श्री राम सीता विवाह: सुख-शांति का दिव्य संदेश
विवाह का आध्यात्मिक महत्व
श्री राम और माता सीता दोनों ही परम आदर्श रूपों का प्रतीक हैं—
- राम: धर्म, सत्य, कर्तव्य और मर्यादा
- सीता: पवित्रता, समर्पण, धैर्य और आदर्श पत्नी
इन दोनों का मिलन दर्शाता है कि जब मर्यादा और पवित्रता एक साथ आती हैं, तब संसार में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
मिथिला में विवाह का शुभ अवसर
राजा जनक द्वारा आयोजित धनुष-यज्ञ में जब श्री राम ने शिव धनुष को सहजता से उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे तोड़ दिया, तभी माता सीता ने मन ही मन उन्हें पति रूप में स्वीकार कर लिया। यह घटना रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण दोनों में अत्यंत मार्मिक रूप से वर्णित है।
धनुष भंग के बाद स्वयंवर का शुभ समय आया और पूरे मिथिला में मंगल ध्वनियों की गूंज उठी।
विवाह समारोह की दिव्यता
श्री राम-सीता विवाह का आयोजन अत्यंत भव्य और अलौकिक था—
- आठों दिशाओं में देवताओं के स्वर गूंजते थे।
- पुष्पवर्षा से वातावरण सुगंधित हो उठा।
- ऋषि-मुनि, देवगण, गंधर्व और अप्सराएँ आशीर्वाद देने पहुंचे।
- जनकपुरी का प्रत्येक मार्ग दीपों से सुसज्जित किया गया।
विद्वान ब्राह्मणों द्वारा वेद-मंत्रों की ध्वनि, कन्यादान का पवित्र क्षण, और श्री राम-सीता का एक-दूसरे को वरमाला पहनाना—सब मिलकर इस विवाह को अद्वितीय और दिव्य बना देते हैं।
श्री राम–सीता विवाह का जीवन-संदेश
1. दांपत्य जीवन का आदर्श मार्ग
राम और सीता एक-दूसरे के लिए कर्तव्य, सम्मान और समर्पण का सर्वोच्च उदाहरण हैं। उनका विवाह सिखाता है कि दांपत्य जीवन में विश्वास, धर्म और परस्पर समझ सबसे महत्वपूर्ण हैं।
2. धर्म और मर्यादा का पालन
राम ने सदा धर्म का पालन किया और सीता ने मर्यादा और पवित्रता का पालन। यह विवाह हर युग में बताता है कि किसी भी रिश्ते की नींव सच्चाई और कर्तव्य पर टिकी होती है।
3. परिवार और समाज को जोड़ने का माध्यम
राम-सीता का विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो आदर्श परिवारों का संगम है। इससे समाज में प्रेम, समर्पण और सद्भाव का विस्तृत संदेश मिलता है।
4. स्त्री और पुरुष के समान धर्म
इस दिव्य विवाह से सीख मिलती है कि नारी और पुरुष दोनों ही परिवार और समाज की मर्यादा का समान रूप से पालन करते हैं।
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