
संतोषी माता की व्रत कथा
संतोषी माता की व्रत कथा हिंदी में पढ़ने और गाने के लिए, नीचे पूरी कथा दी जा रही है। यह कथा आमतौर पर संतोषी माता के व्रत के दिन (शुक्रवार) सुनी और गाई जाती है।
एक समय की बात है, एक बुढ़िया के सात बेटे थे। उनमें से छह कमाने वाले और खाते-पीते थे, लेकिन सातवां बेटा आलसी था। वह अपनी मां के ऊपर निर्भर रहता था। उसकी मां उसे भोजन देती और ताने भी मारती।
एक दिन छोटे बेटे ने अपनी मां से कहा, “मां, मुझे कुछ पैसे दे दो, मैं भी व्यापार करूंगा।” मां ने ताने मारते हुए कहा, “तेरे पास कौन-सा भाग्य है जो व्यापार करेगा?” लेकिन बेटे ने बार-बार आग्रह किया, तो मां ने कर्ज लेकर उसे कुछ पैसे दिए।
वह बेटा व्यापार करने निकल पड़ा। रास्ते में उसे संतोषी माता का मंदिर मिला। उसने माता के सामने शीश झुका कर प्रार्थना की और उनसे सहायता मांगी। माता ने कृपा की और उसका व्यापार बढ़ गया। धीरे-धीरे वह धनवान हो गया।
उसकी पत्नी संतोषी माता का व्रत करने लगी। व्रत में हर शुक्रवार को संतोषी माता की पूजा की जाती और गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाया जाता। व्रत के प्रभाव से उनके घर में सुख-शांति और समृद्धि आ गई।
यह देखकर उसकी भाभियों को जलन होने लगी। उन्होंने माता के व्रत में बाधा डालने की योजना बनाई। एक दिन, जब व्रत के समाप्त होने पर प्रसाद वितरण हो रहा था, उन्होंने खट्टे पदार्थ लाकर रख दिए। संतोषी माता को खट्टा अर्पण करना व्रत का उल्लंघन है। जैसे ही खट्टा प्रसाद ग्रहण किया गया, संकट आने लगा।
पत्नी ने रो-रोकर माता से प्रार्थना की और अपनी भूल स्वीकार की। माता ने उसे क्षमा कर दिया और फिर से उनके जीवन में सुख-शांति लौट आई।
जो भी श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति के साथ संतोषी माता का व्रत करता है और कथा सुनता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
यह कथा संतोषी माता की महिमा का वर्णन करती है। जो भी भक्त श्रद्धा और विश्वास से इस कथा को पढ़ता या सुनता है, माता उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
प्राचीन समय की बात है। एक बुढ़िया के सात बेटे थे। छह बेटे मेहनती थे और कमाते थे, लेकिन सातवां बेटा आलसी और निकम्मा था। वह कुछ भी काम नहीं करता और अपनी मां के खर्चे पर रहता था।
एक दिन छोटे बेटे ने अपनी मां से कहा, “मां, मुझे कुछ पैसे दे दो, मैं भी कुछ काम करूंगा।” बुढ़िया ने ताने मारते हुए कहा, “तू निकम्मा है, तेरा काम करना किसी काम का नहीं है।” लेकिन बेटे के बार-बार कहने पर उसने कर्ज लेकर उसे कुछ पैसे दे दिए।
वह बेटा व्यापार करने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में उसे संतोषी माता का मंदिर मिला। उसने माता के चरणों में माथा टेका और प्रार्थना की, “हे मां, मुझ पर कृपा करना। मुझे व्यापार में सफलता मिले।” माता ने उसकी प्रार्थना सुन ली।
कुछ समय बाद उसका व्यापार खूब फलने-फूलने लगा। वह धनवान हो गया और उसने एक सुंदर स्त्री से विवाह किया। उसकी पत्नी अत्यंत धार्मिक थी और संतोषी माता का व्रत रखने लगी। हर शुक्रवार को वह माता का व्रत करती, पूजा करती और गुड़-चने का भोग लगाती।
उसकी भाभियों को उसकी खुशहाली देखकर जलन होने लगी। उन्होंने माता के व्रत में बाधा डालने की योजना बनाई। एक दिन, जब व्रत का प्रसाद वितरण हो रहा था, भाभियों ने उसमें खट्टे पदार्थ डाल दिए। संतोषी माता को खट्टा प्रसाद चढ़ाना निषिद्ध है।
इसका परिणाम यह हुआ कि घर में संकट आ गया। पति को व्यापार में नुकसान होने लगा और घर में अशांति छा गई। पत्नी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने रो-रोकर संतोषी माता से क्षमा मांगी। माता ने उसे क्षमा कर दिया और फिर से उनके घर में सुख-शांति लौट आई।
जो भी भक्त श्रद्धा और विश्वास से संतोषी माता का व्रत करता है और यह कथा सुनता है, उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
ह कथा व्रत के दिन पढ़ी और सुनी जाती है। क्या आपको इसे और संक्षिप्त रूप में चाहिए या किसी विशेष प्रारूप में