
शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना विधि
शुभ मुहूर्त चुनना
- नवरात्रि के पहले दिन (प्रतिपदा तिथि) को ही कलश स्थापना करनी चाहिए।
- प्रातःकाल या अभिजीत मुहूर्त को सबसे उत्तम माना जाता है।
2. पूजन स्थल की तैयार
- घर के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) को साफ-सुथरा करें।
- उस स्थान पर लाल या पीले कपड़े का आसन बिछाएं।
3. मिट्टी का स्थान (बालूका स्थापना)
- एक चौकी पर मिट्टी रखें और उसमें जौ (जौ का बीज) बोएं।
- इस पर कलश स्थापित किया जाता है, जो देवी के प्रतीक माने जाते हैं।
4. कलश की तैयारी
- तांबे, पीतल या मिट्टी का कलश लें।
- उसमें गंगाजल, रोली, अक्षत, पंचरत्न, सुपारी, दूर्वा आदि डालें।
- आम या अशोक के पांच पत्ते कलश की गर्दन पर रखें।
- ऊपर नारियल को लाल वस्त्र से लपेटकर बांधें और कलश पर रखें।
5. देवी का आवाहन
- कलश को मिट्टी पर रखकर देवी का आवाहन करें।
- मंत्र उच्चारण करें:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” - देवी दुर्गा को आमंत्रित कर पूजन आरंभ करें।
6. दीप और धूप प्रज्वलित करना
- कलश के पास अखंड दीपक जलाएं।
- नौ दिनों तक सुबह-शाम आरती करें और देवी का ध्यान करें।
7. जौ (कदली) पूजन
- जौ अंकुरित होने पर उसे समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
- नवमी या दशमी को विसर्जन के समय जौ को घर के सदस्यों को प्रसादस्वरूप दिया जाता है।
विशेष बातें
- कलश स्थापना के बाद नवरात्रि व्रत नियम का पालन करें।
- प्रतिदिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करें।
- दशमी के दिन कलश विसर्जन करें।
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री:
- मिट्टी या तांबे/पीतल का कलश
- गंगाजल या शुद्ध जल
- आम्रपल्लव (आम के पत्ते) 5 या 7
- नारियल (लाल चुनरी से लिपटा हुआ)
- सुपारी
- चावल (अक्षत)
- लाल चुनरी या वस्त्र
- हल्दी-चंदन, रोली-कुमकुम
- जौ या गेहूं के दाने (बोवाई हेतु)
- मिट्टी (जौ बोने के लिए)
- पान, लौंग, इलायची
- फूल-माला, दीपक, अगरबत्ती
कलश स्थापना की विधि
1. स्थान की शुद्धि
- सबसे पहले घर के पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ करें।
- पवित्रता हेतु गंगाजल छिड़कें।
- पूजा स्थल पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएँ।
2. वेदी (मंडप) तैयार करना
- मिट्टी से बनी चौकी या लकड़ी की पट्टी पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं।
- उस पर थोड़े चावल रखें और उसके ऊपर कलश स्थापित करें।
3. कलश की तैयारी
- कलश में गंगाजल या शुद्ध जल भरें।
- उसमें थोड़ा गंगाजल, रोली, अक्षत, सुपारी, पंचरत्न (यदि उपलब्ध हों), पान, लौंग, इलायची डालें।
- आम के पत्तों को कलश की गर्दन पर लगाएँ।
- ऊपर से लाल चुनरी में लिपटा नारियल रखें।
- नारियल पर रोली, हल्दी और मौली बाँधें।
4. जौ बोना (नवरात्रि के अंकुरण हेतु)
- पूजा स्थल पर मिट्टी से भरी थाली रखें।
- उसमें जौ या गेहूं के दाने बोएँ और हल्का जल छिड़कें।
- यह नवरात्रि का अंकुर (जवारे) कहलाता है, जो शुभता और उन्नति का प्रतीक है।
5. देवी का आवाहन
- अब माँ दुर्गा का आवाहन करें और संकल्प लें कि पूरे नौ दिनों तक विधि-विधान से पूजा करेंगे।
- मंत्र उच्चारण करें:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” - दीपक जलाकर देवी का ध्यान करें।
6. अखंड ज्योति (यदि संभव हो)
- कलश के पास घी का अखंड दीपक प्रज्वलित करें, जो पूरे नवरात्रि जलता रहे।
- यह माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त करने का उपाय माना जाता है।
कलश स्थापना के नियम:
- प्रतिपदा तिथि में ही कलश स्थापना करना अनिवार्य है।
- ब्रह्म मुहूर्त या प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम होता है।
- कलश के ऊपर रखा नारियल माँ दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।
- नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवमी/दशमी को कलश का विसर्जन किया जाता है।
धार्मिक महत्व:
- कलश स्थापना से घर में माँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास माना जाता है।
- जौ के अंकुरण से घर में सुख-समृद्धि और हरियाली आती है।
- यह शुभ कार्य पितृ दोष, ग्रह बाधा और अशुभ शक्तियों को दूर करता है।
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