
शीतलाष्टमी व्रत (Sheetalashtami Vrat)
🔹एक महत्वपूर्ण हिन्दू व्रत है, जिसे विशेष रूप से बसौड़ा के रूप में भी जाना जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से माँ शीतला देवी को समर्पित होता है और होली के बाद अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। व्रत की तिथि और महत्व
- शीतलाष्टमी फाल्गुन या चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आती है।
- इस दिन माँ शीतला की पूजा की जाती है, जिन्हें रोगों, विशेषकर चेचक और त्वचा संबंधी रोगों की देवी माना जाता है।
- यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों (उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार) में प्रचलित है।
🔹 व्रत की परंपराएँ और नियम
- बासी भोजन का महत्व – इस दिन घर में एक दिन पहले का बना हुआ भोजन खाया जाता है, जिसे बसौड़ा कहा जाता है। ताजा भोजन बनाना वर्जित होता है।
- माँ शीतला की पूजा –
- प्रातः जल्दी उठकर स्नान किया जाता है।
- माँ शीतला की मूर्ति या चित्र की पूजा की जाती है।
- बासी भोजन, गुड़, दही, पूड़ी, मीठे चावल, रोट, चना, पुआ आदि का भोग लगाया जाता है।
- व्रत कथा का पाठ –
- शीतलाष्टमी की पौराणिक कथा पढ़ी या सुनी जाती है।
- कथा में बताया जाता है कि कैसे एक स्त्री ने नियमों का पालन न करते हुए ताजा भोजन बनाया और उसका परिवार बीमार हो गया।
- दर्शन और भोग वितरण –
- व्रती माँ शीतला के मंदिर जाकर पूजा करते हैं।
- प्रसाद बाँटते हैं और अपने परिवार की स्वस्थ व समृद्ध जीवन की कामना करते हैं।
🔹 व्रत के लाभ
✅ परिवार को रोगों से मुक्ति मिलती है।
✅ विशेषकर छोटे बच्चों को चेचक (Chickenpox) और अन्य त्वचा रोगों से बचाव होता है।
✅ घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-शांति बनी रहती है।
🔹 संभावित तिथि (2025)
शीतलाष्टमी 2025 में होली के बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ेगी। सही तिथि के लिए पंचांग देखना आवश्यक है।
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हनुमान जी का महाशक्तिशाली मंत्र
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