
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है, भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर निवास करते थे। एक दिन माता पार्वती स्नान के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर से उबटन निकाला और उससे एक बालक को निर्मित किया। उस बालक को माता ने आदेश दिया कि जब तक वह स्नान करके वापस न आएं, वह किसी को भी भीतर न आने दे।
इसी बीच भगवान शिव वहां पहुंचे और भीतर जाने लगे। बालक ने भगवान शिव को रोक दिया। बालक के साहस से भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उसका सिर काट दिया। जब माता पार्वती स्नान से बाहर आईं और अपने बालक को मृत देखा, तो वह अत्यंत दुःखी हुईं।
माता पार्वती के क्रोध और दुःख को शांत करने के लिए भगवान शिव ने बालक को जीवित करने का वचन दिया। उन्होंने देवताओं को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और पहले जीव का सिर लेकर आएं जिसे वे सोता हुआ पाएं। देवताओं को एक हाथी का बच्चा सोता हुआ मिला, और वे उसका सिर लेकर भगवान शिव के पास आए।
भगवान शिव ने उस सिर को बालक के धड़ पर लगाया और उसे पुनर्जीवित किया। उस बालक का नाम गणेश रखा गया और उसे “विघ्नहर्ता” (संकटों को हरने वाला) और “बुद्धि का देवता” कहा गया।
व्रत का महत्व
एक बार देवताओं ने भगवान गणेश से प्रार्थना की कि वे उन्हें एक ऐसा उपाय बताएं, जिससे सभी कष्ट और बाधाएं दूर हो सकें। तब भगवान गणेश ने कहा कि जो भक्त संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करेगा, उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है और इसे करने से भगवान गणेश की कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
संकष्टी गणेश चतुर्थी की दूसरी कथा
एक समय की बात है, महाभारत के युद्ध के बाद, धर्मराज युधिष्ठिर अत्यंत परेशान और दुखी थे। उन्हें यह महसूस हुआ कि इतनी बड़ी संख्या में लोग युद्ध में मारे गए हैं, और इस विनाश का कारण कहीं न कहीं उनकी महत्वाकांक्षा थी। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे केशव, मुझे ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पापों का नाश हो और मैं शांति प्राप्त कर सकूं।”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर, भगवान गणेश संकटों को हरने वाले और सभी विघ्नों को दूर करने वाले देवता हैं। यदि तुम संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखोगे और विधिपूर्वक गणेश जी की पूजा करोगे, तो तुम्हारे सभी पापों का नाश होगा और जीवन में शांति प्राप्त होगी।”
धर्मराज युधिष्ठिर ने कृष्ण भगवान के निर्देशानुसार संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया। उन्होंने पूरे दिन उपवास रखा, भगवान गणेश की पूजा की, और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया। इसके प्रभाव से उनके सभी कष्ट दूर हो गए और उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त हुई।
इस कथा का महत्व
यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान गणेश की आराधना से न केवल भौतिक समस्याएं दूर होती हैं, बल्कि व्यक्ति को आत्मिक शांति और संतुष्टि भी मिलती है। संकटों से घिरे हुए व्यक्ति के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है।
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संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा का उपसंहार
इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य, और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। भगवान गणेश के आशीर्वाद से सभी कार्य निर्विघ्न रूप से पूर्ण होते हैं।