
संतोषी माता का व्रत का नियम
संतोषी माता का व्रत बहुत ही फलदायी और सरल माना जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से सुख-शांति, संतोष और परिवार में खुशहाली के लिए किया जाता है। इस व्रत में कुछ खास नियम और सावधानियां होती हैं, जिन्हें पालन करने से माता संतोषी की कृपा प्राप्त होती है।
संतोषी माता व्रत के नियम
1. व्रत का दिन और प्रारंभ
- संतोषी माता का व्रत सामान्यत: शुक्रवार को किया जाता है।
- यह व्रत लगातार 16 शुक्रवार तक करने का विधान है।
- व्रत प्रारंभ करने से पहले व्रती संकल्प लेकर माता संतोषी का ध्यान करते हैं।
2. पूजन की विधि और नियम
- स्नान और शुद्धि
- व्रत करने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
- पूजा स्थल को गोबर या गंगाजल से शुद्ध किया जाता है।
- संतोषी माता की मूर्ति या चित्र
- व्रती घर में संतोषी माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करके उनका पूजन करता है।
- माता को लाल या पीले वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है।
- आरती और भोग
- माता को गुड़ और चने का भोग लगाया जाता है।
- आरती करते समय “जय माता दी” का उच्चारण करते हुए दीपक जलाना आवश्यक है।
- संकल्प
- व्रत करने वाला मन में निश्चय करता है कि वह 16 शुक्रवार तक यह व्रत विधि-विधान से पूर्ण करेगा।
3. आहार संबंधी नियम
- व्रतधारी दिनभर व्रत रखता है और संध्या के समय भोग लगाकर भोजन करता है।
- भोजन में खट्टे पदार्थ (जैसे – दही, इमली, अचार, नींबू) का सख्ती से त्याग करना चाहिए।
- केवल गुड़ और चने का प्रसाद ग्रहण करना सबसे शुभ माना जाता है।
4. कथा श्रवण और नियम
- व्रत के दिन संतोषी माता की व्रत कथा सुनना या पढ़ना आवश्यक है।
- बिना कथा सुने व्रत अधूरा माना जाता है।
- कथा पूरी होने पर आरती की जाती है।
5. व्रत के दौरान वर्जनाएँ
- व्रत के दौरान झगड़ा-लड़ाई और असंतोष का भाव नहीं रखना चाहिए।
- व्रत में खट्टे पदार्थ खाना या खिलाना वर्जित है।
- व्रत तोड़ते समय व्रती को दान और भोग दोनों करना चाहिए।
- व्रत में दूसरों का अहित, कटु वचन या नकारात्मक विचार रखना अनुचित माना जाता है।
6. व्रत पूर्ण होने पर नियम
कन्याओं को दक्षिणा और उपहार देकर आशीर्वाद लेना आवश्यक है।
16वें शुक्रवार व्रत की उद्यापन (समापन) विधि करनी चाहिए।
माता का विशेष पूजन करके, 8 लड़कियों को घर बुलाकर उन्हें भोजन कराना चाहिए।
भोजन में मीठा और संतोषी माता का प्रिय गुड़-चना ही दिया जाता है।
विशेष महत्व
- यह व्रत करने से गरीबी, कलह और दुख दूर होते हैं।
- परिवार में संतोष, सुख और शांति बनी रहती है।
- संतानहीन दंपत्तियों को संतान सुख मिलता है।
- इच्छित मनोकामना पूरी होती है।
संतोषी माता व्रत का महत्व
1. आध्यात्मिक महत्व
- संतोषी माता व्रत का सबसे बड़ा संदेश है “संतोष”।
- यह व्रत व्यक्ति को यह सिखाता है कि अधिक पाने की लालसा, असंतोष और क्रोध जीवन को दुखमय बना देते हैं।
- जब मनुष्य संतोष के मार्ग पर चलता है, तो उसे भीतर से शांति और दिव्य शक्ति का अनुभव होता है।
- व्रत के द्वारा भक्त माता से आशीर्वाद पाकर अपने भीतर धैर्य, संयम और संतुलन लाता है।
2. धार्मिक महत्व
- शास्त्रों में संतोषी माता को शक्ति का स्वरूप माना गया है, जो भक्तों की हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण करती हैं।
- इस व्रत को करने से घर-परिवार में क्लेश, कलह, दरिद्रता और दुर्भाग्य दूर होता है।
- माता की विशेष कृपा से भक्त की सभी मनोकामनाएँ सिद्ध होती हैं, चाहे वह संतान सुख की कामना हो, धन-समृद्धि की इच्छा हो या पारिवारिक सुख की चाहत।
- ऐसा माना जाता है कि यदि कोई स्त्री निष्ठापूर्वक यह व्रत करे तो उसे जीवनभर सुखी वैवाहिक जीवन और परिवार का स्नेह प्राप्त होता है।
3. सामाजिक महत्व
- यह व्रत परिवार और समाज दोनों में सद्भाव और एकता को बढ़ावा देता है।
- व्रतधारी से अपेक्षा की जाती है कि वह किसी से क्रोध, कटुता या झगड़ा न करे।
- इससे घर और समाज दोनों में सकारात्मक वातावरण बनता है।
- व्रत के दौरान कन्या पूजन और भोजन कराना समाज में दया, सेवा और समर्पण की भावना को विकसित करता है।
4. पारिवारिक महत्व
- संतोषी माता व्रत को करने से परिवार में शांति और संतोष का वातावरण बनता है।
- पति-पत्नी के बीच आपसी मतभेद और तनाव समाप्त होते हैं।
- संतान के जीवन में उन्नति, पढ़ाई में सफलता और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
- माता की कृपा से घर में कभी भी अन्न, धन और साधनों की कमी नहीं होती।
5. आर्थिक महत्व
- जो लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे होते हैं, उनके लिए यह व्रत बहुत लाभकारी है।
- व्रत करने से घर में दरिद्रता, ऋण और तंगी दूर होती है।
- माता संतोषी के आशीर्वाद से व्यापार और नौकरी में उन्नति होती है।
- व्रतधारी को जीवन में धीरे-धीरे धन और साधनों की वृद्धि का अनुभव होता है।
6. मानसिक और भावनात्मक महत्व
- यह व्रत व्यक्ति को सकारात्मक सोच और धैर्य प्रदान करता है।
- मन में क्रोध, लोभ और ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाएँ कम होती हैं।
- व्रती के हृदय में करुणा, दया और सेवा भाव जागृत होता है।
- मनोबल और आत्मविश्वास मजबूत होता है।
7. मोक्ष और आध्यात्मिक फल
- संतोषी माता व्रत करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है।
- व्रतधारी मृत्यु के बाद मोक्ष और उत्तम लोक को प्राप्त करता है।
- यह व्रत आत्मा को शुद्ध और परमात्मा से जोड़ने का साधन है।
निष्कर्ष
- संतोषी माता व्रत का महत्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन को सही दिशा देने वाला एक आध्यात्मिक साधन है।
- इस व्रत से जीवन में सुख-शांति, परिवार में प्रेम, आर्थिक उन्नति, मानसिक संतुलन और आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त होती है।
- जो भी भक्त निष्ठा, श्रद्धा और शुद्ध भाव से यह व्रत करता है, माता संतोषी उसकी सभी इच्छाएँ पूरी करती हैं और उसके जीवन में संपन्नता, संतोष और समृद्धि का प्रकाश फैलाती हैं।
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