
शुक्र ग्रह जब अस्त होता है, तब धार्मिक दृष्टि से इसे शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है। शुक्रास्त व्रत का पालन विशेष रूप से उन लोगों द्वारा किया जाता है जो वैवाहिक सुख, संतान सुख, और समृद्धि प्राप्ति के लिए शुक्र ग्रह के प्रभाव को शांत करना चाहते हैं।
शुक्रास्त व्रत का महत्व:
- वैवाहिक जीवन की समस्याओं का समाधान – यदि विवाह में बाधा आ रही हो या वैवाहिक जीवन में कलह हो रही हो, तो इस व्रत का पालन शुभ माना जाता है।
- संतान सुख प्राप्ति – संतान से जुड़ी समस्याओं के समाधान हेतु यह व्रत किया जाता है।
- धन-समृद्धि – शुक्र ग्रह समृद्धि और ऐश्वर्य का कारक होता है, इसलिए शुक्र अस्त के समय व्रत करने से आर्थिक उन्नति होती है।
- शरीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य – शुक्र ग्रह सौंदर्य और स्वास्थ्य का प्रतीक है, अतः इसका व्रत करने से स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिलते हैं।
शुक्रास्त व्रत विधि:
- स्नान एवं संकल्प: प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा करें।
- भोजन का त्याग: इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें और अत्यधिक तामसिक भोजन से बचें।
- मंत्र जाप:
- “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
- शुक्र ग्रह को शांत करने के लिए “श्री सूक्त” और “कनकधारा स्तोत्र” का पाठ करें।
- दान: शुक्र ग्रह से जुड़े वस्त्र (सफेद कपड़े), चावल, दही, घी, सुगंधित वस्तुएं, चांदी, और सफेद मिठाई ब्राह्मणों को दान करें।
- उद्यापन: जब शुक्र ग्रह उदय होता है, तब इस व्रत का विधिवत उद्यापन करना चाहिए।
शुक्र अस्त के दौरान निषेध कार्य:
- विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, उपनयन संस्कार जैसे मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए।
- नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए और झूठ बोलने से बचना चाहिए।
- नशे और मांसाहार से दूर रहना चाहिए।
यदि आपको विशेष रूप से शुक्र ग्रह के उपाय करने हैं या कुंडली में शुक्र दोष है, तो किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श करना उचित रहेगा।
क्या आप जानना चाहेंगे कि इस वर्ष शुक्र ग्रह कब अस्त और उदय होगा?
शुक्रास्त पश्चम व्रत
शुक्रास्त पश्चम व्रत
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