
3. दिशा:
- पूर्व दिशा की ओर मुख करें (जहाँ से सूर्य उदय होता है)।
4. विधि:
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- लोटे में जल भरें, उसमें लाल फूल, अक्षत, रोली आदि डालें।
- दोनों हाथों से लोटा पकड़कर माथे के सामने ऊँचाई पर रखें।
- सूर्य की किरणों की ओर देखते हुए नीचे दिए गए मंत्रों का उच्चारण करते हुए जल धीरे-धीरे अर्पित करें।
🕉️ सूर्य को जल अर्पित करते समय बोले जाने वाले मंत्र:
मुख्य बीज मंत्र (सरल और प्रभावशाली):
“ॐ घृणिः सूर्याय नमः।”
यह मंत्र सूर्य देव के बीज मंत्रों में से एक है और अर्घ्य देते समय तीन बार बोला जाता है।
विस्तृत मंत्रावली (उन्नत पूजा के लिए):
“ॐ आदित्याय नमः।
ॐ भास्कराय नमः।
ॐ मित्राय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ सवित्रे नमः।
ॐ अर्काय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ पूष्णे नमः।
ॐ हंसाय नमः।
ॐ सूर्याय नमः।”
इन्हें एक के बाद एक बोलते हुए 10 बार अर्घ्य दिया जा सकता है।
नवग्रह शांति मंत्र (यदि कुंडली में दोष हो):
“ॐ आदित्याय च सोमाय मङ्गलाय बुधाय च।
गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः॥”
⚠️ कुछ विशेष नियम और सावधानियाँ:
- जल अर्पण करते समय जल पैरों पर नहीं गिरना चाहिए — एक बर्तन नीचे रखें या खुले स्थान पर अर्पित करें।
- अर्घ्य देते समय ध्यान एकाग्र होना चाहिए और मोबाइल/बातचीत से बचें।
- अर्घ्य देने के बाद सूर्य को प्रणाम करें और दिन की शुभ शुरुआत करें।
- इस प्रक्रिया के बाद “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
📜 आदित्य हृदय स्तोत्र (संक्षिप्त आरंभिक श्लोक):
“ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥”
(यह भगवान राम को ऋषि अगस्त्य द्वारा उपदेशित स्तोत्र है, जिसे युद्ध से पूर्व पढ़ने से शक्ति और विजय मिलती है)