
शारदीय नवरात्र 2025: आरंभ तिथि और शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्र 2025: आरंभ तिथि एवं शुभ मुहूर्त
📅 नवरात्रि की तिथियाँ
- शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत सोमवार, 22 सितंबर 2025 से होगी।
- यह पर्व विजयादशमी / दशहरा के साथ गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को समाप्त होगा।
(घटस्थापना / कलश स्थापना) मुहूर्त
- घटस्थापना मुहूर्त का समय: सुबह 06:09 बजे से 08:06 बजे
- यह अवधि लगभग 1 घंटा 56 मिनट की है।
शारदीय नवरात्र 2025
आरंभ तिथि: सोमवार, 22 सितंबर 2025
समापन: गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025
घटस्थापना शुभ मुहूर्त: सुबह 06:09 से 08:06 बजे तक
1. शारदीय नवरात्र के लाभ
- जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि की प्राप्ति।
- परिवार में शांति और सौहार्द का वातावरण।
- मनोकामनाओं की पूर्ति और मानसिक शांति।
- स्वास्थ्य लाभ और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा।
- विद्यार्थियों और साधकों के लिए विशेष फलदायी।
2. धार्मिक महत्व
- यह पर्व देवी दुर्गा की नौ शक्तियों की आराधना का है।
- अच्छाई पर बुराई की विजय का प्रतीक।
- शक्ति, भक्ति और साधना का विशेष अवसर।
- कलश स्थापना से घर में देवी माँ का वास माना जाता है।
- नवरात्र का समय साधना और तपस्या के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
3. शिक्षा (सीख)
- धर्म और आस्था से जीवन में अनुशासन आता है।
- साधना से आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है।
- संयम, त्याग और भक्ति के महत्व को समझना।
4. पूजा विधि
- शुभ मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर चौकी रखकर उस पर लाल कपड़ा बिछाएँ।
- घटस्थापना करके उसमें गंगाजल, सुपारी, सिक्के डालें।
- जौ या गेहूँ बोकर कलश के ऊपर नारियल रखें।
- मां दुर्गा की प्रतिमा/चित्र स्थापित कर दीपक जलाएँ।
- दुर्गा सप्तशती, स्तुति या मंत्रों का पाठ करें।
- नौ दिनों तक व्रत व नियम का पालन करें।
5. पूजा सामग्री
- स्वच्छ मिट्टी का कलश
- गंगाजल, आम्रपल्लव, सुपारी, सिक्का
- जौ/गेहूँ के दाने
- नारियल (लाल वस्त्र में लिपटा)
- रोली, चावल, हल्दी, अक्षत
- लाल चुनरी और फूल (विशेषकर लाल फूल)
- धूप, दीप, कपूर
- दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ की पुस्तक
- प्रसाद हेतु फल, मिठाई और पंचमेवा
6. पूजा करने के उपाय
- नवरात्र के दौरान स्वच्छता और सात्त्विकता का पालन करें।
- घर में रोजाना दुर्गा आरती और दीप प्रज्वलित करें।
- कन्याओं को भोजन कराना और उनका आशीर्वाद लेना शुभ है।
- व्रत में केवल सात्त्विक भोजन ग्रहण करें।
- प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूप की आराधना करें।
- दशमी के दिन व्रत का विधिवत समापन करें।
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