
श्रीमद्भगवद्गीता - द्वितीय अध्याय (सांख्य योग) का सार
द्वितीय अध्याय, जिसे “सांख्य योग” कहा जाता है, श्रीमद्भगवद्गीता का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसके कर्तव्य, धर्म और आत्मा के गूढ़ तत्वों को समझाने का आरंभ किया है। इस अध्याय में अर्जुन के विषाद (उदासी और मोह) को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने ज्ञान और योग का मार्ग दिखाया है। इसका सार इस प्रकार है:
1. अर्जुन का संदेह और मोह:
- युद्ध के मैदान में अर्जुन अपने स्वजनों, गुरुजनों और मित्रों को देखकर मोह और करुणा से भर जाता है।
- वह सोचता है कि अपने ही प्रियजनों को मारकर विजय प्राप्त करना पाप है और इससे संसार में अनर्थ होगा।
- वह हथियार त्यागकर श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन मांगता है।
2. भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश:
- श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा का तत्वज्ञान देते हैं और समझाते हैं कि:
- आत्मा अमर और अविनाशी है – आत्मा का न तो जन्म होता है, न मृत्यु। यह नष्ट नहीं होती।
- शरीर नश्वर है – शरीर का नाश होना निश्चित है, लेकिन आत्मा शाश्वत है। इसलिए शरीर के नाश के कारण शोक करना व्यर्थ है।
- कर्तव्य पालन का महत्व – अर्जुन का क्षत्रिय धर्म है कि वह धर्मयुद्ध करे। युद्ध से विमुख होना उसका कर्तव्य त्याग होगा।
- सुख-दुःख, लाभ-हानि में समानता – मनुष्य को सफलता और असफलता में समभाव रखना चाहिए। यह योग का मार्ग है।
3. सांख्य योग का परिचय:
- श्रीकृष्ण “सांख्य” (ज्ञान का मार्ग) और “कर्म योग” (कर्म का मार्ग) का उपदेश देते हैं।
- निष्काम कर्म का महत्व बताते हैं, जिसमें फल की चिंता किए बिना केवल कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
- यह कर्मयोग “स्थितप्रज्ञता” (स्थिर बुद्धि) की ओर ले जाता है, जहां मनुष्य समभाव में स्थित रहता है।
4. स्थितप्रज्ञता का वर्णन:
- स्थितप्रज्ञ व्यक्ति वही है जो:
- कामनाओं से मुक्त है।
- सुख-दुःख, राग-द्वेष से परे है।
- इंद्रियों को नियंत्रित करता है।
- आत्मा में स्थिर रहता है।
- ऐसा व्यक्ति जीवन के सभी उतार-चढ़ाव में समान रहता है और सच्ची शांति प्राप्त करता है।
5. भय, मोह और अज्ञान का नाश:
- श्रीकृष्ण कहते हैं कि अर्जुन का मोह और भय उसके अज्ञान का परिणाम है।
- ज्ञान प्राप्त कर और अपने धर्म को समझकर, अर्जुन को अपने मोह को त्यागकर कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
मुख्य शिक्षाएँ:
- आत्मा अमर है, शरीर नश्वर है।
- कर्तव्य का पालन निष्काम भाव से करना चाहिए।
- सफलता-असफलता, सुख-दुःख में समान रहना चाहिए।
- स्थितप्रज्ञता की अवस्था प्राप्त करना ही मोक्ष का मार्ग है।
द्वितीय अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आध्यात्मिक ज्ञान का प्रथम परिचय दिया और उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया। यह अध्याय गीता का आधार स्तंभ है, जिसमें कर्मयोग और ज्ञानयोग की नींव रखी गई है।