
वट सावित्री व्रत के मुख्य नियम
“श्रद्धा से किया गया वट सावित्री व्रत न केवल पति की रक्षा करता है, बल्कि स्त्री को आंतरिक शक्ति, धैर्य, समर्पण और धार्मिक पुण्य प्रदान करता है।”
🌳 व्रत से एक दिन पहले की तैयारी:
- व्रति महिला को व्रत से पहले दिन शुद्धता और सात्विकता का पालन करना चाहिए।
- पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जुटा लें जैसे वट वृक्ष की पूजा की सामग्री, धागा (कच्चा सूत), मिठाई, फल, लाल चूड़ी, सिंदूर, पंचामृत, और सावित्री-सत्यवान की मूर्ति/चित्र।
🙏 व्रत के दिन के नियम:
- स्नान और संकल्प:
ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर व्रत का संकल्प लें — पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन के लिए। - निर्जल व्रत (या फलाहार):
अधिकांश महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखती हैं। कुछ महिलाएं फलाहार भी लेती हैं। - वट वृक्ष की पूजा:
पास के वट (बड़) वृक्ष की पूजा करें। वृक्ष के चारों ओर धागा (कच्चा सूत) या मौली 7, 11 या 21 बार लपेटें और परिक्रमा करें। - पूजन विधि:
- सबसे पहले वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें।
- हल्दी, कुमकुम, चावल, पुष्प, फल आदि से पूजा करें।
- वट वृक्ष को स्त्री रूप में (सावित्री) और उसके तने को पति (सत्यवान) रूप में पूजें।
- सावित्री-सत्यवान कथा का श्रवण या पाठ करें।
- सावित्री-व्रत कथा:
व्रत कथा सुनना/पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। यह कथा सावित्री के पति सत्यवान को यमराज से पुनः जीवन दिलाने की गाथा है। - ब्राह्मण या सुहागिनों को दान:
व्रत के बाद सुहाग की सामग्री (सिंदूर, चूड़ी, वस्त्र आदि) सुहागिनों को भेंट करें। भोजन और दक्षिणा दें। - संध्या के बाद व्रत पूर्ण करें:
व्रत को संध्या समय पूजा के बाद समाप्त किया जाता है और जल अथवा फलाहार लिया जाता है।
🚫 व्रत के निषेध और सावधानियां:
- दिनभर संयमित आचरण और सात्विक आहार का पालन करें।
- क्रोध, झूठ, निंदा, तामसिक भोजन, शराब, मांस आदि से पूरी तरह परहेज़ करें।
- व्रत के समय चप्पल/जूते न पहनें, ज़्यादा आराम न करें, और यथासंभव मौन व्रत रखें।
वट सावित्री व्रत का पालन करने से कई धार्मिक, आध्यात्मिक और पारिवारिक लाभ (लाभ) होते हैं। यह व्रत सिर्फ एक परंपरा नहीं बल्कि एक गहन श्रद्धा और पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते की प्रतीक है। नीचे इसके प्रमुख लाभ बताए गए हैं:
🌸 वट सावित्री व्रत के लाभ :
1. पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारी
यह व्रत खास तौर पर पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। यह मान्यता है कि सावित्री ने अपने व्रत और संकल्प से अपने मृत पति को भी यमराज से वापस ले लिया था।
2. वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और सामंजस्य
विवाहित जीवन में प्रेम, सामंजस्य और संतुलन बनाए रखने के लिए यह व्रत बहुत फलदायक माना जाता है।
3. पुनर्जन्म में भी वही जीवनसाथी मिलने की कामना
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से व्रती को अगले जन्म में भी वही पति मिलता है।
4. पुण्य लाभ और आत्मिक शुद्धि
सच्चे मन से किया गया यह व्रत पुण्य प्रदान करता है और आत्मा को शुद्ध करता है। महिला को मानसिक शक्ति और धैर्य प्रदान करता है।
5. संतान सुख की प्राप्ति (कुछ क्षेत्रों में मान्यता)
कुछ स्थानों पर यह भी माना जाता है कि जो महिलाएं संतान की इच्छा रखती हैं, उनके लिए भी यह व्रत फलदायक होता है।
6. सौभाग्यवती जीवन की प्राप्ति
इस व्रत से स्त्री को अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान मिलता है — अर्थात वह अपने पति के जीवनकाल तक सौभाग्य (सिंदूर, चूड़ी, मंगलसूत्र आदि) के साथ रहेगी।
7. धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति
सावित्री जैसी नारी शक्ति और धर्मपरायणता की प्रेरणा लेकर महिलाएं अपने जीवन में भी धर्म, सत्य और सेवा का मार्ग अपनाती हैं।
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