
शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी की छवि
1. तिथि एवं समय (2025 के लिए उदाहरण)
- 2025 में शारदीय पूर्णिमा 6 अक्टूबर को है।
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 06 अक्टूबर 2025 दोपहर लगभग 12:24 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्ति: 07 अक्टूबर 2025 प्रातः लगभग 09:17 बजे
- चंद्र उदय: 06 अक्टूबर की शाम लगभग 05:34 बजे
- सूर्योदय एवं सूर्यास्त (उदाहरण, मध्य भारत): सुबह लगभग 06:24 बजे, शाम लगभग 18:05 बजे
→ इसका अर्थ यह है कि 6 अक्टूबर की दोपहर बाद से ही पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी, और अगले दिन प्रातः तक यह बनी रहेगी।
2. व्रत (उपवास) का विधान
- इस दिन व्रत रखा जाता है — कुछ भक्त निर्जला (पूरे दिन भोजन/जल न लेना) व्रत करते हैं, जबकि अधिकतर लोग एक हल्का भोजन (शुद्ध-साधारण, असाम्स आदि) लेते हैं।
- रात में जागरण करना (रात्रि जागरण) महत्वपूर्ण है क्योंकि इस रात भगवती लक्ष्मी धरती पर आती हैं और जो जागरण करती हैं, उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
- व्रत की कथा (व्रतकथा) सुनना, पूजा करना, चंद्र दर्शन करना एवं भोग ग्रहण करना शामिल है।
3. शुभ मुहूर्त / श्रेष्ठ समय
“शुभ मुहूर्त” की बात करते समय निम्न बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए:
- चंद्र उदय के बाद, चंद्र दर्शन (Moonrise) उत्तम माना जाता है।
- व्रत breaking (उपवास तोड़ना) चंद्र दर्शन एवं पूजा के बाद करना शुभ माना जाता है।
- यदि संभव हो, आधी रात या रात्रि मध्य का समय (मोमेन्ट) उपयोगी कहा जाता है।
- चतुर्दशी या अमावस्या समय से पहले व्रत प्रारंभ करना — यदि पूर्णिमा तिथि दोपहर से शुरू होती है, तो उस दोपहर या उसके तुरंत बाद व्रत प्रारंभ करना चाहिए।
विशिष्ट मुहूर्त (घड़ी-घड़ी) के लिए निम्न उदाहरण दिए जाते हैं (आपके स्थान / क्षेत्र के अनुसार समय अलग हो सकते हैं):
कार्य | अनुमानित समय / अवधि |
---|---|
व्रत प्रारंभ | 06 अक्टूबर 2025 — 12:24 बजे (जब पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो) |
चंद्र दर्शन / पूजा | चंद्र उदय के बाद, लगभग 5:34 बजे के बाद |
व्रत समापन / भोग ग्रहण | चंद्र दर्शन और पूजा के बाद, “पूर्णिमा तिथि समाप्त होने से पूर्व” — यानी 07 अक्टूबर प्रातः तक, लगभग 09:17 बजे तक |
4. पूजा विधि एवं अनुष्ठान (पूजा क्रिया)
नीचे पूजा विधि का एक सामान्य क्रम दिया गया है, जिसे आप अपने अनुसार थोड़ा बहुत स्थानीय रीति से अनुकूलित कर सकते हैं:
- स्वच्छता एवं स्नान
— व्रत के दिन प्रातः शुद्ध हो कर स्नान करें। - घर व पूजा स्थल की स्वच्छता
— मंदिर-कक्ष या पूजा स्थल साफ करें, सफेद वस्त्र/चादर बिछाएं। - देवताओं की स्थापना
— माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु, चंद्रदेव आदि की मूर्ति / चित्र स्थापित करें।
— पवित्र अक्षत, पान, पुष्प, धूप-दीप आदि रखें। - पूजा-अर्चना
— दीप जलाएँ, अक्षत चढ़ाएँ, पंचामृत, फल, प्रसाद आदि offerings करें।
— विष्णु-लक्ष्मी स्तोत्र, चंद्र स्तुति, “कोजागरी” पूजा मंत्र / भजन गायें।
— व्रत कथा पढ़ें (यदि पूजा समय हो)। - चंद्र दर्शन एवं भोग
— रात में चंद्र उदय के बाद चंद्रमा की ओर आँखें लगाएँ — चंद्र दर्शन करें।
— चाँदनी की रोशनी में खीर (चावल + दूध + सूखे मेवे) रखें — ऐसा माना जाता है कि इससे भोग में दिव्य गुण आते हैं।
— अगले दिन सुबह उस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। - व्रत समापन
— पूजा-अर्चना एवं भोग ग्रहण के बाद व्रत समाप्त करें।
5. धार्मिक महत्व एवं फल
- इस दिन कहा जाता है कि चंद्रमा अपनी 16 कलाओं (गुण) से पूर्ण होता है, इसलिए उसकी किरणों में अमृत की शक्ति होती है।
- जो इस रात जागरण कर पूजा करता है, उसे मां लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है।
- खीर को चाँदनी में रखने की परंपरा यह बताती है कि उस प्रकाश से जीवन उत्तम ऊर्जा ग्रहण करे।
- प्रेम, समृद्धि, स्वास्थ्य, धन, आरोग्य की प्रार्थना इस व्रत से की जाती है।
- इस व्रत से आत्मशुद्धि, मानसिक शांति, भक्ति बढ़ती है।
गजानन की भक्ति: जीवन में सुख-शांति का स्रोत
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शारदीय पूर्णिमा व्रत, 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
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