
नवरात्र 2025 पारण का दिन और समय
1. विसर्जन की तिथि और महत्व
- दुर्गा विसर्जन पूजा-उत्सव का समापन है — पूरे नवरात्रि / दुर्गा पूजा पर्व के बाद प्रतिमा या कलश को जल, नदी, तालाब या पवित्र जलाशय में विसर्जित करना।
- यह दिन विजयादशमी / दशमी तिथि के दिन पड़ता है।
- इस वर्ष, 2025 में दुर्गा विसर्जन की तिथि है 2 अक्टूबर 2025 (गुरुवार / Vijayadashami)
- कुछ स्रोतों में यह कहा गया है कि दशमी तिथि 1 अक्टूबर की शाम 7:01 बजे से प्रारंभ होकर 2 अक्टूबर को शाम 7:10 तक रहेगी।
- और कहा गया है कि कलश विसर्जन उसी दिन (2 अक्टूबर) ही करना चाहिए।
2. शुभ मुहूर्त (Samay) / Timing
निम्नलिखित जानकारी कुछ स्रोतों द्वारा बताई गई शुभ मुहूर्त है:
स्रोत | शुभ मुहूर्त | अवधि / समय |
---|---|---|
MyPandit | 06:10 AM to 08:35 AM | लगभग 2 घंटे 24 मिनट |
अन्य स्रोतों एवं जनसमाचार | विसर्जन और पूजा पद्धति समय का उल्लेख | — |
तो सबसे प्रमुख शुभ मुहूर्त माना जा रहा है सुबह 6:10 बजे से 8:35 बजे तक
ध्यान दें कि कुछ लोग स्थानीय पंचांग या मंदिरों द्वारा निर्धारित समय (घाट विशिष्ट समय) अपनाते हैं।
3. पूजा-विधि एवं अनुष्ठान (Ritual Procedure)
विसर्जन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- पूजा एवं श्रीस्तोत्र
- विसर्जन से पहले माता दुर्गा की पूजा, आरती, मन्त्र (जैसे “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इत्यादि) पाठ करना।
- प्रसाद अर्पण करना।
- विसर्जन (Immersion)
- जलाशय (नदी, तालाब, सरोवर) चुनें जहाँ जल पवित्र हो और विसर्जन से प्रदूषण कम हो।
- प्रतिमा या कलश को धीरे-धीरे जल में प्रवाहित करें, उस दौरान मन्त्र जाप जारी रखें।
- यदि मंदिर समिति निर्देश देती है, तो सामूहिक विसर्जन में शामिल हों।
- पानी में प्रवेश करते समय ध्यान रखें कि सुरक्षा व्यवस्था हो — जैसे घाट मजबूत हो, संतुलन न खोएँ।
- समापन तथा धन्यवाद
- विसर्जन के बाद प्रणाम, धन्यवाद एवं श्रद्धांजलि देना।
- यदि संभव हो, उस जलाशय की साफ़-सफाई में सहयोग देना।
- सामाजिक रूप से पर्यावरण का ध्यान रखें — प्रतिमा को मिट्टी, जैविक रंग आदि से ही बनवाना, प्लास्टिक न हो।
4. विश्लेषण और सुझाव
- चूंकि विभिन्न स्रोतों में समय थोड़ा-बहुत भिन्न है, सुबह का समय (06:10 – 08:35) सबसे विश्वसनीय विकल्प लगता है।
- यदि आप किसी विशेष घाट (नदी, कर्मा, तालाब) पर जाते हैं, उस घाट का स्थानीय पंडित / मंदिर समिति से पुष्टि कर लें कि वहाँ किस समय विसर्जन करना उपयुक्त है।
- यदि ऊपर बताई शुभ अवधि न मिल सके, तो उदयातिथि (दिन का उदयकाल) में या स्थानीय पंचांग में “उदय मुहूर्त” से विसर्जन करना उच्च माना जाता है। कई स्रोतों में कहा गया है कि दशमी तिथि की अवधि 1 अक्टूबर की शाम से 2 अक्टूबर की शाम तक है।
- पर्यावरण के दृष्टिकोण से, प्रतिमाएँ जैविक, मिट्टी या प्राकृतिक रंगों की होनी चाहिए और विसर्जन में प्रदूषण न हो, इसका विशेष ध्यान रखें।