
सीता नवमी व्रत
हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माता सीता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसे जानकी नवमी भी कहा जाता है। यह व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं और माता सीता की पूजा-अर्चना करते हैं।
🌸 सीता नवमी व्रत का महत्व:
- यह दिन त्रेता युग में जनकपुर (मिथिला) में माता सीता के धरती से प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है।
- माता सीता को शुद्धता, सहनशीलता और त्याग की प्रतीक माना जाता है।
- यह व्रत विशेष रूप से सौभाग्य और संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
🕉️ पूजा विधि (व्रत विधि):
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- व्रत का संकल्प लें – माता सीता का ध्यान करते हुए उपवास का संकल्प लें।
- कलश स्थापना करें – पूजा स्थल पर जल से भरा कलश रखें।
- माता सीता और भगवान राम की प्रतिमा या चित्र की पूजा करें:
- पुष्प, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
- माता सीता की कथा सुनें या पढ़ें।
- भजन-कीर्तन करें और माता सीता की आरती करें।
- ब्राह्मण या कन्याओं को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
- शाम को व्रत कथा दोबारा सुनकर व्रत का समापन करें।
📖 सीता नवमी व्रत कथा (संक्षेप में):
जनक महाराज एक बार हल जोत रहे थे, तभी भूमि से एक कन्या प्रकट हुई। उन्होंने उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। यही कन्या आगे चलकर भगवान राम की अर्धांगिनी बनीं। माता सीता को धरती की बेटी माना जाता है, इसीलिए उन्हें भूमिजा भी कहा जाता है।
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