श्री राम विवाह: प्रेम, धर्म और मर्यादा का अद्भुत संगम
विवाह की दिव्य पृष्ठभूमि
माता सीता राजा जनक की अकाल प्रयोगशाला (हल चलाते समय भूमि से प्रकट हुई कन्या) थीं। बचपन से ही वह अत्यंत तेजस्वी, धैर्यवान और करुणामयी थीं। दूसरी ओर, श्री राम अयोध्या के राजकुमार, सत्य और नीति के पालनकर्ता तथा धर्म की मर्यादा को जीवन का उद्देश्य मानने वाले थे।
राजा जनक ने घोषणा की थी कि जो दिव्य शिव धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही सीता का वरण करेगा। यह स्वयंवर केवल शक्ति का नहीं, बल्कि चरित्र, शील और दिव्यता की परीक्षा भी था।
शिव धनुष का भंग और स्वयंवर की विजय
जब अनेक राजाओं और बलवान वीरों से धनुष हिला तक न सका, तब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से श्री राम धनुष के पास पहुँचे। उन्होंने सहजता से धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते ही धनुष टूट गया।
यह घटना शक्ति पर विनम्रता और अहंकार पर साधना की विजय का प्रतीक है।
इसके साथ ही सीता ने श्री राम को वर के रूप में स्वीकार किया और स्वयंवर में विजय घोषणा हुई।
श्री राम–सीता विवाह का संस्कार
अयोध्या से राजा दशरथ और संपूर्ण राज परिवार जनकपुर पहुँचा। वहाँ अत्यंत भव्य और दिव्य विवाह समारोह आयोजित किया गया। सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि और जन-समूह इस अद्भुत मिलन के साक्षी बने।
विवाह में हुए मुख्य संस्कार
- वरण – दूल्हा-दुल्हन का एक-दूसरे को स्वीकार करना
- कन्यादान – राजा जनक ने भावुक होकर सीता का हाथ राम के हाथ में रखा
- मंगलफेरे – अग्नि को साक्षी मानकर सात पवित्र व्रत लिए
- सप्तपदी – सात कदम साथ चलकर आजीवन साथ रहने की प्रतिज्ञा
- अर्धांगिनी स्वीकार – श्री राम के द्वारा सीता को जीवनसंगिनी व धर्मसंगिनी के रूप में स्वीकार करना
ये सभी संस्कार परिवार, प्रेम, धर्म और कर्तव्य के सामंजस्य का प्रतीक हैं।
विवाह का आध्यात्मिक महत्व
श्री राम और सीता का संबंध केवल सांसारिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक है। श्री राम मर्यादा के प्रतीक हैं और माता सीता पवित्रता और समर्पण की मूर्ति।
इस विवाह से मिलने वाली शिक्षाएँ
- प्रेम में त्याग और समर्पण जरूरी है
- विवाह दो व्यक्तियों का नहीं, दो संस्कृतियों और परिवारों का मिलन है
- धर्म और मर्यादा से जीवन सुखमय होता है
- पति-पत्नी एक-दूसरे के पूरक और सहयात्री होते हैं
- सच्चा प्रेम कभी अहंकार, क्रोध या अपेक्षाओं पर नहीं टिकता
जनकपुर से अयोध्या तक—एक पवित्र यात्रा
विवाह के बाद विदाई के समय माता सीता ने सभी का आशीर्वाद लिया और श्री राम के साथ अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। जनकपुर में इस समय जितना भावुक माहौल था, उतना ही उल्लास अयोध्या में देखा गया।
यह यात्रा दर्शाती है कि नवविवाहित दंपति धैर्य, प्रेम और सम्मान के साथ एक नई जिम्मेदारियों भरी यात्रा शुरू करते हैं।
निष्कर्ष
श्री राम विवाह प्रेम, समर्पण, धर्म और मर्यादा का वह अद्वितीय आदर्श है, जो हर युग में विवाह की पवित्रता और गरिमा को समझाता है। यह बताता है कि जब जीवनसाथी एक-दूसरे के धर्म, कर्तव्य और सम्मान को समझते हैं, तब दांपत्य जीवन दिव्य और सफल होता है।
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